संवाददाताः संतोष कुमार दुबे
दिल्लीः देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय (जेएमआई) में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और गैर-मुसलमानों के इस्लाम में धर्मांतरण के लिए दबाव डाला जाता है। इस बात की खुलासा जेएमआई में गैर-मुस्लिम विद्यार्थियों तथा कर्मचारियों के साथ भेदभाव और गैर-मुसलमानों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए दबाव डालने के आरोपों को लेकर न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एस एन ढींगरा के नेतृत्व में गठित तथ्य खोजी समिति ने किया है।
समिति ने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट गुरुवार को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, शिक्षा मंत्रालय और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के कार्यालय को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस समिति में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ढींगरा, दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त एस एन श्रीवास्तव, दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राजीव कुमार तिवारी, दिल्ली सरकार के पूर्व सचिव एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी नरेन्द्र कुमार (आईएएस), पूर्व सचिव दिल्ली सरकार (सदस्य), किरोड़ीमल कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. नदीम अहमद, दिल्ली उच्च न्यायालय की अधिवक्ता पूर्णिमा शामिल हैं।
इस समिति के सदस्यों ने आज यहां इस मुद्दे पर संवाददाताओं को संबोधित करते हुए बताया कि भेदभाव और इस्लाम धर्म अपनाने के लिए प्रताड़ना झेलने वाले लोगों की गुजारिश पर इस समिति का गठन किया गया और जांच के दौरान समिति ने पाया कि जेएमआई में गैर मुस्लिमों के साथ भेदभाव होता है और उन पर इस्लाम धर्म को अपनाने के लिए दबाव डाला जाता है। इस दौरान न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) ढींगरा ने बताया कि जांच के दौरान समिति के समक्ष लगभग हर गवाह ने जेएमआई में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और गैर-मुसलमानों के खिलाफ पक्षपात के बारे में गवाही दी, चाहे गैर-मुस्लिम विद्यार्थी हो या शिक्षण संकाय का सदस्य हो। उन्होंने बताया कि इस काम में जेएमआई के मौजूदा मुस्लिम विद्यार्थी,पूर्व विद्यार्थी, प्रोफेसर और कर्मचारी सभी शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार एक सहायक प्रोफेसर ने कहा कि उनके द्वारा शुरू से ही पक्षपात महसूस किया गया था और पीएचडी सेक्शन के मुस्लिम क्लर्क ने अपमानजनक टिप्पणी करते हुए कहा था कि वह किसी काम की नहीं है और कुछ हासिल नहीं कर पाएगी। क्लर्क (जो पीएचडी थीसिस का शीर्षक भी ठीक से नहीं पढ़ पाया था) ने थीसिस की गुणवत्ता पर टिप्पणी करना शुरू कर दिया, क्योंकि वह मुस्लिम था और वह गैर-मुस्लिम थी।
वहीं, जामिया के एक अन्य गैर-मुस्लिम शिक्षण संकाय ने गवाही दी कि गैर-मुस्लिम होने के कारण उसके अन्य मुस्लिम सहयोगियों से उसके साथ बहुत भेदभाव किया गया। अन्य मुस्लिम सहयोगियों को मिलने वाली सुविधाएं जैसे बैठने की जगह, केबिन, फर्नीचर आदि उन्हें विश्वविद्यालय में शामिल होने के बाद लंबे समय तक नहीं दी गईं, जबकि उनके बाद शामिल हुए मुस्लिम संकाय सदस्यों को सभी सुविधाएं दे दी गईं। वह एससी समुदाय से हैं।
इस समिति का गठन “कॉल फॉर जस्टिस” नामक एक गैर सरकारी संगठन द्वारा जेएमआई के संबंध में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और गैर-मुसलमानों के इस्लाम में धर्मांतरण और गैर-मुसलमानों को किए जा रहे उत्पीड़न के संबंध में जानकारी प्रदान के बाद किया गया था।
उल्लेखनीय है कि गत चार अगस्त को अनुसूचित जाति और बाल्मीकि समाज के सदस्यों द्वारा एक कर्मचारी राम निवास के समर्थन में जंतर-मंतर पर एक प्रदर्शन किया गया था, जिन्हें गैर-मुस्लिम होने के कारण जेएमआई में परेशान किये जाने का आरोप लगाया गया था। कॉल फॉर जस्टिस को जेएमआई में गैर-मुस्लिमों के उत्पीड़न / धर्मांतरण और गैर-मुस्लिमों के साथ भेदभाव के संबंध में कई अन्य लोगों से मौखिक और लिखित शिकायतें भी मिलीं। जेएमआई के खिलाफ आरोपों की प्रारंभिक जांच करने के बाद, कॉल फॉर जस्टिस ने आरोपों की विस्तृत जांच करने के लिए एक तथ्य खोज समिति गठित करने का फैसला किया।