पैंगोंग झील के पास हथियारों के साथ चीन फिर डटा, भारत कोरोना से जूझ रहा है

0
188

नई दिल्ली
भारत कोरोना महामारी से जूझ रहा है और चीन पैंगोंग त्सो झील के फिंगर 4 से लेकर 8 तक अपने सैन्य ठिकाने रुटोग में बड़े पैमाने पर हथियार और सैनिक जमा कर रहा हैं। यही नहीं, चीन ने रुटोग में युद्धक वाहन, हथियारों का जखीरा, जवानों को गरम रखने वाले टेंट भी लगा रखे हैं। चीन ने कई ऐसे बैरक बनाए हैं, जिन्हें ऊपर ढंक रखा है ताकि सैटलाइट से उसके अंदर नहीं देखा जा सके। चीन अच्छी तरह जानता है कि भारत इस समय महामारी से जूझ रहा है और उसका पूरा ध्यान उससे निपटने पर है, मगर उसकी इस गलतफहमी को खारिज करते हुए थल सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने कहा कि हमारी जनर पूरी तरह अपनी सीमाओं की चौकसी पर है। इसमें जरा सी भी कोताही नहीं की जाएगी।

पेंगोंग त्सो झील 1962 में हुए भारत-चीन जंग की धुरी रही थी। भारतीय सेना के हिसाब से इसे बेहद ही रणनीतिक माना जाता है। यह झील लद्दाख में 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक लंबी, संकरी और गहरी झील है। दोनों देशों की सेनाओं द्वारा लगातार इस झील में पेट्रोलिंग की जाती है। इस झील का 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में स्थित है, जबकि 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में पड़ता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा इस झील के मध्य से गुजरती है। 19वीं शताब्दी के मध्य में यह झील जॉनसन रेखा के दक्षिणी छोर पर थी। जॉनसन रेखा अक्साई चीन क्षेत्र में भारत और चीन के बीच सीमा निर्धारण का एक प्रारंभिक प्रयास था। इस क्षेत्र में खर्नाक किला है जो इस झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है। यह किला अब चीन के नियंत्रण में है। 20 अक्तूबर, 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान चीनी सेना ने यहां सैन्य कार्रवाई की थी।

चीन बाज नहीं आता। शातिर चालें चलता रहता है। उसने हाल ही में ब्रह्मपुत्र मेगा-प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। इस परियोजना से चीन थ्री गोर्ज डैम से तीन गुना अधिक बिजली पैदा करेगा। थ्री गोर्ज डैम चीन में यांग्जी नदी पर बनी दुनिया की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है। मेगा प्रोजेक्ट में पानी 3000 मीटर की ऊंचाई से ब्रह्मपुत्र नदी में गिरेगा। यह नदीं के भारत में प्रवेश से ठीक पहले हिमालय की तरफ यू टर्न लेकर दुनिया का सबसे लंबा और गहरा कैनयन बनाएगा। इस तरह ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाकर चीन पानी को भारत के खिलाफ सबसे प्रभावी हथियार के रूप में प्रयोग करना चाहता है।

साफ है कि भारत को चीन के प्रति अपनी बंटी हुई सोच को छोड़कर चीन को उसी की भाषा में जवाब देना होगा। भारत को दूरदर्शी सामरिक नीति और प्लानिंग के जरिये चीन की कमजोर नस खोजकर उसे दबाने की तैयारी करनी होगी। तिब्बत समेत चीन की आंतरिक चुनौतियों को लेकर रणनीति बनानी होगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here