रांची. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला में सजायाफ्ता हैं। उन्हें चार मामलों में सजा सुनायी जा चुकी है। एक मामला अदालत में चल रहा है। दुमका कोषागार से अवैध निकासी मामले में लालू प्रसाद यादव की ओर से दाखिल की गयी जमानत याचिका पर आज शुक्रवार को झारखंड हाईकोर्ट में जस्टिस अपरेश कुमार सिंह की अदालत में सुनवाई होगी। इस फैसले पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं, क्योंकि इस मामले में लालू प्रसाद को जमानत मिली, तो वे जेल से बाहर आ जाएंगे। देवघर और चाईबासा (दो मामले) से जुड़े तीन मामलों में इन्हें झारखंड हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी है। चौथा मामला दुमका कोषागार से अवैध निकासी से जुड़ा है। इसी मामले में लालू प्रसाद जमानत की मांग कर रहे हैं।
आपको बता दें कि बिहार के पूर्व सीएम व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव 23 दिसंबर 2017 से चारा घोटाला मामले में रांची के बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं। दुमका, देवघर और चाईबासा कोषागार से अवैध निकासी मामले में रांची स्थित सीबीआई की विशेष अदालत इन्हें सजा सुना चुकी है। सीबीआई की विशेष अदालत ने इस दुमका कोषागार से अवैध निकासी मामले में उन्हें सात साल की सजा सुनाई है।
इस बीच, वे आधी सजा काट चुके हैं और करीब 18 बीमारियों से ग्रस्त भी हैं। फिलहाल, लालू प्रसाद यादव दिल्ली के एम्स में इलाजरत हैं। इससे पहले ये रिम्स के पेइंग वार्ड में भर्ती थे। अचानक तबीयत खराब होने के बाद कोरोना समेत अन्य बीमारियों की जांच रिम्स में की गयी थी। मेडिकल बोर्ड की अनुशंसा के बाद इन्हें दिल्ली एम्स भेजा गया है। अस्वस्थता और आधी सजा काट लेने के कारण उन्होंने अदालत से दुमका कोषागार से अवैध निकासी मामले में जमानत देने का अनुरोध किया है।
फ्लैश बैक : लालू यादव को तीसरी बार मुख्यमंत्री बने करीब 8 महीने से ज्यादा का वक्त हो गया था। इस दौरान बिहार में पैसे की गड़बड़ी की आशंका सामने आई। उस वक्त के फाइनेंस कमिश्नर रहे एस विजय राघवन ने बिहार के सभी डीएम से कहा कि जिले के सरकारी खजाने से जो भी पैसा निकाला जा रहा है, उसकी पूरी जानकारी उन्हें दी जाए। उस वक्त बिहार के चाइबासा जिले में जिला कमिश्नर थे अमित खरे। वो 1985 बैच के आईएएस अधिकारी थे। चाइबासा के सरकारी खजाने की जांच के दौरान उन्हें पता चला कि जिला पशुपालन विभाग ने एक बार 10 करोड़ रुपये और एक बार 9 करोड़ रुपये निकाले हैं और उसकी डिटेल नहीं दी है। जब उन्होंने विभाग से डिटेल मांगी, तो भी उन्हें कोई डिटेल नहीं दी गई।
आखिर में अमित खरे जनवरी 1996 में पशुपालन विभाग के दफ्तर पहुंचे। जांच-पड़ताल के दौरान उन्हें लगा कि ऑफिस में जल्दबाजी में कुछ फाइलें जला दी गई हैं और कुछ को नष्ट कर दिया गया है। कई ऐसे फर्जी बिल हैं, जिनमें 10 लाख रुपये से कम का भुगतान दिखाया गया है। 10 लाख रुपये से ज्यादा के भुगतान पर कई जरूरी दस्तावेज दिखाने होते थे, इसलिए बिल 10 लाख रुपये से कम के थे। ये भुगतान उन कंपनियों के नाम पर किए गए थे, जो थी ही नहीं। उन्हें ये लगा कि ऐसा पिछले कई साल से हो रहा है। इस पूरे हेरफेर में तकरीबन 37 करोड़ रुपये का हेर-फेर सामने आया। इसके अगले ही दिन रांची के कमिश्नर ने भी पाया कि रांची में भी ऐसी ही हेर-फेर हुई है। इसके बाद तो गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जिले के सरकारी खजाने से भी फर्ज़ी बिलों के ज़रिए करोड़ों रुपए निकाले जाने की बात सामने आने लगी। मामला बिहार पुलिस के पास पहुंचा तो पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया। रातों-रात सरकारी खजाने की देखभाल करने वाले और पशुपालन विभाग के करीब 100 से ज्यादा अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया।