दिल्ली डेस्क

प्रखर प्रहरी

दिल्लीः भारत रत्न प्रणब मुखर्जी आज पंचतत्व में विलीन हो जाएंगे।  उनका अंतिम संस्कार आज दोपहर में लगभग दो बजे दिल्ली के लोधी रोड स्थित श्मशान घाट में किया जाएगा। प्रणव दा के पार्थिव शरीर को  उनके 10 राजाजी मार्ग पर स्थित घर रखा गया है। यहीं पर लोग उनका अंतिम दर्शन करेंगे और इसके बाद कोरोना प्रोटोकॉल के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। प्रणव दा का 31 अगस्त को सेना के आरआर अस्पताल में निधन हो गया था।

प्रणव दा का जन्म 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में किरनाहर के निकट मिराती गांव के कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहां हुआ था। पिता कामदा मुखर्जी 1920 से कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य थे और 1952 से 1964 तक पश्चिम बंगाल विधान परिषद में सदस्य और वीरभूमि जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे। वह एक सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी थे और ब्रिटिश हुक्कुमत  की खिलाफत के कारम 10 वर्षों से अधिक समय तक जेल की सजा भी काटी थी।

प्रणव दा ने वीरभूमि के सूरी विद्यासागर कॉलेज से स्नातक तक शिक्षा हासिल की। इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, जहां से उन्होंने  इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर और फिर कानून की डिग्री प्राप्त की। यहीं से उन्होंने डी लिट की मानद उपाधि भी हासिल की। पढ़ाई समाप्त करने के पाद प्रणव दा ने अपने करियर की शुरुआत कलकत्ता क विद्यासागर कॉलेज में प्राध्यापक के तौर पर की। बाद में उन्होंने पत्रकारिता में भी हाथ अजमाया। प्रणव दा ने वह बांग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) में भी काम कर चुके हैं। प्रणव मुखर्जी बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे।

प्रणव दा इंदिरा गांधी की अनुशंसा पर 1969 में राज्यसभा सदस्य के तौर पर संसद पहुंचे। वह 1975, 1981, 1993 और 1999 में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। प्रणव दा 1973 में औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उपमंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल हुए।  उन्होंने 1982 से 1984 तक कैबिनेट मंत्री के तौर पर कई विभागों में काम किया और 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने। 1984 में यूरोमनी पत्रिका के एक सर्वेक्षण में उनका मूल्यांन विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के रूप में किया गया। उनका कार्यकाल भारत के अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण की 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर की आखिरी किस्त अदा करने में मिली छुट्ट के लिए उल्लेखनीय रहा। वित्त मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। तत्कालीन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए उनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए चर्चा में रहा, लेकिन वह पीएम नहीं बन पाए। 1984 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद तत्कालीन  राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। साथ ही उन्हें कुछ समय के लिए कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का नाम से एक दल का गठन किया, लेकिन 1989 में राजीव गांधी के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने अपने दल का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया। प्रणव दा को पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने पहले उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष और बाद में अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया। वह राव मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया और उन्हें 1997 में उत्कृष्ट सांसद चुना गया।

2004 में उनका नाम एक बार फिर पीएम पद के लिए चर्चा में रहा। इस बार तो सबको लग रहा था कि वह ही प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन इस बार भी किस्मत ने प्रणव दा का साथ नहीं दिया। यूपीए यानी संयुक्त प्रगतिशील गठबंध की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को पीएम पद के लिए चुना। प्रणव दा को मनमोहन सिंह के कार्यकाल में लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया क्योंकि डॉ. मनमोहन सिंह राज्यसभा के सदस्य थे। अपने पांच दशक के संसदीय करियकर के दौरान प्रणव दा ने रक्षा, वित्त, विदेश मंत्रालय, राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार, आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग, समेत विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री होने का गौरव भी हासिल हुआ। वह कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे। इसके अतिरिक्त वह लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी रहे।

2012 में तत्कालीन केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणव दा को कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए ने उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया। वह सीधे मुकाबले में उन्होंने अपने प्रतिपक्षी प्रत्याशी पीए संगमा को हराकर 25 जुलाई 2012 को भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। इस पद पर वह 2017 तक रहे। सार्वजनिक जीवन में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें 26 जनवरी 2019 को भारत रत्न से  सम्मानित किया गया था। उन्होंने ‘द कोलिएशन ईयर्स: 1996-2012’ नामक एक किताब भी लिखी है।

 

 

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