संवाददाताः संतोष कुमार दुबे

फगवाड़ः भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री सुरेश जैन ने कहा है कि लोगों से सकारात्म सोच के साथ देश को आगे ले जाने में योगदान देने तथा अपने मूल कर्तव्य को सही तरह से पहचानने का आह्वान किया है।

पंजाब के फगवाड़ा स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में भारत विकास परिषद के राष्ट्री अधिवेश का समापन हो गया। “स्वस्थ समर्थ संस्कारित भारत” की परिकल्पना को जागृत करने वाले भारत विकास परिषद के इस 31वें राष्ट्रीय अधिवेशन में चार हजार से ज्यादा लोगों ने पंचसूत्र को आत्मसात किया और देश को विकसित, शिक्षित और संस्कारित करने का संकल्प लिया। इस दो दिवसीय अधिवेशन में परिषद के संकल्प को अगले पड़ाव में ले जाने पर सार्थक चर्चा हुई। देश में सामाजिक समरस्ता को बढ़ावा देने, निर्धन लोगों को बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने, शिक्षा के ज्ञान का उजियारा घर-घर पहुंचाने, मलिन बस्तियों में रहने वाली मां-बहनों को एनिमियां से बचाने, राष्ट्र निर्माण में संस्था की भूमिका, संस्था की दशा-दिशा, संस्था को देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने, देश के हर व्यक्ति के जीवन को बेहतर बनाने, हर प्रांत में बेहतर समाज की कल्पना सकार करने, हर परिवार को संस्कारित बनाने जैसे विषयों पर चर्चा हुई। इसके साथ ही इसमें परिषद के 10 क्षेत्रों की गत 02 वर्षों के कार्यों की समीक्षा की गई।

अधिवेशन के समापन के मौके पर परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुरेश जैन ने संगठन के संकल्प को दोहराया और कहा कि इंसान को दोहरे चरित्र पर काम करना चाहिए। कुंठा से भरा व्यक्ति बेहतर समाज नहीं बना सकता। परिवार के संस्कारित होने से संगठन संस्कारित होता है। लोगों को अपने परिवार से संस्कारित करने की शुरुआत करनी चाहिए। हमारा व्यक्तित्व कैसा है, कैसा बनना चाहिए इस विषय पर विचार करना चाहिए। संगठन के कार्यकर्ताओं को अपने अंदर झांकना चाहिए। इंसान को पूज्य बनना होगा,  तब जाकर परिवार और समाज में पूजा होगी, पूजनीय बनेंगे। महिलाओं को आगे बढ़ाएंगे, तब जाकर समाज में बदलाव आएगा। समर्पण से बेहतर समाज का निर्माण होगा। शाखा के काम काज पारदर्शी बनाने होंगे। संगठन को श्रेष्ठ कार्यकर्ता बनाने होंगे, श्रेष्ठ कार्यकर्ता श्रेष्ठ कार्यक्रम करेगा। छोटी छोटी बातों पर विचार करके हर कार्यकर्ता में श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करना होगा, तब जाकर एक श्रेष्ठ संगठन का निर्माण होगा। उन्होंने कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि अधिवेशन से संकल्प लेकर जाएं – हम अपने परिवार को संस्कारित परिवार, आदर्श परिवार, मॉडल परिवार बनाएंगे। खुद पर काम काम करें,  तब जाकर समाज सुधरेगा।

अधिवेश के दौरान कहा गया कि देश में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण का भाव रखना ही चाहिए और यही सच्ची और शुद्ध राष्ट्र सेवा है। राष्ट्र जैसे छोटे से शब्द में विशाल, असीमित और बहुआयामी अर्थ और कर्तव्य बोध का सार समाहित हैं, इसलिए इस सार को आत्मसात करना अति आवश्यक है। देश के प्रत्येक नागरिक को अपने राष्ट्र प्रगति के लिए आवश्यक होता है कि वो जिस दशा में है, जिस परिस्थिति में है, जहां है, सकारात्मक सोच के साथ राष्ट्र को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें, अपने मूल कर्तव्य को सही तरीके से पहचाने। मनुष्य का जीवन अपने और परिवार के साथ-साथ समाज और राष्ट्र क लिए भी समर्पित रहना चाहिए। यदि प्रत्येक व्यक्ति में यह सोच हो, तो निश्चित रूप से एक बेहतर परिवार एवं समाज के साथ-साथ संगठन, सपनों के भारत का निर्माण भी संभव है। इसको मूर्त रूप देना हम सब की जिम्मेदारी है, यही हमारा राष्ट्र धर्म, संगठन धर्म है। सामाजिक संरचना को मजबूत बनाए रखना हमारा पुनीत, परम और अहम क‌र्त्तव्य है। इसके बिना मानव जीवन का कोई सार नहीं है, मानव जीवन अधूरा है। हम सभी को समाज की मजबूती का संकल्प साथ मिलकर लेना चाहिए, तब जाकर एक उत्तम राष्ट्र की परिकल्पना को आकार देकर उसे साकार किया जा सकता है। इसी संदेश के समायोजन के साथ संपर्क, सहयोग, संस्कार, सेवा, समर्पण के पंचसूत्र को आत्मसात करके भारत विकास परिषद का दो दिवसीय अधिवेशन सम्पन्न हुआ।

 

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