संवाददाताः संतोष कुमार दुबे

दिल्लीः RSS यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि हिन्दू संस्कृति में शत्रु का वध भी उसकी कल्याण की कामना के साथ अंतिम उपाय के रूप में किया जाता है, क्योंकि राजा का कर्त्तव्य प्रजा की रक्षा करना है और राजा को यह कर्त्तव्य अवश्य निभाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद आये डॉ. भागवत के इस बयान को पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि उन्होंने अपने बयान के दौरान पाकिस्तान का नाम नहीं लिया था।

डॉ. भागवत ने शनिवार को प्रधानमंत्री संग्रहालय में विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त महामंत्री स्वामी विज्ञानानंद की पुस्तक ‘दि हिन्दू मैनिफेस्टो’ के विमोचन के बाद समारोह को संबोधित करते हुए कहा पहलगाम हमले के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि अहिंसा हमारा धर्म है और गुंडों को सबक सिखाना भी हमारा धर्म है। हम अपने पड़ोसियों का कभी अपमान या नुकसान नहीं करते,  लेकिन फिर भी अगर कोई बुराई पर उतर आए तो दूसरा विकल्प क्या है? राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना है, राजा को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। कार्यक्रम में पहलगाम आतंकी हमले में जान गंवाने वाले पर्यटकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

उन्होंने कहा कि कुछ सदियों में कई प्रयोग हुए हैं लेकिन सफलता नहीं मिली। सुविधा, सुख बढ़े लेकिन समाधान नहीं निकला। भूमि अशुद्ध हो गयी। विकास हुआ। विश्व के पीछे जड़ता है चैतन्यता नहीं। दुनिया ने दाेनों प्रकार के पर्याय देखे हैं। तीसरा पर्याय केवल भारत में है।

डॉ. भागवत ने कहा कि भारत का कर्त्तव्य है कि वह मानवता को तीसरा पर्याय दे तीसरा रास्ता दिखाए। पूर्णता देने की क्षमता हमारी परंपरा में है। पूर्णदृष्टि के कारण ही श्रीमद्भागवत् गीता के मूल को समझें तो यह हर देश काल परिस्थिति के सुसंगत है। हालांकि इस बार बीते 12-15 सौ साल से इस दिशा में कोई विचार नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि एक कालखंड था जब हम वैभव और ज्ञान की परम स्थिति में थे। सुरक्षित एवं सुखी थे। ऊंच-नीच, छुआछूत, भेदभाव का कोई अस्तित्व नहीं था। शास्त्रों के आधार पर भेदों का शमन किया। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक ने हमें उन्हीं मूल्यों का स्मरण कराया है। आने वाले समय में इससे विचार मंथन होगा और तब एक परिमार्जित भाष्य आएगा।

उन्होंने कहा कि पर्याय देने के लिए शास्त्रार्थ शुरू करना जरूरी है। हमें दुनिया को सिखाना है कि हमारा विचार अहिंसक बनाने का है। रावण को मारना भी अहिंसा ही है, क्योंकि कुछ भी कर लो वो नहीं सुधरेगा। रावण का वध, रावण के कल्याण हेतु था। हम शत्रु को देखें तो यह देखें कि वह खराब है या अच्छा है।

उन्होंने कहा कि हमारा धर्म संतुलन देने वाला धर्म है। हमारे यहां स्पष्ट उल्लेख है। …अहिंसा ही हमारा स्वभाव, हमारा मूल्य है। हमारी अहिंसा लोगों को अहिंसक बनाने के लिए है। कुछ लोग (अहिंसक) बन जाएंगे, कुछ लोग बिगड़ जाएंगे…और इतने बिगड़ जाएंगे कि दुनिया में उपद्रव करेंगे। हम किसी के दुश्मन नहीं हैं। द्वेष हमारा स्वभाव नहीं है। रावण का वध भी उसके कल्याण के लिए हुआ। संहार को हिंसा नहीं कहते। आततायियों से मार न खाना और गुंडागर्दियों को सबक सिखाना, यह भी हमारा धर्म है। पाश्चत्य विचार पद्धति में यह दोनों चीजें एक साथ नहीं चल सकतीं। वहां यह संतुलन ही नहीं है, लेकिन हमारे यहां यह संतुलन है।

राजा का कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करनाः संघ प्रमुख ने कहा कि हम कभी भी अपने पड़ोसियों का कोई अपमान, कोई हानि नहीं करते, लेकिन अगर हम इस तरह रहें और तब भी कोई बुराई पर ही उतर आए तो हमारे पास दूसरा इलाज क्या है? राजा का तो कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करना है और राजा अपना कर्तव्य करेगा। गीता में अहिंसा का उपदेश है, लेकिन महाभारत में अर्जुन लड़े। उन्होंने लोगों को मारा क्योंकि उस समय उनके सामने ऐसे लोग थे कि उनका दूसरा इलाज नहीं था।

सनातन धर्म को सही अर्थों में समझने की आवश्यकताः डॉ. मोहन भागवत ने सनातन धर्म को सही अर्थों में समझने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि धर्म तब तक धर्म नहीं है जब तक वह सत्य, शुचिता, करुणा और तपस्या के चार सिद्धांतों का पालन नहीं करता। उन्होंने कहा कि इससे परे जो कुछ भी है वह अधर्म है।

उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान में हमने धर्म को कर्मकांड और खान-पान की आदतों तक सीमित कर दिया है, जैसे कि किसकी किस तरह पूजा की जानी चाहिए और क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। यह एक संहिता है… सिद्धांत नहीं। धर्म एक सिद्धांत है।

उन्होंने कहा कि यह संतुलन रखने की भूमिका को हम भूल गये थे। हमारे चार पुरुषार्थ भी संतुलन रखने वाले हैं। अर्थ और काम के बिना मोक्ष भी नहीं पाया जा सकता है, लेकिन अर्थ और काम को धर्म की मर्यादा में रहना होगा और धर्म हमेशा सत्य, करुणा, शुचिता एवं तपस की चौखट के भीतर ही रहता है। इसलिए हिन्दू समाज को समझना है कि हिन्दू धर्म वास्तव में क्या है। इस पुस्तक से योग्य आचरण एवं शास्त्र की तप पूर्ण सामग्री मिली है तो काल सुसंगत है।

हिंदू धर्मग्रंथों में अस्पृश्यता का उपदेश नहींः आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हिंदू समाज को हिंदू धर्म को समझने की आवश्यकता है, जो दुनिया के सामने अपनी परंपराओं और संस्कृति को पेश करने का सबसे अच्छा तरीका होगा। हिंदू धर्मग्रंथों में कहीं भी अस्पृश्यता का उपदेश नहीं दिया गया है। कोई भी ‘ऊंच’ या ‘नीच’ (ऊंचा या नीच) नहीं है। उन्होंने कहा यह कभी नहीं कहा जाता कि एक काम बड़ा है और दूसरा छोटा… अगर आप ऊंच-नीच देखते हैं, तो यह अधर्म है। यह दयाहीन व्यवहार है। मोहन भागवत ने कहा कि कई धर्म हो सकते हैं और उनमें से प्रत्येक उनका पालन करने वालों के लिए महान हो सकता है। लेकिन, व्यक्ति को अपने द्वारा चुने गए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए और दूसरों का सम्मान करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि किसी को बदलने की कोशिश मत करो। धर्म के ऊपर एक धर्म है। जब तक हम इसे नहीं समझेंगे, हम धर्म को नहीं समझ पाएंगे। धर्म के ऊपर वह धर्म आध्यात्मिकता है।

वहीं, इस कार्यक्रम में बोलते हुए स्वामी विज्ञानानंद ने कहा कि उनकी पुस्तक ‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ प्राचीन ज्ञान के सार को बताती है, जिसे समकालीन समय के लिए पुनर्व्याख्यायित किया गया है। उन्होंने कहा कि हिंदू विचार हमेशा वर्तमान की जरूरतों को संबोधित करता रहा है, जबकि ऋषियों द्वारा शक्तिशाली सूत्रों में निहित कालातीत सिद्धांतों में दृढ़ता से निहित रहा है।

हिंदू कभी ऐसा नहीं करतेः इससे पहले गुरुवार को बोलते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि हिंदू कभी किसी से उसका धर्म पूछकर उसे नहीं मारते। यह लड़ाई धर्म और अधर्म के बीच की है। उन्होंने कहा कि रावण को भी पहले सुधरने का मौका दिया गया था, लेकिन जब उसने बदलाव से इनकार कर दिया, तब राम ने उसका अंत किया। इसके साथ ही भागवत ने आगे कहा कि हमारे दिल में दुख है, हम गुस्से में हैं। लेकिन इस बुराई को खत्म करने के लिए ताकत दिखानी होगी।

 

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