संवाददाताः संतोष दुबे, प्रखर प्रहरी
नई दिल्लीः राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के रोहिणी में स्थित महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका विषय  “नारी शक्ति संगम : महिला – कल, आज और कल” का था। एक दिवसीय इस संगोष्ठी का आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन नारी शक्ति संगम द्वारा किया गया था। इस संगोष्ठी को तीन सत्रों में बांटा गया था। इसके उद्घाटन सत्र का विषय “भारतीय चिंतन में महिला” था, जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल हुईं श्रीमति मनु शर्मा कटारिया जी ने बताया कि वैदिक काल से ही भारतीय महिलाओं को आध्यात्मिक अधिकार, पति चयन का अधिकार, शैक्षणिक अधिकार प्राप्त थे। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में नारी शक्ति की संपूर्ण व्याख्या मिलती है।

उन्होंने बताया कि भारतीय दर्शन में स्त्री और पुरुष को एक दूसरे का पूरक माना गया है। जिस देश की संस्कृति पूरकता और एकात्मकता में निहित है, वहां पुरुष और नारी के बीच बराबरी की बात उचित नहीं लगती, लेकिन मुगल काल और मैकाले शिक्षा पद्धति ने स्त्री पतन में मुख्य भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि वर्ग संघर्ष को खत्म करने तथा समाज में एक नई जागृति के लिए आवश्यक है कि महिलाएं मानसिक रूप से संबल और स्वस्थ हों। समाज में अच्छे बदलाव के लिए स्त्री को स्वयं को भी बदलना होगा।

वहीं, महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज की निदेशक प्रो. डॉ. रजनी मल्होत्रा ढींगरा ने कहा कि नारी शक्ति की ऊर्जा से ही सृष्टि बनी हुई है। नारी शक्ति ने हमेशा ही समाज को जागृत तथा सचेत किया है। अब आवश्यकता है कि नारी को परिवार का संरक्षक मानते हुए सम्मान दिया जाए। साथ ही नारी की शिक्षा ऐसी हो कि वह अपनी पहचान स्वयं बनाए। वास्तविकता तो यह है कि नर और नारी मिलकर ही शक्ति बनते हैं।

इस संगोष्ठी के दूसरे सत्र का विषय था “वर्तमान में महिलाओं की स्थिति, प्रश्न एवम् करणीय कार्य” थे। वहीं, समापन सत्र का विषय “भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका” रही। इस दौरान केंद्रीय संचालन समिति, महिला समन्वय की प्रमुख एवं राष्ट्रीय सेवा भारती की अखिल भारतीय महामंत्री रेनू पाठक ने कहा कि भारत के विकास में प्रत्येक महिला को अपनी भूमिका तय करनी है। महिलाओं के लिए कुछ करणीय कार्य हो सकते हैं जैसे प्रत्येक महिला को अपने परिवार में भारतीय जीवन मूल्यों का संचार करते हुए भारतीय संस्कृति की सही जानकारी अगली पीढ़ी तक संप्रेषित करनी चाहिए। सामाजिक विकास के लिए राष्ट्रीय संपत्ति तथा  पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेत रहना चाहिए। देश के अभियानों, स्वास्थ्य विकास इत्यादि के प्रति भी सचेत रहना चाहिए।

सत्र की मुख्य अतिथि साध्वी ऋतंभरा जी की शिष्या साध्वी समाहिता जी ने कहा कि नारी तू ही नारायणी है। पुरुष के हर निर्णय में समाधान देने वाली स्त्री ही होती है। मातृशक्ति में कोई ग्रहण न लगने पाए, इसलिए ऐसे आयोजन निरंतर होने चाहिए। संस्कृति, श्रद्धा, शक्ति, मुक्ति और भक्ति जैसे सभी शब्द मातृशक्ति सूचक हैं। अब महिला को मुखर होकर खुद अपना चयन करना होगा। प्रत्येक माता अपनी बेटी का मित्र बनकर ही, उसको भ्रमित होने से रोक सकती है। जब पुरुष में मातृशक्ति का भाव जागता है तो वह देवता बन जाता है लेकिन जब स्त्री में पौरुष भाव जागता है तो वह स्त्री देवी बन जाती है।

इस कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रांत संयोजिका प्रतिमा लाकड़ा जी, मनीषा जी, भारती जी तथा  शशि ग्रोवर जी के साथ महिला समन्वय के सभी विभागों की स्त्री शक्ति की भागीदारी रही।

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