दिल्लीः जिस बात के कयास काफी दिनों से लगाए जा रहे थे, आखिरकार वही हुआ। वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। वहीं आजाद के कांग्रेस छोड़ने के ऐलान के बाद जम्मू-कश्मीर में पांच नेताओं जीएम सरूरी, हाजी अब्दुल राशिद, मोहम्मद अमीन भट, गुलजार अहमद वानी और चौधरी मोहम्मद अकरम ने भी कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इनमें सरूरी को छोड़कर बाकी सब पूर्व विधायक हैं।
गुलाम नबी आजाद ने अपने इस्तीफे के तौर पर पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पांच पन्ने की चिट्ठी भेजी है। इस्तीफे के इन पन्नों में 7 किरदार और 3 हालात हैं। इसमें आजाद ने सबसे सख्त टिप्पणी राहुल गांधी को लेकर की है। आजाद ने उन्हें कांग्रेस की बर्बादी की वजह बताया है। आइए अब आपको बताते हैं कि आजाद ने अपने पत्र में किसके बारे में क्या कहा हैः
सोनिया गांधी: बेशक कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर आपने यूपीए-1 और यूपीए-2 के गठन में शानदार काम किया। इस सफलता का सबसे बड़ा कारण यह था कि आपने अध्यक्ष के तौर पर बुद्धिमान सलाहकारों और वरिष्ठ नेताओं के फैसलों पर भरोसा किया, उन्हें ताकत दी और उनका ख्याल रखा।
राहुल गांधी: राहुल गांधी ने पार्टी में एंट्री के साथ ही सलाह के मैकेनिज्म को तबाह कर दिया। खासतौर पर जनवरी 2013 में उनके उपाध्यक्ष बनने के बाद तो पार्टी में यह सिस्टम पूरी तरह बंद हो गया। सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को साइड लाइन कर दिया गया और गैर अनुभवी चापलूसों का नया ग्रुप बन गया, जो पार्टी चलाने लगा।
खुद के बारे में: मैं लगातार 4 दशक तक कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य रहा। 35 साल तक मैं देश के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में पार्टी का जनरल सेक्रेटरी इंचार्ज भी रहा। मैं यह बताते हुए खुश हूं कि जिन राज्यों में मैं इंचार्ज रहा, उनमें से 90% में कांग्रेस को जीत मिली।
पार्टी: यूपीए सरकार की अखंडता को तबाह करने वाला रिमोट कंट्रोल सिस्टम अब कांग्रेस पर लागू हो रहा है। आप बस नाम के लिए इस पद पर बैठी हैं। सभी जरूरी फैसले राहुल गांधी ले रहे हैं, उससे भी बदतर यह है कि उनके सुरक्षाकर्मी और पीए ये फैसले ले रहे हैं।
इंदिरा:1977 के बाद संजय गांधी के नेतृत्व में यूथ कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी के पद पर रहते हुए मैं हजारों कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ एक जेल से दूसरी जेल गया। तिहाड़ जेल में मेरा सबसे लंबा समय 20 दिसंबर 1978 से जनवरी 1979 तक था। तब मैंने इंदिरा गांधी जी की गिरफ्तारी के खिलाफ जामा मस्जिद से संसद भवन तक विरोध रैली निकाली थी। हमने जनता पार्टी की व्यवस्था का विरोध किया और उस पार्टी के कायाकल्प का रास्ता बनाया, जिसकी नींव 1978 में इंदिरा गांधी जी ने रखी थी। 3 साल के महान संघर्ष के बाद 1980 में कांग्रेस पार्टी दोबारा सत्ता में लौटी।
संजय गांधी: छात्र जीवन से ही मैं आजादी की अलख जगाने वाले गांधी, नेहरू, पटेल, अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस के विचारों से प्रभावित था। संजय गांधी के कहने पर मैंने 1975-76 में जम्मू-कश्मीर यूथ कांग्रेस की अध्यक्षता संभाली। कश्मीर यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद 1973-75 तक मैं कांग्रेस के ब्लॉक जनरल सेक्रेटरी का जिम्मा भी संभाल रहा था। संजय गांधी की दुखद मृत्यु के बाद 1980 में मैं यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बना।
यूथ कांग्रेस का प्रेसिडेंट रहते हुए मुझे आपके पति राजीव गांधी को यूथ कांग्रेस में नेशनल काउंसिल मेंबर के तौर पर शामिल करने का सौभाग्य मिला। 1981 में कांग्रेस के स्पेशल सेशन के दौरान राजीव गांधी यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए। यह भी मेरी ही अध्यक्षता में हुआ। मैं राजीव गांधी के कांग्रेस पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बनने से लेकर उनकी दुखद हत्या तक इस बोर्ड का सदस्य रहा।
मौजूदा हालातः 2014 की हार: कांग्रेस की बर्बादी का सबसे ज्वलंत उदाहरण वह है, जब राहुल गांधी ने सरकार के अध्यादेश को पूरी मीडिया के सामने टुकड़े-टुकड़े कर डाला। कांग्रेस कोर ग्रुप ने ही यह अध्यादेश तैयार किया था। कैबिनेट और राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दी थी। इस बचकाना हरकत ने भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के औचित्य को खत्म कर दिया। किसी भी चीज से ज्यादा यह इकलौती हरकत 2014 में यूपीए सरकार की हार की बड़ी वजह थी। 2014 से 2022 का समय: 2014 में आपकी और उसके बाद राहुल गांधी की लीडरशिप में कांग्रेस शर्मनाक तरीके से 2 लोकसभा चुनाव हारी। 2014 से 2022 के बीच हुए 49 विधानसभा चुनावों में से हम 39 चुनाव हार गए। पार्टी ने केवल 4 राज्यों के चुनाव जीते और 6 मौकों पर उसे गठबंधन में शामिल होना पड़ा। अभी कांग्रेस केवल 2 राज्यों में शासन कर रही है और 2 राज्यों में गठबंधन में उसकी भागीदारी मामूली है।
गुलाम नबी आजाद पार्टी से अलग उस जी 23 समूह का भी हिस्सा थे, जो पार्टी में कई बड़े बदलावों की पैरवी करता है। उन तमाम गतिविधियों के बीच इस इस्तीफे ने गुलाम नबी आजाद और उनके कांग्रेस के साथ रिश्तों पर सवाल खड़ा कर दिया है।