प्रखर प्रहरी, नई दिल्लीः जंगल की कटाई होती गई और नए शहर बसते चले गए। आलीशान इमारतों और उनकी चमकधमक ने कुछ दिनों के लिए इंसानों की आंख पर तरक्की का पर्दा डाल दिया। गांव से शहरों की ओर अंधी दौड़ शुरू हो गई। खेत-खलिहान वीरान पड़ने लगे और काला धुआं उगलने वाली फैक्ट्रियों में गांव की नैसर्गिक हंसी समाने लगी। देर तक जागने और देर तक सोने वाले शहरों पर जमाने को गौरव महसूस होने लगा। जल्दी सोने और जल्दी जागने वाले ग्रामीणों को गंवार कहा जाने लगा, लेकिन जब जीवन की नींव हिलने लगी तो विशेषज्ञों को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि आखिर ऐसा क्योें हो रहा है।
दुनियाभर में शोध शुरू हो गए। मौसम के अंसतुलन पर शोध, ग्लेशियर के पिघलने पर शोध, हर साल दुनिया में आने वाली नई बीमारियों पर शोध… कई के परिणाम भी आ चुके हैं। और ये परिणाम बताते हैं कि यह कुछ और नहीं, बल्कि प्रकृति से दूर, यूं कहें प्रकृति के प्रतिकूल जीवनशैली का नतीजा है। डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, अस्थमा, मोटापा… ये सब क्या है।… कुछ और नहीं, प्रकृति और श्रमसाध्य जीवन से दूर होने का नतीजा। उगते हुए सूरज को न देख पाना और डूबते हुए सूरज से यारी, इन्हीं दो वजहों से घर करती है बीमारी। बुजुर्ग कहा करते थे- जिसने सूर्योदय नहीं देखा, वह भाग्योदय भला क्या देखेगा। और लोग भाग्योदय के पीछे उसके स्रोत सूर्योदय से ही दूर होते जा रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि Covid-19 या Corona या Sars Cov-2 भी अप्रत्यक्ष तौर पर जीवनशैली से जुड़ी बीमारी है। प्रकृति में तमाम तरह के वायरस यानी विषाणु होते हैं। यह बात अलग है कि कोरोना वायरस पर लैब मेड यानी चीन की वुहान स्थित प्रयोगशाला में विकसित किए जाने का आरोप है। लेकिन, यह बात तो प्रमाणित हो चुका है कि जिनकी प्रतरिक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम मजबूत है, उनके लिए यह बीमारी सर्दी-खांसी से ज्यादा कुछ भी नहीं। सवाल उठता है कि प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत कैसे होती है। प्रतिरक्षा प्रणाली प्रकृति के अनुकूल रहने से मजबूत होती है। सूर्य के संपर्क में रहना, प्रोटीनयुक्त और वसारहित भोजन की अधिकता, पर्याप्त मात्रा में पानी पीना, योग-व्यायाम पर ध्यान देना आदि ऐसे उपाय हैं, जिनके जरिये न सिर्फ हम प्रकृति के अनुकूल जीवन जी सकते हैं, बल्कि बीमारियों को खुद से दूर भी रख सकते हैं।
कोविड का नया वैरिएंट ओमाइक्रोन देश में बहुत तेजी से फैल रहा है। सरकार अपनी तरफ से तमाम उपाय कर रही है, लेकिन सतर्कता हमारी जिम्मेदारी और जवाबदेही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में इस वैरिएंट को लेकर स्थिति स्पष्ट की है। डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों का कहना है कि नया वैरिएंट भले ही कम घातक हो, लेकिन इसे हल्के में कतई नहीं लेना चाहिए। भले ही इससे जान का खतरा कम हो, लेकिन शारीरिक कष्ट तो बढ़ा ही देगा। इसलिए, जरूरी है कि प्रकृति के अनुकूल जीवनशैली अपनाएं और कोविड अनुकूल प्रोटोकाल यानी मास्क पहनना, शारीरिक दूरी बनाए रखना जैसे नियमोें का पालन जरूर करें।