स्टॉकहोमः इस साल साहित्य का नोबेल पुरस्कार तंजानिया के उपन्यासकार अब्दुलरजाक गुर्नाह को दिया गया है। नोबेल पुरस्कार समिति ने इसकी घोषणा कर दी है। समित ने अपने बयान में कहा, “उपनिवेशवाद के खिलाफ रजाक ने किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया। उन्होंने इस बुराई की जड़ पर अपने साहित्य के जरिए प्रहार किया। गुर्नाह की कोशिश है कि महाद्वीपों के बीच सांस्कृतिक अंतर की गहरी खाई को लेखनी के जरिए भरा जाए।“

नोबेल अकादमी की ओर से जारी बयान में कहा गया कि अब्दुल संस्कृति के विस्तार के हिमायती रहे हैं। उन्हें बचपन से ही साहित्य के क्षेत्र में कुछ कर गुजरने का शौक था। आप उनकी जीवन यात्रा में इसकी झलक देख सकते हैं। जीवन के आखिरी दौर में भी उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा।

अब्दुलरजाक गुर्नाह की दस उपन्यास और कई लघु कथाएं प्रकाशित हो चुकी हैं और उनकी लेखनी में शरणार्थी की समस्याएं प्रधान रही हैं। उन्होंने 21 वर्ष की उम्र से अंग्रेजी में लिखना शुरू किया, हालांकि शुरुआत में उनकी लिखने की भाषा स्वाहिली थी। बाद में उन्होंने अंग्रेजी को अपनी लेखनी का माध्यम बना लिया। 1948 में जन्मे अब्दुलरजाक गुर्नाह  जांजीबार द्वीप पर पले-बढ़े लेकिन 1960 के दशक के अंत में एक शरणार्थी के रूप में इंग्लैंड पहुंचे। वे केंट विश्वविद्यालय, कैंटरबरी में अंग्रेजी और उत्तर औपनिवेशिक साहित्य के प्रोफेसर रहे हैं।

वर्ष 2020 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार अमेरिकी कवयित्री लुईस ग्लूक को दिया गया था। लुईस येल यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं। उनका जन्म 1943 में न्यूयॉर्क में हुआ था। उनकी कविताएं प्राय: बाल्यावस्था, पारिवारिक जीवन, माता-पिता और भाई-बहनों के साथ घनिष्ठ संबंधों पर केंद्रित रही हैं। इसने कहा कि 2006 में आया उनका संग्रह एवर्नो एक शानदार संग्रह है।

वर्ष 1901 से शुरू हुए नोबेल पुरस्कार के 119 साल के इतिहास में दो बार साहित्य का नोबेल पुरस्कार स्थगित किया जा चुका है। 1943 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे पहली बार स्थगित किया गया था। दूसरी बार इसे 2018 में इस स्वीडिश एकेडमी की ज्यूरी मेंबर कटरीना के पति और फ्रांसीसी फोटोग्राफर जेन क्लोड अरनॉल्टपर यौन शोषण के आरोप लगने के कारण स्थगित किया गया था।

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