तीन नए केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के प्रतिनिधि आज एक बार फिर केंद्रीय मंत्रियों तथा सरकारी अधिकारियों के सामने बैठेंगे। सरकार तथा किसानों के बीच आज 7वें दौर की बातचीत होगी। इससे पहले दिल्ली की सीमाओं पर कड़ाके की सर्दी तथा कोरोना संकट के बीच आंदोलन कर रहे किसानों तथा सरकार के बीच छह दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका है। आंदोलनकारी किसान तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। वहीं सरकार इन कानूनों में संशोधन करने को तैयार है, लेकिन वापस लेने तथा रद्द करने को राजी नहीं है। दिल्ली की सीमाओं पर किसान किसानों के आंदोलन का आज 35वां दिन है। आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्या वजह है कि सरकार तथा किसानों के बीच बात नहीं बन रही है। इससे पहले की वार्ताओं में क्या हुआ। किसान किन मांगों पर अड़े हैं और सरकार की दलील क्या है?
14 अक्टूबर पहला दौरः 14 अक्टूबर की बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की जगह कृषि सचिव आए। किसान संगठनों ने बैठक का बहिष्कार कर दिया। किसानों ने साफ कहा कि वे कृषि मंत्री से ही बात करना चाहते हैं।
13 नवंबर दूसरा दौरः 13 नवंबर को सरकार तथा किसानों के बीच दूसरे दौरे की बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की। करीब 7 घंटे तक चली बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला।
01 दिसंबर तीसरा दौरः सरकार तथा किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच तीसरे दौर की बातचीत हुई। करीब तीन घंटे तक चली बैठक के दौरान सरकार ने विशेषज्ञ समिति बनाने का सुझाव दिया। वहीं किसान संगठन तीनों कानून रद्द करने की मांग पर ही अड़े रहे। बैठक बेनतीजा रही।
03 दिसंबर चौथा दौरः03 दिसंबर को किसानों तथा सरकार के बीच तीन दिसंबर को चौथे दौर की वार्ता हुई। करीब साढ़े सात घंटे तक चली बातचीत के दौरान सरकार ने वादा किया कि एमएसपी (MSP) न्यूनतम समर्थन मूल्य से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। वहीं किसानों ने कहा कि सरकार MSP पर गारंटी देने के साथ-साथ तीनों कानून भी रद्द करे।
05 दिसंबर 5वां दौरः पांच दिसंबर को हुई पांचवें दौर की वार्ता के दौरान सरकार एमएसपी (MSP) पर लिखित गारंटी देने को तैयार हुई, लेकिन किसानों ने साफ कहा कि कानून रद्द करने पर सरकार हां या न में जवाब दे।
08 दिसंबर 6वां दौरः तीन केंद्रीय कानूनों के खिलाफ किसानों ने इस दिन भारत बंद का आह्वान किया था। इसी दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किसानों के साथ बैठक की। इसके अगले दिन यानी 09 दिसंबर को सरकार ने किसानों के पास 22 पेज का प्रस्ताव दिया, जिसे किसान संगठनों ने ठुकरा दिया।
क्या था सरकारी प्रस्ताव में?
- एमएसपी (MSP) की खरीदी जारी रहेगी, सरकार ये आश्वासन लिखित में देने को तैयार है।
- किसानों और कंपनियों के बीच कॉन्ट्रैक्ट की रजिस्ट्री 30 दिन के भीतर होगी। कॉन्ट्रैक्ट कानून में स्पष्ट किया जाएगा कि कंपनिया किसान की जमीन पर लोन नहीं ले सकती हैं या गिरवी नहीं रख सकती हैं।
- सरकार की ओर से कहा गया किराज्य सरकारें चाहें तो प्राइवेट मंडियों पर भी फीस लगा सकती हैं। इसके अलावा मंडी व्यापारियों का रजिस्ट्रेशन जरूरी कर सकती हैं।
- किसान की जमीन कुर्की नहीं हो सकेगी। साथ ही किसानों को सिविल कोर्ट जाने का विकल्प भी मिलेगा।
- सरकार ने कहा कि बिजली बिल अभी ड्राफ्ट है, इसे नहीं लाएंगे और पुरानी व्यवस्था ही लागू रहेगी।
क्या ठुकराया किसानों ने प्रस्ताव?
किसान संगठनों के नेताओं का कहना है कि सरकार प्रस्ताव में 22 में से 12 पेजों पर इसकी भूमिका, बैकग्राउंड, इसके फायदे और आंदोलन खत्म करने की अपील और धन्यवाद है। इसमें कानूनों में क्या-क्या संशोधन करेंगे,यह नहीं बताया है। सरकार ने इसके बजाय हर मुद्दे पर लिखा है कि ऐसा करने पर विचार कर सकते हैं। वहीं तीनों कानून रद्द करने के जवाब में हां या न में जवाब देने की जगह लिखा है कि किसानों के कोई और सुझाव होंगे, तो उन पर भी विचार किया जा सकता है।
क्या हैं किसानों की मांगें?
- किसान कृषि से संबंधित तीनों नए केंद्रीय कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि कानूनों से कॉर्पोरेट घरानों को फायदा होगा।
- किसान एमएसपी (MSP) पर सरकार की तरफ से लिखित आश्वासन चाहते हैं।
- सरकार 2003 के बिजली कानून को संशोधित कर नया कानून लाने की तैयारी कर रही थी।, जिसका किसान संगठन विरोध कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि इससे किसानों को बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी खत्म हो जाएगी।
- इसके अलावा किसानों की एक मांग पराली जलाने पर लगने वाले जुर्माने का प्रस्ताव खत्म करने की भी है। इसके तहत पराली जलाने पर किसान को 5 साल तक की जेल और एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना लग सकता है।
क्यों नहीं बन रही है बात?
सरकार तथा किसानों के बीच बात नहीं बनने की मुख्य वजह जिद्द है। किसान संगठन तीनों नए केंद्रीय कृषि कानूनों रद्द करने की मांग पर अड़े।, जबकि सरकार ने साफ कह दिया है कि कानून को न वापस लिया जा सकता है और न ही रद्द किया जा सकता है। किसानों के जो भी सुझाव होंगे, उसके मुताबिक से इनमें संशोधन कर सकते हैं।