मोदी सरकार के लिए अब उनके ही बनाए नए कृषि कानून गले का फंदा बनते जा रहे हैं. भारत में पिछले चार हफ्ते से किसानों का विरोध जारी है, वहीं अब दुनिया के कई देशों में रह रहे भारतीय प्रवासी किसान केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं. सैकड़ों सिख ध्यान आकर्षित करने और अपने सिख भाइयों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.
आपको बता दें कि अभी विरोध ऑस्ट्रेलिया-भारत टेस्ट मैच के दौरान एडिलेड ओवल के बाहर हुआ था, जहां प्रदर्शनकारियों ने ‘हम किसानों के साथ खड़े हैं’ लिखी तख्तियां थाम रखी थीं और भारत सरकार से किसानों की चिंताओं को सुनने की मांग की थी. ऑस्ट्रेलियाई सांसद रॉब मिशेल और रसेल वोर्टली उनमें से हैं, जिन्होंने प्रदर्शनकारी किसानों पर चिंता व्यक्त की है.
वहीं सबसे मुखर पंजाबी सांसदों में से एक ब्रिटिश लेबर सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी हैं, जिन्होंने किसानों को ‘अलगाववादियों या आतंकवादियों’ के रूप में पेश कर गलत जानकारी फैलाने के लिए मीडिया को आड़े हाथों लिया था. ढेसी ने ट्वीट कर कहा है, “मीडिया के कुछ लोगों ने शांतिपूर्ण किसानों, या उनके लिए बोलने वालों को अलगाववादियों या आतंकवादियों के रूप में पेश कर गलत जानकारी फैलाना शुरू कर दिया है. आप अपने राष्ट्र और पेशे को नुकसान पहुंचा रहे हैं.” उन्होंने आगे कहा था कि “आपकी गाली और धमकी मुझे सच बोलने से रोक नहीं पाएगी.”
किसानों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए, कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन ने कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के क्रूर होने की खबरें बहुत परेशान करने वाली थीं. उन्होंने ट्वीट कर कहा, “मेरे कई कन्स्टिचुएन्ट के वहां परिवार हैं और अपने प्रियजनों की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं. स्वस्थ लोकतंत्र शांतिपूर्ण विरोध की अनुमति देता है. मैं इसमें शामिल लोगों से मौलिक अधिकार को बनाए रखने का आग्रह करता हूं.”
वहीं, कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन टड्रो ने भी भारतीय किसानों को समर्थन दिया था, जिस पर भारत सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. ब्रिटिश सांसद प्रीत कौर गिल ने कहा, “दिल्ली से चौंकाने वाले दृश्य.” पिछले सप्ताह एक संयुक्त बयान में 170,000 से अधिक ब्रिटिश सिख संगठनों, गुरुद्वारों और मानवाधिकार समूहों ने भारत सरकार से कृषि संकट के मानवीय प्रभाव पर विचार करने और प्रदर्शनकारियों के प्रति दयालुता दिखाने का आग्रह किया, जिनमें से कई बुजुर्ग हैं.
आपको बता दें कि इस किसान आंदोलन के पीछे किसानों की परेशानी क्या है? किसान कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ये कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली और मंडियों को खत्म करने का काम करेगा, जिसके बाद वे बड़े कॉर्पोरेट संस्थानों की दया जिन्दा रहेंगे.