पाकिस्तान की एक विशेष अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को देशद्रोह के मामले में मंगलवार को फांसी की सजा सुनायी है। पाकिस्तान के 72 के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी पूर्व तानाशाह को फांसी की सजा सुनाई गयी है।
पेशावर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वकार अहमद सेट की अगुवायी वाली विशेष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने मंगलवार को पूर्व सैन्य तानाशाह को 2-1 के मत से सजा-ए-मौत की सजा सुनायी। मुशर्रफ को सजा सुनाने वाली विशेष अदालत की पीठ में न्यायाधीश सेट के अलावा सिंध उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नजर अकबर और लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शाहिद करीम शामिल थे।अस्वस्थ चल रहे पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ फिलहाल संयुक्त अरब अमीरात के दुबई शहर में हैं। उन पर तीन नवंबर 2007 से आपातकाल लागू करने को लेकर दिसंबर 2013 में देश द्रोह का मामला दर्ज किया गया था। इस मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने 19 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और फैसला सुनाने की लिए 28 नवंबर की तारीख मुकर्रर की थी, लेकिन फैसले वाले दिन से एक-दो दिन पहले इमरान खान नीत पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सरकार ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मुशर्रफ मामले में विशेष अदालत के अंतिम फैसले को रोकने का अनुरोध किया। इसके बाद 27 नवंबर को न्यायालय ने विशेष अदालत के फैसले पर रोक लगा दी थी।न्यायालय ने इसके अलावा सरकार को पांच दिसंबर तक अभियोजकों की एक टीम नियुक्त करने का भी निर्देश दिया था। पांच दिसंबर को नयी अभियोजक टीम सरकार की ओर से विशेष अदालत के समक्ष पेश हुई जिसके बाद विशेष अदालत ने मामले की सुनवाई 17 दिसंबर को स्थगित कर दी। अदालत ने कहा था कि वह मामले की सुनवाई के बाद फैसला भी उसी दिन कर देगी।
सरकारी वकील अली जिया बाजवा ने मंगलवार को मामले की सुनवाई के बाद कहा कि उन्होंने आज अदालत में तीन याचिकायें दाखिल की थीं। इनमें से एक याचिका में पूर्व प्रधानमंत्री शौकत अजीज, उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अब्दुल हमीद डोगर और पूर्व कानून मंत्री जाहिद हामिद को इस मामले में आरोपी बनाने की मांग की गयी।
विशेष अदालत के जज एवं लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शहिद करीम ने कहा कि साढ़े तीन साल के बाद इस प्रकार के अनुरोध का मतलब है कि सरकार की नीयत सही नहीं है। आज मामले पर अंतिम बहस की जा रही है ऐसे में अब नयी याचिकायें दाखिल की जा रही हैं।

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