दिल्लीः अगर आप दिल्ली में रहते हैं, तो आपको कबूतरों से सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी में इन दिनों कबूत जानलेवा बीमारी फैला रहे हैं। इस जानलेवा बीमारी का नाम हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस । आपको बता दें कि पूर्वी दिल्ली में रहने वाले नाबालिग लड़के को खांसी ने ग्रसित किया। कुछ दिनों तक जब खांसी ठीक नहीं हुई, तो परिजन उसे सर गंगाराम अस्पताल ले गए। इस बीच लड़के की तबीयत बिगड़ती गई। उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी। हालत ज्यादा खराब हुई तो उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार डॉक्टर्स को शुरुआती जांच में पता चला कि लड़के के फेफड़ों में सूजन है। फिर मेडिकल स्क्रीनिंग की गई तो नतीजे हैरान करने वाले थे। उसे फेफड़ों की रेयर बीमारी हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (Hypersensitivity pneumonitis या HP) हो गई थी। इसे एक तरह का निमोनिया कह सकते हैं, जो काफी घातक है।

डॉक्टरों ने जब केस स्टडी की, तो पता चला कि लड़के को फेफड़ों की यह गंभीर एलर्जिक समस्या कबूतर की बीट और पंखों के संपर्क में लंबे समय तक रहने के कारण हुई। यह एक रेयर, लेकिन बेहद गंभीर मेडिकल कंडीशन है, जो कई बार जानलेवा भी हो सकती है। तो चलिए आज हम बात करते हैं कि इस रेयर लंग डिजीज हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस की और जानने की कोशिश करते हैं कि यह जानलेवा बीमारी क्या है… सबसे पहले बात करते हैं कि इस बीमारी को लेकर मन में उठने वाले सवालों की…

  • हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस क्या लक्षण होते हैं?
  • यह दूसरे एलर्जिक रिएक्शंस से कैसे अलग है?
  • यह बीमारी होने पर क्या होता है?
  • इससे बचाव कैसे कर सकते हैं?

आपको बता दें कि दिल्ली नगर निगम और वन विभाग के बीच इस बात पर बहस होती रहती है कि कबूतरों की फैलाई गंदगी को साफ करने की जिम्मेदारी किसकी है। हर बार बात यहां आकर खत्म होती है कि शहर में निजी और सार्वजनिक स्थानों पर कबूतरों ने कब्जा कर लिया है। इसलिए किसी एक के ऊपर जिम्मेदारी डालने की बजाय दोनों को मिलकर इस काम के लिए पैसे देने चाहिए।

हालांकि सच तो यह है कि इंसानों ने जैसे-जैसे विकास और सभ्यता की सीढ़ियां चढ़ीं, जंगल कटते गए और मकान और बहुमंजिला इमारतें बनती गईं। पक्षियों से उनके असली घर यानी पेड़ और जंगल छिन गए। अब कंक्रीट के मकानों की बालकनी और छतों पर बसेरा बनाना उनकी मजबूरी है। यही कारण है कि बहुत से शहरी इलाकों में ये कबूतर एक बड़ी समस्या बन गए हैं। हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस की केस स्टडी के बाद यह समस्या और भी गंभीर नजर आ रही है।

क्या है हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिसः यह एक प्रकार का एलर्जिक रिएक्शन है, जिसके कारण फेफड़ों में सूजन आ जाती है। फेफड़ों पर हमला करने वाले ये एलर्जेंस कई माध्यमों से और कई रूपों में हम तक पहुंच सकते हैं। जैसेकि-

  • बैक्टीरिया
  • फंगई
  • मोल्ड (पुरानी खराब चीजों में पैदा होने वाला एक खास तरह का फंगल ऑर्गेनिज्म, लेकिन यह बैक्टीरिया या फंगई से अलग होता है।)
  • कुछ खास तरह के केमिकल या धातु
  • खास तरह के एनिमल प्रोटीन
  • खास तरह के प्लांट प्रोटीन

एक्यूट HP एलर्जी के लक्षण तेजी से उभरते हैं और इन्हें उतनी ही तेजी से दूर भी किया जा सकता है। लेकिन क्रॉनिक HP एलर्जी होने से लंग्स पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। इसके कारण लंग्स में गहरे घाव हो सकते हैं या अपरिवर्तनीय क्षति भी हो सकती है।

हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस के लक्षण क्या हैंः इसके लक्षण एक्यूट (तीव्र) या दीर्घकालिक हो सकते हैं। तीव्र लक्षण एलर्जी होने के कुछ घंटों के भीतर सामने आ जाते हैं और कुछ घंटे या कुछ दिनों तक बने रह सकते हैं।

जबकि क्रॉनिक लक्षण धीरे-धीरे विकसित हो सकते हैं और समय के साथ बदतर हो सकते हैं। दोनों स्थितियों में किस तरह के लक्षण सामने आते हैं, ग्राफिक में देखिए:

हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस से संबंधित सवालों के जवाबः

क्या हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस गंभीर बीमारी हैः

जवाब: कई केसेज में यह गंभीर भी हो सकती है, अगर कोई शख्स इसके एलर्जी कारकों के बार-बार संपर्क में आ रहा है। इसके चलते फेफड़ों में हुई सूजन स्थायी क्षति का कारण बन सकती है। यह इस पर भी निर्भर करता है कि कितनी जल्दी बीमारी को डायग्नोस का लिया गया और उसका समय पर सही इलाज किया गया।

चूंकि इसके लक्षण खांसी, सर्दी जैसे होते हैं, इसलिए कई बार लोग इसे सामान्य फ्लू समझकर घरेलू इलाज करते रहते हैं या डॉक्टर भी सामान्य फ्लू समझकर एंटीबायोटिक्स दे देते हैं।

हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस और दूसरी तरह की ऐसी ही एलर्जी के बीच बुनियादी अंतर क्या है?

जवाब: घास, पेड़, पत्तियों या पालतू जानवरों से होने वाली सामान्य एलर्जी की तुलना में HP एलर्जी बहुत अलग तरीके से रिएक्ट करती है। घास-फूस या पालतू जानवरों से होने वाली एलर्जी से बुखार या अस्थमा होने का डर होता है, जबकि HP एलर्जेंस के बार-बार संपर्क में आने से फेफड़ों में सूजन हो सकती है। यह सूजन इन्हें स्थायी रूप से डैमेज कर सकती है।

हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस होने पर कैसा महसूस होता है?

जवाब: एक्यूट HP एलर्जी होने पर शुरू में फ्लू जैसे लक्षण महसूस हो सकते हैं। इसमें सर्दी और खांसी जैसी समस्याएं होती हैं। फिर धीरे-धीरे सांस लेने में समस्या होने लगती है।

वहीं क्रॉनिक HP बहुत धीरे-धीरे विकसित होता है और इसका पता लगाना कई बार कठिन हो जाता है। हालांकि गौर किया जाए तो कुछ लक्षण दिखते हैं। जैसे पहलेे की तुलना में जल्दी थकान महसूस हो सकती है। सांस लेने में हल्की तकलीफ और कभी सूखी खांसी आ सकती है।

क्या कोविड-19 की वजह से हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस हो सकता है?

जवाब: डॉक्टरों के पास इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि कोविड-19 के कारण HP एलर्जी हो सकती है। हां, यह जरूर है कि कोविड में भी फेफड़ों में सूजन हो जाती है, जो कई बार HP एलर्जी जैसी ही दिखती है। यह भी देखा गया है कि अगर कोई पहले से HP एलर्जी से पीड़ित है तो उसकी हेल्थ कंडीशन कोविड-19 संक्रमण के कारण और खराब हो सकती है।

हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस से निजात कैसे मिल सकती है?

जवाब: अगर कोई शख्स क्रॉनिक HP एलर्जी का शिकार हुआ है तो इसका इलाज बहुत मुश्किल है। जबकि एक्यूट और सबएक्यूट कंडीशन अपने आप या दवाओं के सहारे ठीक हो सकती है। लेकिन यह जरूरी है कि आप बार-बार HP एलर्जेंस के संपर्क में न आ रहे हों।

हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस से पीड़ित व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा क्या है?

जवाब: HP एलर्जी से पीड़ित किसी व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा उसके फेफड़ों को हुए नुकसान की गंभीरता पर निर्भर करती है। अगर वे बहुत अधिक डैमेज हो गए हैं तो इनका प्रत्यारोपण ही एक उपाय है। इसे ऐसे समझिए कि-

  • अगर लंग्स में सिर्फ सूजन है और निशान पड़ गए हैं, लेकिन घाव नहीं हुए हैं तो व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा जांच के बाद 15 वर्ष से अधिक हो सकती है।
  • अगर लंग्स में सिर्फ सूजन के साथ मधुमक्खी के छत्ते की तरह गड्ढे बन गए हैं तो जीवन प्रत्याशा जांच के बाद लगभग 8 साल होती है।
  • अगर फेफड़ों में गंभीर क्षति, सूजन और मधुमक्खी के छत्ते की तरह गड्ढे सभी मेडिकल कंडीशन हैं तो ऐसे व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा जांच के बाद लगभग 3 साल होती है।

किन्हें है अधिक खतराः जो लोग ऐसे व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, जहां लंग्स एलर्जी का जोखिम ज्यादा है तो HP एलर्जी का खतरा भी अधिक होता है। ग्राफिक में देखिए, किसे अधिक जोखिम है।

बचाव के उपायःअगर क्रॉनिक HP एलर्जी है तो इसके कारण लंग्स को हुए नुकासन की भरपाई नहीं की जा सकती है। इसलिए सबसे हितकर है इस बीमारी से बचाव।

इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका फेफड़ों में सूजन पैदा करने वाले एलर्जी कारकों के संपर्क में आने से बचना है। सभी संभावित एलर्जी कारकों से दूरी बनानी है। अगर हमारा घर या प्रोफेशन ऐसे एलर्जिक रिएक्शन के कारकों के आसपास है तो जोखिम कम करने के लिए कुछ उपाय कर सकते हैं।

  • अगर धातु के परिष्करण (मेटल रिफाइनरी), पक्षियों या जानवरों के पालन, लकड़ी या कागज के काम, अनाज और खेती से जुड़े काम करते हैं तो अपना मुंह हमेशा ढंककर रखें। अगर संभव हो तो काम के समय मास्क जरूर पहनें।
  • ह्यूमिडिफायर, हॉट टब और हीटिंग या कूलिंग सिस्टम इस्तेमाल करते हैं तो समय-समय पर इनकी साफ-सफाई करवाते रहें।
  • फेदर्स से तैयार किए गए रजाई-गद्दे का इस्तेमाल न करें।
  • पालतू जानवरों और पक्षियों के रहने के स्थान को साफ-सुथरा रखें। उस जगह की सफाई करते हुए मास्क अवश्य पहनें।

नोटः आज हमने बात की है कबूतरों से फैलने वाली Hypersensitivity pneumonitis या HP बीमारी की। अगली बार हम लेकर आएंगे एक और अहम जानकारी, क्योंकि हम आप तक हर वो अहम जानकारी पहुंचाने के लिए वचबद्ध है, जो आपके जीवन का प्रभावित करती हैं।

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