प्रखर प्रहरी
इंदौरः साथ चलना है तो तलवार उठा मेरी तरह, मुझसे बुज़दिल की हिमायत नहीं होने वाली…इन्हीं शब्दों के सहारे मशहूर शायर राहत इंदौरी ने खुले तौर पर केंद्र सरकार के विवादित सीएए और एनआरसी की खिलाफत की थी। लेकिन यह बेबाक अंदाज और ऐसा अल्हड़पनम अब हमें दिखाई नहीं देगा। दिल में हिंदुस्तान और शायरी में इंसानियत को पिरोकर रखने वाले राहत इंदौर अब हमारे बीच नहीं रहे। 70 वर्षीय राहत इंदौरी का 11 अगस्त की शाम इंदौर के अरबिंदो अस्पताल में निधन हो गया। राहत साबह के निधन से उर्दू जगत सन्नाटा पसर गया है। उन्हें रात साढ़े नौ बजे छोटी खजरानी (इंदौर) कब्रस्तान में सुपुर्दे खाक कर दिया गया।
बेबाक अंदाज में अपनी बात रखने के लिए मशहूर राहत इंदौरी को तबीयत बिगड़ने के बाद गत रविवार को इंदौर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यहां कोरोना की जांच की गई और जांच में वह कोविड-19 से संक्रमित पाये गये। इसके बाद उन्हें अरबिंदो अस्पताल में शिफ्ट किया गया, जहां उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई और आज शाम उन्होंने आखिरी सांसद ली।
राहत साहब ने इंदौर के बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी से उर्दू में एमए यानी स्नातकोत्तर की पढ़ाई की थी तथा भोज यूनिवर्सिटी ने उन्हें उर्दू साहित्य में पीएचडी से नवाजा था। उन्होंने मुन्ना भाई एमबीबीएस, मीनाक्षी, खुद्दार, नाराज, मर्डर, मिशन कश्मीर, करीब, बेगम जान, घातक, इश्क, जानम, सर, आशियां और मैं तेरा आशिक जैसी फिल्मों में गीत लिखे।
एक जनवरी 1950.. यानी रविवार को मध्य प्रदेश के इंदौर में रिफअत उल्लाह साहब के घर राहत साहब की पैदाइश हुई थी। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक या 1369 हिजरी थी और तारीख 12 रबी उल अव्वल। उनके वालिद रिफअत उल्लाह 1942 में मध्य प्रदेश के देवास जिले के सोनकछ से इंदौर आए थे। उनके बचपन का नाम कामिल था। बाद में इनका नाम बदलकर राहत उल्लाह कर दिया गया। राहत साहब का बचपन मुफलिसी में गुजरा। उनके वालिद ने इंदौर में ऑटो चलाया और मिल में काम किया। हालात तब और बदतर हो गये जब 1939 से 1945 तक दूसरे विश्वयुद्ध के असर मिलें बंद हो गईं या वहां छंटनी करनी पड़ी। राहत साहब के वालिद की भी नौकरी भी चली गई। हालात इतने खराब हो गए कि राहत साहब के परिवार को बेघर होना पड़ गया था।