भारत में प्राण घातक महामारी कोरोना का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है। देश में कोविड-19 से अब तक लगभग साढ़े सात लाख लोग प्रभावित हो चुके हैं। भारत अमेरिका तथा ब्राजील के बाद कोविड-19 से सर्वाधिक प्रभावित होने वाला दुनिया की तीसरा देश बन गया है। वहीं इस जानलेवा विषाणु के कार यहां अब तक लगबग 21 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। इस बीच सरकार की ओर से कोविड-19 से जुड़ी सूचनाओं में कमी होना चिंतनीय विषय है।

इस संक्रमण ने तमिलनाडु के बाद कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में तेजी से पैर पसारना शुरू कर दिया है। कोरोना से हालात बिगड़ते देख केरल सरकार को तिरुवनंतपुरम में एक हफ्ते के लिए ‘ट्रिपल लॉकडाउन’ की घोषणा करनी पड़ी। उधर असम सरकार ने गुवाहाटी में इस महामारी को कम्यूनिटी स्तर पर पहुंचने की जानकारी दी है। इन सूचनाओं का यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि हालात हर मोर्चे पर बिगड़ते ही जा रहे हैं।

बात राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की करें तो यहां कोरोना के कारण स्थिति भयावह होती जा रही है। हालांकि यहां पर इस संक्रमण की रफ्तार थोड़ी धीमी हुई है। दिल्ली में 23 जून को रिकॉर्ड 3947 मामले दर्ज किये गये थे। इसके बाद 24, 25 और 26 जून को रोजना 3000 से ऊपर मामले दर्ज किये गये थे। लेकिन 27 जून के बाद यहां पर नये संक्रमण के मामले में कमी आने लगी। इसके बाद के हफ्ते में दैनिक औसत 2494 है। देश में कोरोना से सबसे खराब स्थिति महाराष्ट्र की है। राज्य में इस महामारी से अब तक 217121 लोग प्रभावित हुए हैं। वहीं 9250 लोग अब तक इसके कारण जान गंवा चुके हैं।

भारत के लिए राहत की बात यह है कि दुनिया के अन्य देशों की तुलना में यहां मृत्यु और संक्रमण का अनुपात काफी कम है। विश्व में जहां कोविड-19 से होने वाली मृत्यु दर 4.7 प्रतिशत है, वहीं भारत में यह 2.8 फीसदी दर्ज किया गया है। देशभर के स्वास्थ्यकर्मी इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में जी-जान से डटे हुए हैं। दिल्ली के छतरपुर में महज दस दिन में दुनिया का सबसे बड़ा कोरोना अस्पताल बन जाना और काम करना शुरू कर देना अपने आप में एक मिशाल है। लेकिन सूचनाओं की कमी इस महामारी की खिलाफ विश्वस्तर पर चल रही कोविड-19 विरोधी लड़ाई में हमारी कमजोरी को रेखांकित कर रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में कोरोना से जुड़ी सूचनाएं जितनी आसानी से मुहैया करवाई जानी चाहिए थीं, वह नहीं हो रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक जैसे-जैसे हालात गंभीर होते गए, स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी बुलेटिन में सूचनाएं कम होती गईं। मरीजों की संख्या तो उसमें होती है लेकिन उम्र, क्षेत्र और मरीज की स्थिति आदि से जुड़े पर्याप्त ब्यौरे नहीं होते हैं। बुलेटिनों की संख्या कम होना और नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस बंद हो जाना इस बात की ओर संकेत कर रहे हैं कि सूचनाएं उपलब्ध कराने में सरकार की दिलचस्पी कम हो गई है। संभवतः इन्हीं वजहों से डब्ल्यूएचओ को कहना पड़ा कि भारत में कोरोना से जुड़े आंकड़ों को लेकर एक राष्ट्रीय गाइडलाइन जारी होनी चाहिए। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में इन सूचनाओं की भूमिका बहुत बड़ी हो सकती है, इसलिए सरकार को सूचनाओं का हर स्तर पर अबाधित प्रवाह सुनिश्चित कराना चाहिए।

शोभा ओझा…लेखिका, प्रखर प्रहरी की प्रबंध निदेशक है।

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