Old compass on vintage map with rope closeup. Retro stale

दिल्लीः आज ही के दिन घटित हुई जिन दो अति महत्वपूर्ण घटनाओं को जिक्र करना जरूरी है, उनमें भारत की अंतरिक्ष में उड़ान और अमेरिका में स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत शामिल है। भारत के अंतरिक्ष सफर की शुरुआत आज के ही दिन 1975 में हुई थी, जब भारत ने अपना पहला सैटेलाइट ‘आर्यभट्ट’ अंतरिक्ष में लॉन्च किया था। भारत के पहले सैटेलाइट का नाम महान खगोलविद और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था।

आर्यभट्ट की लॉन्चिंग के बाद भारत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अंतरिक्ष के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल हो गया। अब तो आलम ये है कि दुनिया के कई देश अंतरिक्ष में अपने सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए भारत के अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन ISRO की मदद लेते हैं।

भारत ने अपने पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट को सोवियत संघ की मदद से लॉन्च किया था। वैसे तो आर्यभट्ट का निर्माण पूरी तरह भारत में ही किया गया था, लेकिन उस समय भारत के पास सैटेलाइट लॉन्चिंग के लिए जरूरी रिर्सोसेज नहीं थे। इसके लिए भारत ने सोवियत संघ से समझौता किया था। इस समझौते के तहत भारत के सैटेलाइट को सोवियत संघ के रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में भेजने पर सहमति बनी थी।

इस सैटेलाइट को बैंगलोर के पास पीन्या में ISRO ने तैयार किया था। आर्यभट्ट को सोवियत संघ के वोल्गोगार्ड लॉन्च स्टेशन से कॉसमॉस-3M रॉकेट से लॉन्च किया गया था।

आर्यभट्ट को सफलतापूर्वक लॉन्च करने के चार दिन बाद ही कुछ गड़बड़ियां सामने आने लगीं और आखिरकार पांचवें दिन सैटेलाइट से संपर्क टूट गया। हालांकि, बाद में संपर्क फिर से जुड़ गया था। अंतरिक्ष में करीब 17 साल रहने के बाद सैटेलाइट आर्यभट्ट 10 फरवरी 1992 को पृथ्वी के वातावरण में लौट आया।

आर्यभट्ट को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करना भारत और सोवियत संघ दोनों के लिए बड़ी उपलब्धि थी। रिजर्व बैंक ने इस ऐतिहासिक दिन को सेलिब्रेट करने के लिए 1976 और 1997 में 2 रुपए के नोट पर इस सैटेलाइट की तस्वीर छापी थी।

वहीं अमेरिका के आज ही के दिन 1775 में स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हुई थी। उस समय अमेरिकी महाद्वीप पर इंग्लैंड का कब्जा था। अंग्रेजों ने इस महाद्वीप पर 13 उपनिवेश स्थापित किए थे। 1775 से 1783 तक चले आजादी के संघर्ष में इन 13 कॉलोनियों ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। आखिरकार इन्हें स्वतंत्रता मिली और संयुक्त राज्य अमेरिका का गठन हुआ। इस संग्राम को ‘क्रांतिकारी युद्ध’ या ‘अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम’ भी कहते हैं।
इस क्रान्ति में अमेरिकी सेना का नेतृत्व जनरल जॉर्ज वॉशिंगटन ने किया था, जो बाद में 1789 में अमेरिका के पहले राष्ट्रपति बने। उन्हें वर्तमान अमेरिका का राष्ट्र-निर्माता कहा जाता है।

अमेरिकी क्रांति की शुरुआतः आज के ही दिन यानी 19 अप्रैल 1775 को अमेरिका के स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हुई थी। उस समय अमेरिकी महाद्वीप पर इंग्लैंड का कब्जा था। अंग्रेजों ने इस महाद्वीप पर 13 उपनिवेश स्थापित किए थे। इंग्लैंड द्वारा इन 13 उपनिवेशों का शोषण किया जाता था। सभी नीतियां इंग्लैंड द्वारा बनाई जाती थीं। 1775 से 1783 तक चले इस संघर्ष में इन 13 कॉलोनियों ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। अंतत: इन्हें स्वतंत्रता मिली और संयुक्त राज्य अमेरिका का गठन हुआ। इस संग्राम को ‘क्रांतिकारी युद्ध’ या ‘अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम’ भी कहते हैं।

इस पूरी क्रान्ति के दौरान अमेरिकी सेना का नेतृत्व जनरल जॉर्ज वाशिंगटन द्वारा किया गया। बाद में उन्हें 1789 में अमेरिका का पहला राष्ट्रपति चुना गया। 14 दिसम्बर 1799 को वाशिंगटन की मृत्यु हो गई। उन्हें वर्तमान अमेरिका का राष्ट्र-निर्माता कहा जाता है। अमेरिका के वाशिंगटन शहर का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।

चार्ल्स डार्विन का निधनः बात साल 1859 की है। इस साल ‘ओरिजिन ऑफ स्पीशीज’ नामक एक किताब छपी जिसने दुनिया के बारे में सोच बदल दी। इस किताब पर उस वक्त बेहद हंगामा हुआ। किताब ने धार्मिक मान्यताओं को बुरी तरह खारिज किया था। किताब ने दावा किया था कि विज्ञान के तथ्यों के मुताबिक दुनिया किसी चमत्कार से नहीं बनी।

इस किताब के लेखक थे चार्ल्स डार्विन। उनका जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड के शोर्पशायर में हुआ था। उनके पिता रॉबर्ट डार्विन डॉक्टर थे। बचपन से ही चार्ल्स डार्विन प्रकृति और पशु-पक्षियों को निहारने और फूल-पत्तियों के नमूने इकट्ठा करने में अपना समय गुजारा करते थे। उनके पिता चाहते थे कि बेटे को भी अपनी ही तरह डॉक्टर बनाऊं। इसके लिए उन्होंने चार्ल्स का दाखिला मेडिकल कॉलेज में कराया, लेकिन वहां चार्ल्स का मन नहीं लगा और उन्होंने बीच में ही मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी। वनस्पति शास्त्र में उनकी रुचि को देखते हुए बाद में उनका दाखिला कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में कराया गया, जहां से 1831 में चार्ल्स डार्विन ने डिग्री प्राप्त की।

जीव विज्ञान में महत्वपूर्ण थ्योरीज देने वाले डार्विन को ‘जीवन की उत्पत्ति’ के बारे में मूलभूत सिद्धांतों के लिए जाना जाता है। पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत और विकास के बारे में डार्विन ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तथ्यों के आधार पर जिन थ्योरीज को दिया, उन्होंने कई मान्यताओं को हिला दिया था। आज ही के दिन 1882 में इस महान वैज्ञानिक ने दुनिया को अलविदा कह दिया। आइए एक नजर डालते हैं देश और दुनिया में 19 अप्रैल को घटित हुईं महत्वपूर्ण घटनाओं परः

1451: बहलोल खान लोदी ने दिल्ली पर कब्जा किया।
1770: कैप्टन जेम्स कुक ऑस्ट्रेलिया पहुंचने वाले पहले पश्चिमी व्यक्ति बने।
1775: अमेरिका के स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हुई थी। 1852 – कैलिफोर्निया हिस्टोरिकल सोसाइटी का गठन हुआ।
1864: पंजाब के प्रसिद्ध आर्य समाजी नेता, समाज सुधारक और शिक्षाविद महात्मा हंसराज का जन्म।
1882: प्रसिद्ध जीव विज्ञानी चार्ल्स डार्विन का निधन।
1910: हेली पुच्छल तारे को पहली बार खुली आंखों से देखा गया।
1919: अमेरिका के लेस्ली इरविन ने पैराशूट से पहली बार छलांग लगाई।
1933: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सैयद हसन इमाम का निधन।
1933: अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने गोल्ड स्टैंडर्ड को छोड़ने की घोषणा की।
1936: फिलीस्तीन में यहूदी विरोधी दंगे शुरू हुए।
1948: च्यांग काई शेक चीन के राष्ट्रपति बने।
1971: भारत ने वेस्टइंडीज को हराकर टेस्ट क्रिकेट सीरीज जीती।
1972: बांग्लादेश राष्ट्रमंडल का सदस्य बना।
1975: तत्कालीन सोवियत रूस की मदद से पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट प्रक्षेपित किया गया।
1977: भारत की प्रसिद्ध एथलेटिक्स खिलाड़ी अंजू बॉबी जॉर्ज का जन्म।
1989 : अफ्रीकी देश सिएरा लियोन ने गणतंत्र की घोषणा की।
2003 : चीन की महिला भारोत्तोलक बांग मिंग च्यान ने विश्व रिकार्ड बनाया।
2006 : प्रथम अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग को उनके द्वारा लाया गया चांद टुकड़ा भेंट किया गया।
2005: जर्मनी के कार्डिनल योसिफ रान्सिंगर रोमन कैथोलिक चर्च के नए पोप चुने गए।
2007: द विजार्ड ऑफ़ आईडी सीरीज के कार्टूनिस्ट ब्रैंड पार्कर का निधन।
2008: पाकिस्तान ने परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम 2000 किलोमीटर की मारक क्षमता वाले प्रक्षेपास्त्र शहीन-2 का सफल परीक्षण किया।
2011: क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ क्यूबा की केन्द्रीय समिति में 45 वर्षों तक बने रहने के बाद इस्तीफा दिया।

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