नरेन्द्र कुमार वर्मा

दिल्लीः बीबीसी की डॉक्युमेंट्री के बहाने विपक्षी दलों ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने का षड़यंत्र रचा है। गुजरात दंगों के ऊपर बनी इस डॉक्युमेंट्री के प्रसारण को लेकर देश के कई विश्वविद्यालों का माहौल भी खराब करने का कुचक्र चलाया जा रहा है। बीबीसी जिसे कभी खबरों की निष्पक्षता के बारे में जाना जाता था। वह दो दशकों से अपनी विश्वसनीय के संकट से गुजर रही है। बीबीसी वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते प्रभाव को लेकर पत्रकारों के एक गुट की प्लांट खबरों को प्रकाशित करने के लिए कुख्यात हो चुकी है।

बीबीसी ने अपनी उसी श्रंखला के तहत गुजरात दंगों पर इस डॉक्युमेंट्री का निर्माण किया है। दिलचस्प बात यह हैं कि जिन दंगों को लेकर बीबीसी विधवा विलाप कर रही है। उन दंगों के बारे में भारत के सर्वोच्च न्यायालय और एसआईटी ने भी तत्कालिन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्लिनचिट देकर उन्हें पाकसाफ बताया है। बावजूद इसके बीबीसी भारत में नए सिरे से इन दंगों को कुरेदने का काम कर रही है। दरअसल पिछले नौ वर्षों से मोदी के खिलाफ देश के विपक्षी दल विदेशी मीडिया की सेवाएं विभिन्न टूलकिट के माध्यम से लेते रहे है। बीबीसी की हालिया डॉक्युमेंट्री भी उसी टूलकिट का हिस्सा है।

आज गुजरात के दंगों को भूल कर लोग बहुत आगे बढ़ चुके है। गुजरात तरक्की के नए पायदानों की तरफ अग्रसर हो रहा है। नरेन्द्र मोदी का अपने गृहराज्य गुजरात के प्रति प्यार और लगाव देश से छिपा नहीं है। इस डॉक्युमेंट्री के बहाने बीबीसी का एजेंडा भी यही हैं कि गुजरात के साथ ही सारे देश की जनता के बीच नरेन्द्र मोदी की छवि को धूमिल किया जाए।

बीबीसी ने पूरी योजना और तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार इस डॉक्युमेंट्री का निर्माण किया है। अपनी धूमिल होती साख को बीबीसी इस डॉक्युमेंट्री के मार्फत भुनाना चाहती है। देश के वामपंथी संगठनों और कांग्रेस पार्टी के पास इस डॉक्युमेंट्री की मूल प्रति उपलब्ध होना इस बात का प्रमाण है कि बीबीसी ने एक तयशुदा योजना के मुताबिक इस डॉक्युमेंट्री का निर्माण किया है। दिल्ली की जामिया मिल्लिया और जेएनयू यूनिवर्सिटी में वामपंथी छात्र संगठनों के लोगों ने जब जबरिया इस डॉक्युमेंट्री के प्रसारण की घोषणा की तो वहां बीबीसी के संवाददाताओं की उपस्थिति इस बात का स्पष्ट संदेश दे रही थी कि सब कुछ पूर्व नियोजित और टूलकिट के एजेंटे के अनुसार ही चल रहा है।

भारत के विदेश मंत्रालय और आईटी मंत्रालय ने आईटी रूल्स 2021 की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यूटयूब और ट्विटर पर इस डॉक्युमेंट्री को ब्लॉक कर दिया। भारत सरकार के इस कदम का ब्रिट्रेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी समर्थन किया है। वास्तविकता तो यह हैं कि बीबीसी आज तक अपनी औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाई। ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि उसने भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा चलाया।

भारत की निजता, संप्रभुता, अखंडता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर पहले भी बीबीसी गैरजिम्मेदाराना रिपोर्टिंग करती रही हैं। पश्चिम जगत में नरेन्द्र मोदी की बढ़ती साख, दुनियाभर में भारत की विदेश नीति का बजता डंका और रुस यूक्रेन युध्द के बीच नरेन्द्र मोदी की शांती की अपील उन्हें वैश्विक नेता के तौर पर उभार रही है। देश के विपक्षी दलों को यह सब हजम नहीं हो रहा लिहाजा बीबीसी के साथ मिलकर एक नई टूलकिट को देश में फैलाने का काम शुरू किया गया। बीबीसी अपनी खबरों को लेकर अविश्वसनीयता के दौर से गुजर रही है। फिलहाल तो स्पष्ट है इंडिया द मोदी क्वेश्चन नाम बीबीसी पर ही एक बड़ा सवाल है।

यह लेखक की निजी राय है…

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