दिल्ली डेस्कः पंडित मदन मोहन मालवीय ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना करने की ठान ली थी। इसके लिए महामना मालवीयजी ने अंग्रेजों को एक करोड़ रुपए दिए थे। दरअसल, साल 1911 में यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए महामना मालवीयजी और दरभंगा नरेश तात्कालिक शिक्षा मंत्री हरकोर्ट बटलर से मुलाकात की थी और उससे यूनिवर्सिटी के लिए परमिशन मांगा। इस पर बटलर ने कहा कि पहले एक करोड़ रुपए दो, फिर हम विश्वविद्यालय खोलने की परमिशन देंगे। इसके लिए मालवीय और दरभंगा नरेश ने मिलकर अभियान चलाया। दो साल में 21 लाख, 3 साल में 50 और 4 साल में एक करोड़ रुपए चंदा जुटाया था। चलिए अब आपको बीएचयू की स्थापना से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां आपको देते हैं…

फंड कलेक्शन का फॉर्मूला- मालवीय ने बटलर को देने हेतु एक करोड़ जुटाने के लिए राजा-महाराजा, नेता, विद्वान, व्यापारियों और धनवान सेठों से मुलाकात की और मदद मांगी। साथ ही दरभंगा नरेश के साथ मिलकर अभियान शुरू किया। मालवीय ने शुरुआती 50 लाख रुपए कलेक्ट करने के लिए डोनेटर्स की अलग-अलग कैटेगरी बनाई। जो लोग दान देते थे, उनके नाम इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ‘द लीडर’ में बडे़ सम्मान के साथ प्रकाशित करते थे।

पं. मालवीय ने लोगों से अपील की कि काशी प्राचीन काल से शिक्षा की केंद्र रही है। यहां पर विद्यार्थी नि:शुल्क ज्ञान और उच्च शिक्षा पाते हैं। उनके खाने-पीने का प्रबंध होता है। ऐसे स्थान पर मैं एक विश्वविद्यालय की स्थापना कर रहा हूं,  जहां प्राचीन काल का पदार्थ विज्ञान और आधुनिक काल का विज्ञान एक साथ पढ़ाया जाएगा। इस क्रांति में सहजता से बढ़कर कोई दान नहीं है। उदार दिलवालों के लोगों के लिए यह बेहतरीन अवसर है। वे दिल खोल कर दान दें और भोलेनाथ की कृपा हासिल करें।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी बिल पास हुआ- बताया जाता है कि महामना की अपील के बाद ऐसा असर हुआ कि लोग राह चलते यूनिवर्सिटी के नाम पर चेक फाड़ कर दे देते थे। इसी का नतीजा रहा है कि 1 अप्रैल, 1913 तक कुल 21 लाख रुपए जुट गए। इस समय तक 80 लाख रुपए के दान का आश्वासन मिला था। 1915 की शुरुआत में 50 लाख रुपए जुटे। इसमें बीकानेर महाराजा, महाराजा जोधपुर और महाराजा कश्मीर ने अनुदान दिया था। वहीं, कुछ ही दिन में सोसाइटी के पास कुल 1 करोड़ रुपए भी इकट्ठा हुए। इसके बाद 22 मार्च, 1915 को सर हरकोर्ट बटलर ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव कांउसिल में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी बिल पेश किया। लंबी बहस के बाद 1 अक्टूबर, 1915 को यह बिल पास हुआ और एक्ट बना। फिर महामना ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के लिए 6 लाख रुपए मुआवजे में 1164 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी।

​​​​​​पहले दान किया, फिर दोगुने दाम पर खरीदकर कंगन म्यूजियम में रखवायाः बनारस विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए मेरठ की एक सभा में 5 लाख रुपए दान में दिया था। ऐसे ही मुजफ्फरपुर के एक बंगाली व्यक्ति ने 5 हजार रुपए दान में दिए। पत्नी ने सोने का कंगन उतार कर दान कर दिया। बाद में पति ने कंगन को दोगुने दाम पर खरीदा, लेकिन पत्नी ने उस कंगन को पहनने के बजाय म्यूजियम में रखवा दिया।

प्रमुख दानकर्ता रजवाड़ों को बारी-बारी से चांसलर बनाया गयाः महाराज दरभंगा रामेश्वर सिंह, बीकानेर के महाराज सर गंगा सिंह बहादुर, उदयपुर के महाराज फतेह सिंह, बड़ौदा के महाराज सयाजी राव गायकवाड़, जोधपुर महाराज उम्मेद सिंह बहादुर, मैसूर के महाराजा कृष्णराव वाडियार, ग्वालियर महाराजा जिवाजी राव सिंधिया, कश्मीर के महाराज हरि सिंह बहादुर ने बड़ी राशि दान की। इन रजवाड़ों को सम्मान देने के लिए कई पीढ़ियों को BHU का चांसलर नियुक्त किया गया।

दरभंगा के महाराज रामेश्वर सिंह के बेटे कामेश्वर सिंह, काशी राज प्रभु नारायण सिंह के बाद आदित्य नारायण सिंह और महाराज डॉ. विभूति नारायण सिंह, वहीं कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के उत्तराधिकारी डॉ. कर्ण सिंह आदि ने BHU के चांसलर पद को सुशोभित किया है।

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