आज ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा है। हिंदू धर्म में स्त्रियां आज के दिन पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत करती हैं। यह व्रत हर साल देश के कुछ हिस्सों में ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को तो कुछ में पूर्णिमा को किया जाता है। स्कंद पुराण और भविष्योत्तर पुराण में ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर ही इस व्रत को करने का विधान बताया गया है। इस बार वट सावित्री व्रत के लिए बहुत ही अच्छा संयोग बन रहा है। आज सूर्य-चंद्रमा की स्थिति से सिद्ध नाम का एक और शुभ योग भी बन रहा है। 

कैसे करें वट सावित्री व्रत की पूजा…

  •  सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ के जल से स्नान करें।
  • भगवान शिव-पार्वती की पूजा कर के उनके सामने सावित्री और वट वृक्ष की पूजा का संकल्प लें।
  • पूजा और संकल्प के बाद नैवेद्य बनाएं और मौसमी फल जुटाएं।
  • पूजा सामग्री के साथ बरगद के पेड़ के नीचे पूजा शुरू करें।
  • पूजा में मिट्‌टी का शिवलिंग बनाएं। सुपारी को गौरी और गणेश मानकर पूजा करें।
  • इनके साथ ही सावित्री की पूजा भी करें।
  • पूजा होने के बाद बरगद में एक लोटा जल सींचे।
  • पूजा के बाद अपनी मनोकामना ध्यान में रखते हुए श्रद्धा अनुसार पेड़ की 11, 21 या 108 परिक्रमा करें।
  • परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत भी बरगद पर लपेटना चाहिए।

सावित्री यमराज से वापस लेकर आई थीं अपने पति के प्राण
इस व्रत को रखने से पति पर आए संकट चले जाते हैं।  आयु लंबी हो जाती है। यही नहीं अगर दांपत्य जीवन में कोई परेशानी चल रही हो तो वह भी इस व्रत के प्रताप से दूर हो जाते हैं। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए इस दिन वट यानी कि बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी।

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