दिल्लीः सर्दी का मौसम आ गया है और इससे बचाव के लिए गर्म कपड़े बेहद जरूरी होते हैं। तो चलिए आज हम बात करते हैं जैकेट के बारे में…आपको ‘रंग दे बसंती’ फिल्म याद है? फिल्म की कई सारी यादगार बातों में एक फ़्लाइट-लेफ़्टिनेंट अजय राठौर यानी आर माधवन की काली फेडेड लेदर जैकेट भी है। वो अपनी फेवरेट जैकेट अपने दोस्त करण यानी सिद्धार्थ को तोहफे में दे जाते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि हम जैकेट की बात करते- करते फिल्मों की चर्चा क्यों करने लगे, तो इसके बारे में आपको आगे बताते हैं।

फिल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (‘डीडीएलजे’) में सरसों के खेत में हार्ले-डेविडसन की ब्लैक जैकेट पहनकर, ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम’ गाते शाहरुख खान हों या ‘धूम’ में लंबे बालों और लेदर जैकेट खुली ज़िप से झांकते सिक्स पैक ऐब्स वाले जॉन अब्राहम या फिर ‘टॉप गन’ फिल्म में बदमिजाज़, लेकिन काबिल फाइटर पायलट बने टॉमक्रूज़। दुनियाभर के सिनेमा में जब भी किसी हीरो को थोड़ा सा बोल्ड, थोड़ा हॉट और कूल दोनों दिखाना होता है, तो अक्सर हीरो को लेदर जैकेट पहना दी जाती है। लेदर जैकेट को दुनिया का सबसे ज़्यादा हाई फैशन, स्टाइलिश गारमेंट माना जाता है। खास बात ये है कि इसके साथ किसी एक ब्रांड का नाम नहीं जुड़ा है। लेदर जैकेट यानी नाम ही काफी है।

तो चलिए अब बात लेदर जैकेट की बात करते हैं, क्योंकि लेदर जैकेट को लेकर कई गलतफमियां भी हैं। मसलन, ये बहुत महंगी होती हैं। इनमें असली-नकली की पहचान करना मुश्किल होता है। इनको संभालना भी आसान नहीं…कुछ साल में खराब हो जाती हैं… इनका पर्यावरण पर काफ़ी बुरा असर पड़ता है और लेदर के दूसरे विकल्प जैसे, पीयू या वीगन लेदर ज़्यादा ईको फ़्रेंडली हैं।

हम इनमें से हर एक मुद्दे पर आपकी सारी गलफमियां दूर करने की कोशिश करेंगे ताकि आपको अगर लेदर जैकेट खरीदने और पहनने का शौक हो तो इसे लेकर कोई कन्फ्यूजन न रहे।

सबसे पहले बात कीमत की करते हैं। अगर किसी ब्रैंड की ओरिजिनल लेदर जैकेट लेने जाएंगे तो कीमत कम से कम 10 हज़ार रुपए से शुरू होती है और अच्छी जैकेट तो 30-40 हज़ार या उससे कहीं ज्यादा की आएगी। अब एक जैकेट के लिए इतने पैसे खर्च करना ज्यादातर संभव नहीं होगा। लेदर जैकेट को अपने कलेक्शन में जोड़ने का आसान तरीका भी है। जानिए कैसे।

कई भारतीय यूरोप जाकर लेदर जैकेट या उसके नाम पर फॉक्स लेदर यानी आर्टिफिशियल लेदर की जैकेट खरीदकर लाते हैं, जबकि यूरोप के ज़्यादातर लग्ज़री ब्रैंड की लेदर जैकेट भारत से बनकर जाती हैं।

दिल्ली में रूस के दूतावास के पास यशवंत प्लेस मार्केट है। भारत से एक्सपोर्ट होने वाले लेदर की तमाम ‘ब्रैंडेड’ प्रोडक्ट्स यहां मिल जाते हैं।

यशवंत प्लेस के एक लेदर व्यापारी ने बताया कि यहां मिलने वाला सामान ओरिजिनल लेदर और एक्सपोर्ट क्वालिटी का होता है। ये सामान यहां वाजिब दामों में मिल जाता है।

उनके यहां जो जैकेट 3,500 से 10,000 तक की कीमत में मिलती है, किसी विदेशी ब्रैंड के स्टोर में उसकी कीमत 5 से 10 गुना ज्यादा हो जाती है। मतलब 4,000 वाली जैकेट किसी बड़े ब्रैंड के लेबल के साथ बड़ी आसानी से 40 हजार रुपए तक की बिक सकती है।

क्वालिटी कैसे पहचानें- राष्ट्रीय राजधानी के लुटियन्स जोन के इस पॉश इलाके में बने मार्केट में तमाम मंत्री, नेता, IAS और सेलेब्रिटी खरीदारी करने आते रहते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि मार्केट से जैकेट बिकने के कुछ दिन बाद कोई मशहूर आदमी टीवी पर वही जैकेट पहने दिखता है। हालांकि, इन लोगों का ऐसे मार्केट से जैकेट खरीदने का बड़ा कारण क्वालिटी की गारंटी होना भी है।

अब बात क्वालिटी की करें, तो लेदर की पहचान करना थोड़ा मुश्किल काम है। लेदर व्यापारी ने बताया कि आजकल आने वाला रैग्ज़ीन या पीयू लेदर भी इस तरह का होता है कि कुछ सेकंड लाइटर जलाकर दिखाने से फर्क नहीं पड़ता। इसलिए इस तरीके से लेदर की पहचान नहीं हो सकती।

  • पलटकर उलटी तरफ देखें
  • पिछले तरफ सफेद है या कपड़ा चिपका है, तो वह लेदर नहीं है
  • लेदर को खींचकर देखा जा सकता है। रैग्जीम के साथ ऐसा करना मुमकिन नहीं है
  • कई लेदर की पहचान ग्रेन यान ऊपरी सतह दानेदार होने से करते हैं, लेकिन यह तरीका सही नहीं है
  • लाइटर जलाकर देखने से रैग्जीम तथा पीयू लेदर की पहचान नहीं होगी

लेदर जैकेट की शुरुआत फंक्शनल क्लोदिंग के रूप में हुई थी। इसका मतलब है कि जैकेट को खास कामों के दौरान पहना जाता था। बाद में यह फैशन का हिस्सा बन गई।

दरअसल, 1900 के आस-पास जब हवाई जहाज़ों की शुरुआत हुई, तो पायलट का कॉकपिट खुला होता था। ऐसे में ऊपर आसमान में काफ़ी ठंड लगती थी। पायलट को एक ऐसे गारमेंट की जरूरत थी जो शरीर से चिपकी हो और उसमें हवा भी अंदर न जाए।

यहीं से शुरुआत हुई बॉम्बर जैकेट की। इनमें बाहों और कमर पर इलास्टिक लगा होता था और कॉलर में मोटा फर लगाने की जरूरत पड़ती थी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद ये जैकेट खासी लोकप्रिय हुईं।

इसके बाद सन् 1953 में आई फिल्म ‘वाइल्ड वन’ ने बाइकर जैकेट का ऐसा क्रेज़ चलाया, जो आजतक चल रहा है। तिरछी ज़िप, बटन से अटके रहने वाले कॉलर और कमर पर बेल्ट वाली काली बाइकर जैकेट मोटरसाइकिल चलाने वालों के लिए काम की चीज है।

अगर ठंड कम है, तो जिप सामने से खुली रहती है और जैकेट के कॉलर कोट के कॉलर का लुक देते हैं। ठंड या तेज हवा में जिप को पूरा बंद करने पर सीने के सामने दोहरी परत बन जाती है, जिससे बाइक चलाते समय काफी आराम मिलता है। मर्लन ब्रैंडो के इस इम्प्रेसिव लुक को ‘गुलाम’ फिल्म में आमिर खान ने हूबहू कॉपी किया था।

लड़कियों का लेदर जैकेटः लेदर जैकेट को लंबे समय तक बाइक चलाने वाले लड़कों से जोड़कर ही देखा गया। लड़कियों के लिए अलग से जैकेट नहीं बनती थी।

70 के दशक की शुरुआत में जब दुनिया पर ‘रॉक-एंड-रोल’ का नशा चढ़ा तो लड़कियों के लिए भी लेदर जैकेट बनने लगी। इसके बाद दो बेहद पॉपुलर सिंगर्स ने लेदर जैकेट को स्टेज से फैशन तक पहुंचा दिया।

ब्रिटिश संगीतकार जॉर्ज माइकल ने ब्लू जींस, वाइट या ब्लैक टी शर्ट को लेदर जैकेट और एविएटर ग्लासेज के साथ मैच कर गिटार बजाने वाला लुक ऐसा पॉपुलर हुआ कि लकड़ों के लिए यह कूल दिखने का फॉर्मूल बन गया।

माइकल जैक्सन की रेड लेदर जैकेट ने बताया कि ब्लैक के अलावा और भी कलर्स की लेदर जैकेट हो सकती हैं। इन सबमें रही सही कसर टॉम क्रूज़ ने पूरी कर दी जब वे टॉप गन फिल्म में मिलिट्री जैकेट, भारी स्पोर्ट्स मोटरसाइकिल और एविएटर सन ग्लासेस के साथ दिखे।

अगर आप ध्यान दें, तो इन सभी ट्रेंड को 30 साल से ऊपर हो चुके हैं, लेकिन कोई भी चीज आउट ऑफ फैशन नहीं हुई है।

खास लड़कियों के लिए लेदर जैकेट का बड़ा ट्रेंड 2021 में आई नेटफ़्लिक्स की सीरीज ‘सेक्सलाइफ़’ के साथ आया। इसमें हीरोइन के पास एक पिंक कलर की लेदर जैकेट होती है, जो वो पहनी नजर आती है।

बोल्ड कंटेंट वाली इस सीरीज की ये जैकेट इतनी ज्यादा सर्च की गई कि शो बनाने वालों को सोशल मीडिया पर बताना पड़ा कि ये जैकेट खास तौर पर इसी शो के लिए बनवाई गई थी और बाजार में उपलब्ध नहीं है। हालांकि, उन्होंने इसका डिज़ाइन शेयर कर दिया ताकि जो चाहे, इसे बनवा ले।

ऑल टाइम बेस्ट कलरः जैकेट के रंग की बात करें, तो ब्लैक सबसे सेफ़ और ऑल टाइम बेस्ट ऑप्शन है। ब्लैक के अलावा, लाइट और डार्क ब्राउन जैकेट हर तरह की जींस के साथ मैच करती हैं।

इसके बाद पाउडर ब्लू, मिलिट्री ग्रीन और रेड कलर्स आते हैं। ये आपकी चॉइस पर निर्भर करता है कि आप कौन सा कलर चुनते हैं। अगर आप भी ‘फाइट क्लब’ के ब्रैड पिट की तरह तेज़-तर्रार हैं, तो रेड कलर की जैकेट आप पर फबेगी।

अब सवाल उठता है कि क्या लेदर जैकेट जल्दी खराब हो जाती है। अक्सर कई लोग कहते हैं कि लेदर जैकेट जल्दी खराब हो जाती हैं, बक्से में रखे-रखे इनसे सफेद पपड़ी छूटने लगती है। अगर आपकी जैकेट से ऊपर की सतह झड़ने लगे, तो जान लीजिए कि आपकी जैकेट प्योर लेदर की नहीं है। असली लेदर की जैकेट सालों साल चलती है।

लेदर जैकेट ही नहीं लेदर शर्ट भी अगर कभी आपके हाथ लग जाए तो अपने को किस्मत वाला जानिएगा। क्योंकि लेदर शर्ट्स बहुत मुश्किल से मिलती हैं। लेदर के ये गारमेंट्स किसी हेरिटेज आइटम्स की तरह होते हैं जो सही ढंग से सहेजकर रखे जाएं तो सालों साल चलते हैं।

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मीट एक्सपोर्टर है। लेदर मीट इंडस्ट्री का बायप्रोडक्ट है। इसमें बचे चमड़े को कूड़े में फेंकने के बजाय लेदर प्रोडक्ट्स बनाए जाएं, तो इससे पर्यावरण की सुरक्षा होगी। हालांकि लेदर प्रोडक्ट्स बनाने में पानी काफी खर्च होता है और लेदर को साफ़ करने में क्रोमियम का इस्तेमाल होता है। ये क्रोमियम बड़ी समस्या है।

फॉक्स लेदर को पॉपुलर फ़ास्ट फैशन ब्रैंड ने किया है। इससे मैन्युफ़ैक्चरिंग की कीमत तो काफी कम हो जाती है, लेकिन फॉक्स लेदर कपड़े पर लगा हुआ प्लास्टिक है। और किसी भी तरह का प्लास्टिक पर्यावरण के लिए अच्छा नहीं होता।

लेदर जैकेट खरीदने के बेसिक रूलः लेदर जैकेट लंबे समय तक चलती है, इसलिए ढेर सारे मेटल स्टड्स और स्टीकर्स वाली जैकेट से बचें। क्योंकि ऐसी जैकेट एक उम्र में ही अच्छी लगती है।

काफी सस्ती जैकेट में अक्सर फिटिंग की एक समस्या होती है। ये पेट के पास उठी रहती है। ट्रायल लेते समय इसपर ध्यान देना न भूलें। अगर आप बाइकर नहीं हैं, तो जैकेट में बहुत ज़्यादा ज़िप और मेटल न लगा हो।

एक बहुत जरूरी बात आपको बता दें कि भारत से बाहर के देशों में लेदर जैकेट के साथ लेदर पैंट पहनने को अक्सर होमोसेक्शुअल ड्रेस कोड के तौर पर देखा जाता है, तो इसके बारे में सचेत रहें।

हमने आपको लेदर जैकेट से जुड़े सभी खास पहलुओं के बारे में बताया। उम्मीद है कि इस सर्दी आपके वॉर्डरोब में एक लेदर जैकेट जल्द ही जगह बनाएगी और अगर आपके पास पहले से लेदर जैकेट है तो आप उसका बेहतर खयाल रखेंगे।

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