दिल्लीः अल्फ्रेड नर्बार्ड नोबेले…यह वह नाम है, जिनके नाम पर मौजूदा समय में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाता है। लेकिन क्या आपक जानते हैं कि यह पुरस्कार जिस अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर स्थापित हुआ, उनका शांति से कोई लेना-देना नहीं था, बल्कि वे तो डाइनामाइट जैसे विस्फोटक बनाकर प्रसिद्ध हुए थे। जी हां आज ही के दिन यानी 14 जुलाई 1867 को पहली बार नोबेल ने डाइनामाइट का विस्फोट किया था।
अल्फ्रेड बर्नार्ड नोबेल का जन्म 21 अक्टूबर 1833 को स्वीड हुआ था। पिता इमानुएल नोबेल के दिवालिया होने के बाद 1842 में नोबेल 9 साल की उम्र में अपनी मां आंद्रिएता एहल्सेल के साथ नाना के घर सेंट पीट्सबर्ग चले गए। यहां उन्होंने रसायन विज्ञान और स्वीडिश, रूसी, अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषाएं सीखीं। पेरिस की एक निजी रिसर्च कंपनी में काम करने के दौरान अल्फ्रेड की मुलाकात इतावली केमिस्ट अस्कानियो सोब्रेरो से हुई। सोब्रेरो ने विस्फोटक लिक्विड ‘नाइट्रोग्लिसरीन’ का आविष्कार किया था। यह इस्तेमाल के लिए खतरनाक था। यहां से अल्फ्रेड की रुचि ‘नाइट्रोग्लिसरीन’ में हुई और उन्होंने निर्माण कार्यों में इसके इस्तेमाल का सोचा।
1863 में स्वीडन लौटने पर अल्फ्रेड का फोकस ‘नाइट्रोग्लिसरीन’ को विस्फोटक के रूप में विकसित करने पर रहा। दुर्भाग्य से यह परीक्षण असफल रहा, जिसमें कई लोगों की मौत भी हो गई। मरने वालों में अल्फ्रेड का छोटा भाई एमिल भी शामिल था। इसके बाद स्वीडिश सरकार ने नाइट्रोग्लिसरीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी, लेकिन अल्फ्रेड नहीं रुके, उन्होंने झील में एक नाव को अपनी प्रयोगशाला बनाया। आखिरकार 1866 में उन्होंने नाइट्रोग्लिसरीन में सिलिका को मिलाकर एक ऐसा मिश्रण बनाया जो धमाकेदार तो था ही, इस्तेमाल करने के लिए सुरक्षित भी था।
1867 में 14 जुलाई को इस मिश्रण को नोबेल ने साउथ इंग्लैंड के सरे में पहाड़ी पर लोगों के सामने प्रदर्शित किया। उन्होंने विस्फोटकों को पहाड़ी से नीचे फेंका और धमाके की तीव्रता भी कंट्रोल कर दिखाई ताकि लोगों को इसके सुरक्षित होने का भी पता लग सके। अगले साल अल्फ्रेड नोबेल को इस आविष्कार को पेटेंट भी मिला। उनके इस आविष्कार को दुनिया आज डाइनामाइट के नाम से जानती है।
डाइनामाइट के आविष्कार के बाद कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में इसका इतना ज्यादा इस्तेमाल होने लगा कि अल्फ्रेड ने 90 जगहों पर डाइनामाइट बनाने की फैक्ट्री खोली। 20 से ज्यादा देशों में ये फैक्ट्रियां थीं। वे लगातार फैक्ट्रियों में घूमते रहते थे। इस वजह से लोग उन्हें ‘यूरोप का सबसे अमीर आवारा’ कहते थे।
डाइनामाइट के अलावा अल्फ्रेड के नाम पर आज 355 पेटेंट हैं। उन्होंने अपनी वसीयत में मानवता को लाभ पहुंचाने वाले लोगों को अपनी संपत्ति में से पुरस्कार देने की इच्छा जताई थी, जो आज प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार नाम से जाना जाता है।
अमेरिका के फ्लोरिडा में जॉन गोरी नाम के एक डॉक्टर थे। 1841 में फ्लोरिडा में यलो फीवर की वजह से हजारों लोगों की जान गई थी। जॉन का मानना था कि इस बीमारी के फैलने के पीछे गर्मी एक वजह है। इससे निपटने के लिए उन्होंने अपने क्लिनिक की खिड़की के पास एक बर्तन में बर्फ भरकर टांग दिया। इस बर्तन से हवा टकराकर कमरे में जाती और कमरा ठंडा रहता। उस समय बर्फ हासिल करना आसान नहीं था। ठंडी जगहों से बर्फ को जहाजों में भरकर सप्लाई किया जाता था। जॉन ने भी सोचा कि क्यों न बर्फ बनाई जाए? 1755 में विलियम क्लेन भी इथर को वैक्यूम में गर्म कर बर्फ बनाने का प्रयास कर चुके थे। तब गोरी ने मशीन पर काम शुरू किया और चार साल में उसे बना भी लिया।
गोरी को 14 जुलाई 1850 को एक काउंसिल मेंबर रोसन ने पार्टी दी थी। इस दौरान बर्फ खत्म हो गई। तब एक मेहमान ने कहा कि अब हमें गर्म वाइन पीना पड़ेगी। इस पर रोसन ने खड़े होकर कहा कि ‘फ्रांस की आजादी के मौके पर तो बिल्कुल नहीं”। उनके ऐसा बोलते ही वेटर बर्फ के साथ वाइन की बॉटल ले आए। इस बर्फ को गोरी ने ही बनाया था।
अब बात भारत में भेजे गए आखिरी टेलीग्राम। आज ही के दिन यानी 14 जुलाई 2013 को भारत में आखिरी टेलीग्राम भेजा गया था। ये टेलीग्राम कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भेजा गया था। इसी के साथ 163 साल पुरानी टेलीग्राम सेवा को देश में बंद कर दिया गया।
भारत में 1851 में एक बतौर एक्सपेरिमेंट कलकत्ता से डायमंड हार्बर तक टेलीग्राम सेवा शुरू की गई थी। तब ईस्ट इंडिया कंपनी के लोग ही इसका इस्तेमाल करते थे। धीरे-धीरे पूरे देश में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ और 1855 में आम लोगों के लिए भी टेलीग्राम भेजने की सुविधा शुरू हुई।
मोर्स कोड के जरिए एक जगह से दूसरी जगह मैसेज भेजने की ये तकनीक एक जमाने में सबसे तेज संदेश भेजने का इकलौता जरिया थी। इंटरनेट, मोबाइल जैसी नई तकनीकों की वजह से यह अप्रासंगिक हो गई। नुकसान भी बढ़ता जा रहा था। भारत सरकार को टेलीग्राम सर्विस पर सालाना 100 करोड़ रुपए खर्च करना पड़ते थे, पर कमाई सिर्फ 75 लाख की थी। 12 जून 2013 को सरकार ने इस सर्विस को बंद करने का फैसला लिया और 14 जुलाई 2013 को आखिरी टेलीग्राम के बाद यह सेवा हमेशा के लिए बंद हो गई। आइए एक नजर डालते हैं देश और दुनिया में 14 जुलाई को घटित हुईं महत्वपूर्ण घटनाओं पर-
1223- फिलिप द्वितीय की मौत के बाद उनका बेटे लुई फ्रांस का राजा बना।
1636- मुगल बादशाह शाहजहां ने औरंगजेब को दक्कन का वायसराय नियुक्त किया।
1789- फ्रांस में क्रांति की शुरुआत। क्रांति के दौरान जनता ने बास्टिल की ऐतिहासिक जेल पर कब्जा कर उसके बड़े हिस्से को तबाह कर दिया।
1850- मशीन द्वारा जमाई गई बर्फ का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन।
1853- न्यूजीलैंड में पहली आम चुनाव हुए।
1861- कॉट लिंग नामक अमरीकी व्यक्ति ने मशीनगन बनाई।
1914- पहले तरल ईंधन आधारित रॉकेट की डिजाइन का पेटेंट रॉबर्ट एच गोगार्ड ने हासिल किया।
1927- हवाई द्वीप में विमान की पहली व्यावसायिक उड़ान शुरू।
1937- अभिनेत्री सुधा शिवपुरी का जन्म।
1940- द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी के बमवर्षक विमानों ने स्वेज पर बमबारी की।
1951- सीबीएस चैनल पर घुड़दौड़ के रूप में किसी खेल कार्यक्रम का पहली बार रंगीन प्रसारण।
1965- मंगल के पास से गुजरने वाले नासा के अंतरिक्ष यान ने किसी दूसरे ग्रह की पहली क्लोज अप फोटो लीं।
1969- जयपुर में मालगाड़ी और यात्री गाड़ी की टक्कर में 85 लोगों की मौत।
1969- अमेरिका के वित्त मंत्रालय और फेडरल रिजर्व सिस्टम ने पांच सौ, हजार, पांच हजार तथा दस हजार डॉलर के नोटों को बंद किया।
1972- तत्कालीन सोवियत संघ ने भूमिगत परमाणु परीक्षण किया।
1987- ताइवान में 37 वर्षों के बाद मार्शल कानून समाप्त हुआ।
1991- इराक से ब्रिटिश सेना की वापसी।
1996- अमेरिका ने पाकिस्तान को ब्राउन संशोधन के अंतर्गत हथियार भेजने शुरू किये।
2008- नेपाल की कार्यकारी संसद ने प्रधानमंत्री के निर्वाचन वाले संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दी।
2014- ब्रिटेन के चर्च ने महिलाओं को भी बिशप बनाने के पक्ष में वोट किया।
2015- नासा का न्यू होराइजन प्लूटो पर जाने वाला पहला अंतरिक्ष यान बना।
2016- फ्रांस में बैस्टिल दिवस मना रहे लोगों पर एक आतंकवादी ने ट्रक चढ़ा दिया था, जिसमें 80 लोग मारे गए।