पटनाः बिहार सरकार ने जातीय जनगणना को लेकर बड़ा कदम उठाया है। राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से इतर बिहार जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया है। इसकी घोषणा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को की। उन्होंने जनता दरबार के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि तैयारी हो चुकी है। राज्य सरकार अपने खर्चे पर बिहार में जातीय जनगणना कराएगी।

नीतीश ने बताया कि बिहार सरकार पारदर्शी तरीके से जनगणना कराएगी। किसी भी प्रकार की चूक नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि तमाम सियासी पार्टियों की सहमति हो गई है। हम जल्द सर्वदलीय बैठक करने जा रहे हैं। डिप्टी सीएम और अपनी पार्टी के सभी लोगों से बात कर चुके हैं। जल्द एक तारीख तय कर सर्वदलीय बैठक की जाएगी।

आपको बता दें, इससे पहले कर्नाटक अपने स्तर से जातीय जनगणना करा चुका है। इस तरह से अब जातीय जनगणना कराने वाला बिहार देश का दूसरा राज्य होगा।

बिहार के मुख्यमंत्री कहा, “इसमें सब लोगों की राय जरूरी है। जातीय जनगणना कैसे करानी है, कब करानी है, किस माध्यम से कराएंगे, यह सब मीटिंग में सबसे राय लेकर तय किया जाएगा। सबकी सहमति से जो बात निकलेगी उसी आधार पर आगे बढ़ेंगे। यह बहुत बेहतर ढंग से कराया जाएगा ताकि कोई चीज मिस न हो।“

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता एवं आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने शीतकालीन सत्र में सीएम नीतीश से मिलकर जातीय जनगणना कराने की मांग की थी। उस दौरान नीतीश ने तेजस्वी को भरोसा दिया था कि जल्द जातीय जनगणना को लेकर ऑल पार्टी मीटिंग कर अंतिम रूप दिया जाएगा। आज के बयान के बाद अब यह साफ हो गया है कि नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना को लेकर अपना रुख तय कर लिया है।

इस मसले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सहित बिहार की 10 पार्टियों के नेताओं ने अगस्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। इन नेताओं ने 2021 की जनगणना में जातिगत गणना की मांग को लेकर प्रधानमंत्री से चर्चा की थी।

बिहार में भाजपा को छोड़कर बाकी सभी दल जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। हालांकि, केंद्र की मोदी सरकार पहले ही इससे इनकार कर चुकी है।

आपको बता दें कि देश में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी। पहली बार हुई जनगणना में भी जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे। तब से हर 10 साल पर जनगणना होती है। 1931 तक की जनगणना में जातिवार आंकड़े भी जारी होते थे। 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया।

सरकार ने आजादी के बाद सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी का डेटा जारी करने का फैसला किया। इसके बाद से बाकी जातियों के जातिवार आंकड़े कभी पब्लिश नहीं हुए।

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