दिल्लीः आज गणेश चतुर्थी है। शुक्रवार यानी 10 सितंबर से गणेश महोत्सव का शुभारंभ हो रहा है। आज के दिन ब्रह्म और रवियोग में गणपति की स्थापना होगी। 19 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर भगवान गणेश विसर्जन किया जाएगा। पुराणों के मुताबिक भगवान गजानन का जन्म भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को मध्याह्न काल यानी दोपहर में हुआ था।
इस बार यह योग दोपहर 12.20 से 01.20 तक है। इसलिए विद्वानों ने इस साल इसी समय गणेश स्थापना पर जोर दिया है। गणेश चतुर्थी पर मूर्ति स्थापना के लिए दिनभर में 4 शुभ मुहूर्त हैं। पुराणों और ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक सूर्यास्त के बाद मूर्ति स्थापना नहीं की जाती है, लेकिन इस दिन गोधूलि मुहूर्त में गणेश स्थापना शुभ मानी गई है।
शुभ मुहूर्त:
सुबह 6.10 से 10.40 तक (चर, लाभ और अमृत)
दोपहर 12.25 से 1.50 तक (शुभ)
शाम 05 से 6.30 तक (चर)
चलिए अब आपको गणपति की दाईं और बाईं सूंड का महत्व बताते हैः जिस मूर्ति में गणेशजी की सूंड दाईं ओर हो, उसे सिद्धिविनायक स्वरूप माना जाता है, जबकि बाईं तरफ सूंड वाले गणेश को विघ्नविनाशक कहते हैं। सिद्धिविनायक को घर में स्थापित करने की परंपरा है, जबकि विघ्नविनाशक घर के बाहर द्वार पर स्थापित किए जाते हैं। व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए बाईं ओर मुड़ी हूई सूंड वाले और घर के लिए दाईं सूंड वाले गणपति जी को श्रेष्ठ माना जाता है।
गणेशजी की मूर्ति मिट्टी की होनी चाहिए, क्योंकि मिट्टी में स्वाभाविक पवित्रता होती है। ज्योतिषियों और धर्मशास्त्रों के जानकारों का कहना है कि मिट्टी की गणेश प्रतिमा पंचतत्व से बनी होती है। यानी उस मूर्ति में भूमि, जल, वायु, अग्नि और आकाश के अंश मौजूद होते हैं। इसलिए उसमें भगवान का आह्वान और उनकी प्रतिष्ठा करने से कार्य सिद्ध होते हैं।
मिट्टी के गणेश की पूजा से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। वहीं प्लास्टर ऑफ पेरिस और अन्य केमिकल्स से बनी मूर्तियों में भगवान का अंश नहीं रहता। इनसे नदियां भी अपवित्र होती हैं। ब्रह्मपुराण और महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि नदियों को गंदा करने से दोष लगता है।