दिल्लीः आज भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का त्योहार रक्षाबंधन है। आमतौर पर श्रवण मास की पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र में राखी बांधी जाती है, लेकिन इस बार धनिष्ठा नक्षत्र में राखी बांधी जाएगी। रक्षाबंधन पर इस साल पूरे दिन भद्रा नहीं रहेगी। इस कारण दिनभर रक्षाबंधन मनाया जा सकेगा। इस बार रक्षाबंधन के मौके पर 474 साल दुर्लभ योग बन रहा है। यानी इस बार रविवार को गुरु कुंभ राशि में वक्री है और साथ में चंद्र भी है, जिसकी वजह से गजकेसरी योग बन रहा है। इससे पहले 1547 में रक्षाबंधन धनिष्ठा नक्षत्र और सूर्य, मंगल और बुध के दुर्लभ योग में मनाया गया था।

ज्योतिषियों के मुताबिक इस साल रक्षाबंधन पर सूर्य, मंगल और बुध सिंह राशि में रहेंगे। सिंह राशि का स्वामी सूर्य ही है। इस राशि में उसका मित्र मंगल भी रहेगा। आज शुक्र कन्या राशि में रहेगा। ग्रहों के ये योग शुभ फल देने वाले हैं। ऐसा योग 11 अगस्त 1547 को बना था और उस समय धनिष्ठा नक्षत्र में रक्षाबंधन मनाया गया था। उस समय सूर्य, मंगल, बुध की ऐसी ही स्थिति थी। 1547 में शुक्र बुध की मिथुन राशि में था, जबकि इस साल शुक्र बुध ग्रह की ही कन्या राशि में स्थित है।

आज रक्षाबंधन पर शोभन योग सुबह करीब 10.37 बजे तक रहेगा। वहीं अमृत योग सुबह 5.40 से शाम 5.30 बजे तक रहेगा। आज धनिष्ठा नक्षत्र होने से मातंग नाम का शुभ योग भी रहेगा।

परंपरा के मुताबिक नकारात्मकता और दुर्भाग्य से रक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधा जाता है। ऐसी मान्यता है कि रक्षासूत्र पहनने वाले व्यक्ति के विचार सकारात्मक होते हैं और मन शांत रहता है। भाई-बहन के पवित्र रिश्ते के त्योहार रक्षाबंधन के मौके पर बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है। इस दिन गुरु अपने शिष्य को, पत्नी अपने पति को भी रक्षासूत्र बांध सकती है।

यदि वैदिक रक्षासूत्र बनाने के लिए ये सभी चीजें नहीं मिले तो सिर्फ रेशमी धागा भी राखी के रूप में बांधा जा सकता है। रेशमी धागा भी न हो तो पूजा में उपयोग किया जाने वाला लाल धागा भी बांध सकते हैं। अगर ये भी न हो तो माथे पर तिलक लगाकर भाई के सुखद भविष्य की कामना कर सकते हैं।

अब सवाल यह उठ रहा है कि यदि किसी महिला को भाई न हो, तो वह क्या करें। ऐसी महिलाएं हनुमान, श्रीकृष्ण, शिवजी या अपने ईष्टदेव को रक्षासूत्र बांध सकती हैं। पुरुष भी भगवान को रक्षासूत्र बांध सकते हैं।

इन मंत्रों के सहारे बांधें रक्षासूत्रः-

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वां अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

अर्थात जिस तरह महालक्ष्मी ने एक धागे से असुरराज बलि को बांध दिया था, उसी तरह का धागा मैं मेरे भाई को बांधती हूं। भगवान मेरे भाई की रक्षा करें। यह धागा कभी टूटे नहीं और आप हमेशा सुरक्षित रहें।

पौराणिक कथा के मुताबिक जब भगवान विष्णु ने अपने वामन अवतार में दैत्यों के राजा बलि से तीन पग भूमि मांगकर सारी सृष्टि अपने दो पैरों से नाप दी थी। तब तीसरा पैर रखने के लिए बलि ने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया। भगवान विष्णु ने बलि के इस दानी भाव से खुश होकर उसे पाताल लोक का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा। तब राजा बलि ने वरदान मांगा कि खुद भगवान विष्णु ही उस पाताल लोक के पहरेदार बनकर उसकी रक्षा करें। वरदान के कारण भगवान विष्णु को पाताल लोक का पहरेदार बनना पड़ा।

काफी दिनों तक जब भगवान विष्णु अपने वैकुंठ लोक नहीं पहुंचे तो देवी लक्ष्मी उन्हें छुड़ाने के लिए पाताल लोक गईं। वहां उन्होंने भेष बदलकर बलि से मुलाकात की और कहा कि मेरा कोई भाई नहीं है, मैं आपको रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाना चाहती हूं। राजा बलि मान गए। लक्ष्मीजी ने उन्हें रक्षासूत्र बांधा और भाई बना लिया। राजा बलि ने उनसे खुश होकर कुछ उपहार मांगने को कहा, तब देवी लक्ष्मी ने कहा कि वह भगवान विष्णु को अपने वरदान से मुक्त कर उन्हें अपने लोक जाने दें। राजा बलि ने अपना वचन पूरा करते हुए भगवान विष्णु को उनके वरदान से मुक्त कर दिया।

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