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बीजेपी नेता हिमंत हिमंत बिस्वा सरमा को असम में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले अभी एक ही महाने हुआ और इतने कम समय में ही उन्होंने एक विवाद बयान दे दिया। सरमा ने प्रवासी मुसलमानों को जनसंख्या नियंत्रण की नसीहत दी है और इसे सामाजिक खतरों से जोड़ते हुए कहा है कि प्रवासी मुस्लिम फैमिली प्लानिंग पर ध्यान दें तो जमीनी अतिक्रमण जैसी समस्याओं का समाधान हो सकता है।

उन्होंने कहा कि यदि जनसंख्या ऐसे ही बढ़ती रही तो एक दिन कामाख्या मंदिर की जमीन पर भी अतिक्रमण हो जाएगा। यहां तक कि मेरा घर भी अतिक्रमण से नहीं बच पाएगा। सरमा गुरुवार को गुवाहाटी में प्रेस कॉन्फ्रेंस में अतिक्रमण विरोधी मुहिम से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए यह बातें कहीं।

सरमा ने कहा, “हम विधानसभा के पिछले सत्र में जनसंख्या नीति लागू कर चुके हैं, लेकिन जनसंख्या का बोझ कम करने के लिए अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के साथ खास तौर से काम करना चाहते हैं। उनका कहना है कि जनसंख्या विस्फोट भी गरीबी और अतिक्रमण की तरह प्रमुख सामाजिक समस्या है।“

उन्होंने कहा कि लोगों को जंगलों, मंदिर और वैष्णव मठों की जमीन पर अतिक्रमण की छूट नहीं दी जा सकती है, लेकिन मैं समझता हूं कि जनसंख्या बढ़ने की वजह से ऐसा हो रहा है। मैं दूसरे पक्ष का दबाव भी समझता हूं। आखिर लोग कहां रहेंगे?

उघर, सीएम के इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हए ओआईयूडीएफ (AIUDF) के महासचिव अनीमुल इस्लाम ने कहा है कि सरमा  का बयान राजनीति से प्रेरित है और वह एक समुदाय को निशाना बना रहे हैं। जब राज्य सरकार ने जनसंख्या नीति बनाई तो हमने कभी इसका विरोध नहीं किया, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुख्यमंत्री प्रवासी मुस्लिमों की आबादी बढ़ने की असल वजह को नहीं समझ रहे हैं। इसकी वजह गरीबी और अशिक्षा है और इसके समाधान के लिए मुख्यमंत्री ने कोई योजना नहीं बताई है।

आपको बता दें कि मध्य असम और राज्य के नीचले  इलाकों में बंगाली बोलने वाले मुस्लिमों को बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने यह मैसेज दिया था कि वह असम के मूल समुदायों को प्रवासी मुसलमानों से बचाने के कदम उठाएगी। असम की 3.12 करोड़ की आबादी में 31 प्रतिशत प्रवासी मुस्लिम हैं। चुनावों के दौरान राज्य की 126 में से 35 विधानसभा सीटों पर इनकी अहम भूमिका रहती है।

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