supreme Court

देश में कोरोना महामारी का कहर जारी है. जेलों में बंद कैदी भी कोरोना संक्रमित हो रहे हैं ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद चुनिंदा कैदियों को 90 दिन यानी तीन महीने के लिए परोल पर रिहा करने का आदेश दिया है. इससे जेल में कैदियों की तादाद फौरी तौर पर कम होगी. 90 दिन के बाद सभी कैदी जेल में वापस आ जायेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सभी राज्यों से एक कमिटी का गठन करने को कहा है. कमेटी तय करेगी की किस कैदी को रिहा किया जाएगा और किसको नही. छोटे मोटे जुर्म में बंद कैदियों को प्राथमिकता दी जाएगी.

देश में कोरोना वायरस के रिकॉर्ड मामले दर्ज किए जा रहे हैं. एक्सपर्ट्स भी दूसरी लहर के चरम पर आने की चेतावनी दे रहे हैं. इसी बीच देश में कोविड-19 के मामलों में ‘अभूतपूर्व वृद्धि’ पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को जेलों में भीड़ कम करने का निर्देश दिए हैं. खास बात है कि बीते साल भी कुछ कैदियों को इसी तरह रिहा किया था.

अदालत ने आदेश जारी करते हुए कहा कि जिन कैदियों को पिछले साल महामारी के मद्देनजर जमानत या पैरोल दी गई थी उन सभी को फिर वह सुविधा दी जाए. प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की एक पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश पर बनाई गई राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की उच्चाधिकार प्राप्त समितियों द्वारा पिछले साल मार्च में जिन कैदियों को जमानत की मंजूरी दी गई थी, उन सभी को समितियों द्वारा पुनर्विचार के बगैर पुन: वह राहत दी जाए, जिससे विलंब से बचा जा सके. करोना की पिछली लहर में भी सुप्रीम कोर्ट ने कैदियों को परोल पर रिहा करने के आदेश दिए थे. अब वो कैदी भी जेल में वापस आ चुके है. अब कैदियों को फिर से रिहा करने की प्रक्रिया शुरू होगी.

भाषा के अनुसार उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर शनिवार को अपलोड हुए आदेश में कहा गया, ‘इसके अलावा हम निर्देश देते हैं कि जिन कैदियों को हमारे पूर्व के आदेशों पर पैरोल दी गई थी उन्हें भी महामारी पर लगाम लगाने की कोशिश के तहत फिर से 90 दिनों की अवधि के लिये पैरोल दी जाए.’ एक फैसले का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने अधिकारियों से कहा कि उन मामलों में यांत्रिक रूप से गिरफ्तारी से बचें जिनमें अधिकतम सजा सात वर्ष की अवधि की है. पीठ ने उच्चाधिकार प्राप्त समितियों को निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के दिशानिर्देशों को अपनाते हुए नए कैदियों की रिहाई पर विचार करें.

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