विदेश डेस्कः

वाशिंगटनः दुनियाभर में वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच उम्मीद की एक किरण दिखाई दी है। अमेरिका के एरिजोना में वैज्ञानिकों ने कोरोना के सार्स-कोव-2 वायरस में अनूठे म्यूटेशन (बदलाव) और जेनेटिक पैटर्न का पता लगाया है। यह बदलाव 17 साल पहले सार्स वायरस के संक्रमण के समय देखा गया था। इस म्यूटेशन से वायरस प्रोटीन के बड़े हिस्से यानी इसके जेनेटिक मटेरियल का अपने आप गायब हो जाता है। इसका पता लगाने के बाद वैज्ञानिक उत्साहित है और उनके उत्साह की मुख्य वजह यह है कि सार्स के वायरस में जब यह गायब होने वाला पैटर्न दिखा था तो उसके पांच महीनों के दौरान इस संक्रमण का खात्मा हो गया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस का ये संकेत इसकी कमजोरी का कारण बन सकता है। 

क्या होता है म्यूटेशन

किसी स्थान, वातावरण या अन्य कारणों से किसी वायरस की जेनेटिक संरचना में होने वाले बदलाव को म्यूटेशन कहते हैं। रिसर्च के दौरान शोधकर्ता मैथमेटिकल नेटवर्क एल्गोरिदिम की मदद से वायरस की संरचना का अध्ययन करते हैं। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के विशेषज्ञ डॉ. सीएच मोहन राव कहते हैं कि भारत में कोरोनावायरस सिंगल म्यूटेशन में है। इसका मतलब है कि इसके जल्दी खत्म होने की सम्भावना है,  लेकिन यदि वायरस बार-बार रूप बदलता है तो खतरा बढ़ेगा और वैक्सीन बनाने में भी परेशानी होगी। 

सात बिंदुओं से समझें रिसर्च की पूरी पहेली

  • वायरस में कुछ म्यूटेशन हम इंसानों के खिलाफ जाते हैं तो कुछ हमारे लिए फायदेमंद भी होते हैं।  एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि हमनें जो म्यूटेशन खोजा है, उसे वास्तव में इंसानी हित में एक अद्वितीय परिवर्तन कहा जा सकता है। 
  • शोधकर्ताओं ने नाक के स्वाब के 382 नमूनों में पाए गए वायरस के जीनोम को एक क्रम में जमाकर प्रयोग किया। इस पद्धति को जीन सिक्वेंसिंग कहा जाता है। इसमें इंसानों की ही तरह वायरस का जेनेटिक मटेरियल सूक्ष्मतम केमिकल यूनिट्स से मिलकर बना होता है जिन्हें लेटर्स कहते हैं। 
  • आसानी से समझें तो हम इंसानों में मुख्य जेनेटिक मटेरियन हमारा डीएनए  होता है और शरीर में करीब तीन  अरब डीएनए लेटर्स होते हैं। इसी तरह कोरोनावायरस का जेनेटिक मटेरियल आरएनए प्रोटीन होता है और एक वायरस में करीब 30 हजार आरएनए लेटर्स होते हैं। 
  • एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को 382 सैम्पलों का अध्ययन के दौरान एक वायरस सैम्पल में उन्हें 81 लेटर्स गायब मिले। इस शोध के प्रमुख डॉ. इफ्रेम लिम ने बताया कि यह कुछ ऐसा है जो हमनें 17 साल पहले 2003 में सार्स वायरस के संक्रमण के दौरान देखा था। उस समय भी जब वायरस कमजोर पड़ रहा था तो उसकी प्रोटीन संरचना के बड़े हिस्से गायब होने लगे थे।
  • डॉ. लिम बताते हैं कि कोरोनावायरस का यह कमजोर रूप इसलिए अच्छा है क्योंकि इससे समय के साथ वायरस की क्षमता के कम होने का पता चलता है। कमजोर वायरस वैक्सीन बनाने के दिशा में भी बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं। वर्तमान में ऑक्सफोर्ड में जो कोरोना का वैक्सीन बनाया जा रहा है उसमें चिम्पैजी के कमजोर वायरस का इस्तेमाल हो रहा है।
  • सार्स वायरस के संक्रमण के दौरान 17 साल पहले फरवरी 2003 से जुलाई 2003 के बीच इसके वायरस में ऐसा ही म्यूटेशन देखा गया था। उस दौरान यह महामारी एशिया में अचानक फैली और फिर पांच महीने में कमजोर पड़ने लगी थी। कोरोना के मामले में भी यह उम्मीद की पहली किरण दिखती है क्योंकि यह वायरस भी सार्स के वायर से काफी मिलता जुलता है और इसीलिए इसका नाम सार्स कोव-2  है।
  • वायरस की कमजोरी से यह भी समझ आता है कि ये एक इम्यून प्रोटीन है जिसका मतलब है कि यह मरीज की एंटीवायरल रिस्पांस से लड़ता है। और अब चूंकि सार्स ने एक नमूने में ऐसा प्रतिकार किया है तो इसका अर्थ यह समझा जा सकता है कि यह वायरस कमजोर और  कम संक्रामक हो सकता है।

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