प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को लोकसभा में अलग अंदाज में नजर आए। राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर जवाब देते हे कई बार बचाव की मुद्रा में भी दिखे, विशेषकर आंदोलनजीवी वाले अपने बयान पर, जो उनके स्वभाव के विपरीत है। साथ ही वह अपने पक्ष में दलीलें रखते हुए गलतियां भी कर बैठे।

पहले बात करते हैं मोदी के डिफेंसिव अप्रोच की। मोदी ने लोकसभा में बोलते हुए किसानों के आंदोलन को पवित्र बताया। साथ ही इस दौरान उन्होंने आंदोलनकारियों और आंदोलनजीवियों में अंतर बताने की कोशिश भी की। मोदी ने कहा कि किसान आंदोलन को मैं पवित्र मानता हूं। उन्होंने कहा कि भारत के लोकतंत्र में आंदोलन का महत्व है, लेकिन आंदोलनजीवी पवित्र आंदोलन को अपने लाभ के लिए अपवित्र कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आंदोलनकारियों और आंदोलनजीवियों में फर्क करना जरूरी है।

आपको बता दें कि पीएम मोदी ने सोमवार को राज्यसभा में बोलते हुए किसान आंदोलन के संदर्भ में आंदोलनजीवी कह दिया था। उसी समय से यह बहस चल पड़ी थी। मोदी ने इसी बहस को शांत करने की कोशिश बुधवार को लोकसभा में की।

अब बात मोदी द्वारा की गई गलतियों की करते हैं…

पीएम ने बुधवार को लोकसभा में उस तर्क को खारिज किया, जिसमें कहा जा रहा है कि कृषि कानूनों की मांग किसी ने की ही नहीं तो इसे लाया क्यों गया? इस मुद्दे पर उन्होंने लोकसभा में सवाल लिया और पूछा क्या कानून तभी बनाए जाएंगे, जब उनकी मांग होगी? इस दौरान मोदी ने कई पुराने कानूनों का हवाला दिया और विपक्ष से पूछा कि इन कानूनों की मांग किसने की थी? मोदी ने जिन कानूनों का हवाला दिया, उनमें दहेज प्रथा के खिलाफ कानून और बाल विवाह के खिलाफ कानून का भी जिक्र था, लेकिन यही वह गलती करे बैठ। इन दोनों कानूनों का इसका सच कुछ और है। ये दोनों कानून लंबे आंदोलनों की बदौलत ही बने हैं।

1961 में दहेज प्रथा के खिलाफ पहला कानून (डावरी प्रोहिबिशन एक्ट)  बना था, जो बहुत लचीला था। 1972 में दहेज के खिलाफ कड़े कानून के लिए शहादा आंदोलन शुरू हुआ। इसके तीन साल बाद यानी 1975 में प्रोग्रेसिव ऑर्गेनाइजेशन ऑफ वुमन ने हैदराबाद में भी आंदोलन शुरू किया, जिसमें दो  हजार महिलाएं शामिल थीं। इस आंदोलन को 1977 में दिल्ली की महिलाओं का साथ मिला।

इसके बाद 1979 में दिल्ली की सत्यरानी चंदा की बेटी की दहेज के लिए जलाकर हत्या कर दी गई, जिसके बाद उन्होंने कड़े कानूनों के लिए मोर्चा खोल दिया। इन आंदोलनों का परिणाम यह हुआ कि 1983 में डावरी एक्ट को संशोधित किया गया। इस तरह से 11 साल के आंदोलन के बाद दहेज की मांग और दहेज के लिए होने वाली हिंसा की रोकथाम के लिए कानून को सख्त किया गया।

वहीं बाल विवाह रोकने के लिए राजा राममोहन राय ने लंबा संघर्ष किया। उनकी मांग थी कि कम उम्र की लड़कियों के विवाह पर रोक लगाई जाए। उन्हीं की मांग पर ब्रिटिश सरकार ने 28 सितंबर 1929 बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम-1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पास किया था।

इस कानून के तहत लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल तय की गई थी। बाद में इसमें संशोधन कर लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 और लड़कों के लिए 21 साल की गई और इसकी पहल हरविलास शारदा ने की थी। इसी वजह से इसे ‘शारदा अधिनियम’ के नाम से भी जाना जाता है।

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