नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार किसानों से बातचीत के लिए हमेशा तैयार है। इस पर किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि बातचीत से ही समाधान निकलेगा। उन्होंने कहा, “जब हमारी और सरकार की बातचीत हो जाए और समाधान निकल आए, तो प्रधानमंत्री बीच में आकर किसानों और सेना के संबोधित करें। सरकार हमें समय दे, संयुक्त किसान मोर्चा अब इस पर विचार करेगा। टिकैत ने कहा -हम बात करेंगे, लेकिन इस बात का पता नहीं चला कि जो कश्मीर में सेना पर पत्थर चलाते थे, वे दिल्ली में किसानों पर पत्थर चला रहे हैं। इन पत्थरबाजों का आपस में क्या कनेक्शन है? इसकी जांच होनी चाहिए। सेना-किसानों पर पत्थर न चलवाए, ये बातचीत में बाधा बनेंगे।”
जानकारी के मुताबिक बजट सत्र के संचालन के लिए सरकार की ओर से शनिवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार किसानों के साथ बातचीत के जरिये उठाए गए मुद्दों को सुलझाने की लगातार कोशिश कर रही है। तीन नए कृषि कानूनों पर केंद्र का प्रस्ताव अभी भी मौजूद है। किसानों के साथ आयोजित हुई पिछली बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि था कि किसानों से सिर्फ एक फोन कॉल की दूरी पर हैं। सरकार आज भी उनकी बात पर कायम है।
सर्वदलीय बैठक में विभिन्न पार्टियों के नेता शामिल हुए। कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंद्योपाध्याय, शिरोमणि अकाली दल के बलविंदर सिंह भुंडर और शिवसेना के विनायक राउत सहित कई नेताओं ने किसानों के विरोध का मुद्दा उठाया।
किसानों की उन मांगों पर फिर से गैर किया गया, जो उन्होंने सरकार के सामने रखे थे। उनकी मांगे इस प्रकार थीं-
-ये कानून भारतीय कृषि को संचालित करने वाले कानूनी ढांचे को तहस-नहस कर देते हैं और किसानों के हितों के विरोधी हैं। ये किसानों को पूरी तरह से कॉरपोरेट घरानों को सुपुर्द करने की कानूनी कवायद का हिस्सा हैं।
-इन कानूनों को पारित करने से पहले इनसे प्रभावित होने वाले किसानों से कोई राय-मशविरा नहीं किया गया। इन्हें सारी संसदीय प्रक्रियाओं और मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए जबरदस्ती पारित कराया गया। इन्हें संसदीय समिति के पास भी नहीं भेजा गया। जिस तरह इन्हें राज्यसभा में पारित कराया गया, वो शर्मनाक था।
-कृषि और बाजार, दोनों ही राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। राज्यों के अधिकार का हनन करने और उनके क्षेत्र में दखल देने का मतलब है संघीय प्रणाली का उल्लंघन। केंद्र सरकार इन कानूनों को व्यापार के क्षेत्र का बता रही है, जो कि केंद्र के अधिकार-क्षेत्र में है, लेकिन किसानों का कहना है कि ये कानून बाजार को प्रभावित करते हैं जो कि राज्य का मामला है।
-सरकार के द्वारा इन कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव इसलिए माना जा सकता है, क्योंकि इनका मूल आधार ही दोषपूर्ण है और संशोधन के बाद भी कानून तो जीवित ही रहेंगे और बीच-बीच में कार्यकारी आदेशों के द्वारा फिर से वे सारे प्रावधान वापस लाए जा सकते हैं, जो अभी आंदोलन के दबाव में वापस लिए गए हैं।