लालू खेमे में उथल-पुथल, तेजस्वी का साथ छोड़ राजद के कई दिग्गज भाजपा में हो गए शामिल

0
124

पटना. बिहार की सियासत में उठा-पटक लगातार जारी है। ताजा घटनाक्रम में सबसे तगड़ा झटका लालू यादव की पार्टी को लगा है। राजद के के कई नामचीन चेहरे बुधवार को भाजपा में शामिल हो गये। इनमें सबसे प्रमुख चेहरा राजद के पूर्व सांसद सीताराम यादव हैं, जिन्हें लालू प्रसाद यादव का बेहद करीबी माना जाता रहा है।

पटना स्थित भाजपा कार्यालय में मिलन समारोह का आयोजन किया गया था। इसी समारोह में राजद के पूर्व सांसद रामदेव मांझी, पूर्व विधायक सुबोध पासवान, राजद के पूर्व विधायक दिलीप यादव, राजद के पूर्व महासचिव संतोष मेहता सहित कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के कई नेता और कांग्रेस के कई नेता आज भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। बताया जाता है कि ये सभी नेता तेजस्वी की कार्यप्रणाली से खफा थे। उन्हें लग रहा था कि पार्टी के लिए दिन-रात एक कर देने के बावजूद उन्हें वह स्थान नहीं मिला, जिसके हकदार वे खुद को समझ रहे थे।

बहरहाल, सभी बागी राजद नेताओं को बिहार भाजपा प्रभारी भूपेंद्र यादव की उपस्थिति में संजय जायसवाल ने भाजपा की सदस्यता दिलाई। समारोह में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री व बिहार के प्रभारी भूपेंद्र यादव, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर संजय जयसवाल, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, भाजपा के वरिष्ठ नेता राज्यसभा सांसद पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी समेत पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता गण उपस्थित थे।

आज यक़ीन करना मुश्किल लगता है कि 1952 तक बिहार देश का सबसे सुशासित राज्य था और इसी बिहार में, जो 270 ईसा पूर्व में मगध था, सम्राट अशोक ने प्रशासन प्रणाली एक ढांचा विकसित किया था। आज समकालीन राजनीति में उसी बिहार का उल्लेख सबसे अराजक राज्य के रुप में होता है। इसी बिहार ने आज़ादी के बाद का देश का अकेला जनआंदोलन खड़ा किया, लेकिन यही बिहार ग़रीबी और कुपोषण से लेकर राजनीति के अपराधीकरण तक के लिए बदनाम भी सबसे अधिक हुआ। राजनीतिक लिप्सा इस प्रदेश को हाशिये को हमेशा से ठेलती रही।
अन्य उत्तर भारतीय राज्यों की तरह ही बिहार भी लंबे समय तक कांग्रेस के प्रभाव में रहा है। वर्ष 1946 में श्रीकृष्ण सिन्हा ने मुख्यमंत्री का पद संभाला तो वे वर्ष 1961 तक लगातार इस पद पर बने रहे। चार छोटे ग़ैर कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल को छोड़ दें तो 1946 से वर्ष 1990 तक राज्य में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ही सत्तारुढ़ रही। पहली बार पांच मार्च 1967 से लेकर 28 जनवरी 1968 तक महामाया प्रसाद सिन्हा के मुख्यमंत्रित्व काल में जनक्रांति दल का शासन रहा। इसके बाद 22 जून 1969 से लेकर चार जुलाई 1969 तक कांग्रेस के ही एक धड़े कांग्रेस (ओ) का शासन रहा और भोला पासवान शास्त्री ने मुख्यमंत्री का पद संभाला। 22 दिसंबर 1970 से दो जून 1971 तक सोशलिस्ट पार्टी के लिए कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री रहे और फिर 24 जून 1977 से 17 फ़रवरी 1980 तक कर्पूरी ठाकुर और रामसुंदर दास के मुख्यमंत्रित्व काल में जनता पार्टी का शासन रहा।

बिहार को राजनीतिक रुप से काफ़ी जागरुक माना जाता है लेकिन यह राजनीतिक रुप से सबसे अस्थिर राज्यों में से भी रहा है। शायद यही वजह है कि वर्ष 1961 में श्रीकृष्ण सिन्हा के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद 1990 तक क़रीब तीस सालों में 23 बार मुख्यमंत्री बदले और पांच बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। संगठन के स्तर पर कांग्रेस पार्टी राज्य स्तर पर कमज़ोर होती रही और केंद्रीय नेतृत्व हावी होता चला गया। लेकिन साफ़ दिखता है कि बिहार की राजनीतिक लगाम उसके हाथों से भी फिसलती रही। जिन तीस सालों में 23 मुख्यमंत्री बदले उनमें से 17 कांग्रेस के थे।

कालान्तर में बिहार में लालू प्रसाद यादव का उदय हुआ। वीपी सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की वजह से बिहार में जनता दल को जीत मिली और लालू प्रसाद यादव 10 मार्च 1990 को मुख्यमंत्री बने। लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से 25 जुलाई 1997 को उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री के पद पर बिठा दिया जो छह मार्च 2005 तक लगातार मुख्यमंत्री बनी रहीं। इस बीच राज्य में कांग्रेस एक तरह से हाशिए पर ही चली गई अब हाशिये की ओर लालू का तिलिस्म भी। कुनबा बिखर रहा है और लालू बीमार हैं। समय राजद की फिर से परिभाषा गढ़ सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here