काठमांडू। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने पहली बार ‘हिंदु’ चोला धारण किया। उन्हें होश आया, मगर काफी कुछ दांव पर लगाने के बाद। नेपाल में अचानक ही धर्म से विमुख हो कर विधर्म की राह पर वामपंथी मार्ग से चल निकले ओली को लगा कि उन्हें सबने त्याग दिया है। चीन ने अपनी नीव हटाई तो भरभरा कर गिर गया ओली का रेत पर बना आभासी किला।
अपने अब तक के शासनकाल में केपी शर्मा ओली चीन के इशारे पर काम करते रहे और इस दौरान उन्होंने भारत विरोधी भावनाओं को भड़काया। इसके लिए उन्होंने भारतीय इलाकों को नेपाल के नक्शे में शामिल करते हुए संविधान संशोधन भी किया। इसके अलावा उन्होंने यह भी आरोप लगा दिया था कि उनकी सत्ता अस्थिर करने के पीछे भारत हाथ है। ओली भारत विरोधी बयानबाजी के लिए लगातार चर्चा में बने रहे।
धर्म को ‘अफीम’ मानकर जिंदगी भर नेपाल के हिंदू राजतंत्र का विरोध करने वाले प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का ह्रदय परिवर्तन अचंभित कर रहा है। खासकर चीन उनके इस बदले अंदाज से भौंचक है, क्योंकि वह शुद्ध वामपंथी विचारधारा रखता है और उनकी नजर ईश वंदना का कोई कोई स्थान नहीं। ओली भी इस विचारधारा के पोषण हैं, लेकिन पहली बार वे सोमवार को पशुपतिनाथ मंदिर पहुंचे। विशेष पूजा की और सवा लाख दीप जलाए। यही नहीं नेपाली पीएम ने पशुपतिनाथ मंदिर को सनातन धर्मावलंबियों के पवित्र स्थल के रूप में विकसित करने का निर्देश दिया।
बता दें कि ओली नेपाल के पहले ऐसे कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री हैं जो इस मंदिर में गए हैं। नेपाली पीएम मंदिर गए और करीब सवा घंटे तक वहां पर रहे। अन्य वामपंथी नेता जैसे पुष्प कमल दहल प्रचंड, माधव कुमार नेपाल, बाबूराम भट्टाराई और झालानाथ खनल कभी भी पशुपतिनाथ मंदिर नहीं गए हैं। यही नहीं इन नेताओं में से कई ने तो ईश्वर के नाम पर शपथ लेने से भी इनकार कर दिया था। विश्लेषकों का मानना है कि ओली की इस मंदिर यात्रा के पीछे उनका राजनीतिक एजेंडा छिपा हुआ है।
याद रहे, कुछ महीने पहले ही ओली ने दावा किया था कि भगवान राम का जन्म भारत के अयोध्या में नहीं,, बल्कि नेपाल में हुआ था। उन्होंने नेपाल के चितवन में अयोध्यापुरी बसाने का निर्देश भी दिया था। इससे पहले पिछले चुनाव में ओली राष्ट्रवाद की भावनाएं भड़काकर और भारत के खिलाफ जहर उगलकर सत्ता में आए थे। पूरे कार्यकाल के दौरान वह चीन के इशारे पर नाचते रहे। ऐसा लगा रहा था कि चीन की शह पर वह जल्द ही भारत को मात कर देंगे। राम और सीता को छीनने की कोशिशों के बीच खुद अलग-थलग पड़ने लगे तो होश आया। ओली का यह अचानक ह्दय परिवर्तन ऐसे समय पर हुआ है, जब नेपाल में राजतंत्र को फिर से बहाल करने और देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग चरम पर है। इसलिए माना जा रहा है कि ओली ने इस यात्रा के जरिए संसद को भंग करने से उपजे असंतोष को कम करने के लिए की है।