कुत्ते के भौंकने पर भिड़े ठाकुर और दलित, पथराव-फायरिंग में कई जख्मी, तोड़ी आंबेडकर की मूर्ति

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Courtesy UP Police

अलीगढ़.
अलीगढ़ का एक इलाका मात्र कुत्ते के भोंकने से हिंसक हो उठा। दो गुट आपस में इस कदर भिड़ पड़े कि भारी तनाव उत्पन्न हो गया। स्थिति बिगड़ते देख पीएसी को तैनात करना पड़ा। पथराव और फायरिंग में कई लोग जख्मी हुए हैं।
यह घटना इगलास विधानसभा क्षेत्र के लोधा थाना इलाके के बड़ौला हाजी गांव का है।

बताया जा रहा है कि गांव में रहने वाले दलित पक्ष का एक किशोर वीरू अपने खेत की तरफ जा रहा था। इसी दौरान ठाकुर पक्ष का एक युवक गौरव अपने कुत्ते को टहला रहा था। वीरू ने गौरव से कुत्ते को अलग करने के लिए कहा। आरोप है कि इस पर गौरव ने वीरू से गाली-गलौच की। वीरू घर आया और मां को बताया।वीरू की मां ठाकुर पक्ष के गौरव के घर पर गई और उसने इस बात की शिकायत की। आरोप है कि इसके बाद ठाकुर पक्ष के लोग करीब 10 गाड़ियों पर सवार होकर पहुंचे और दलित समुदाय के घर पर तोड़फोड़ की। झगड़ा इतना बढ़ा कि दोनों ही तरफ से पथराव हो गया।

आरोप है कि ठाकुर पक्ष के लोगों ने गांव में मौजूद आंबेडकर की मूर्ति को भी क्षतिग्रस्त कर दिया। इसके बाद गांव में भारी तनाव उत्पन्न हो गया। तत्काल मौके पर एसडीएम कोल, पुलिस क्षेत्राधिकारी गभाना पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे। मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। कानूनी कार्रवाई की जा रही है। फिलहाल गांव में तनाव के हालात को देखते हुए पीएसी भी तैनात कर दी गई है। एसडीएम और सीओ समेत तमाम पुलिस फोर्स पहुंच गई।

दरअसल, हमारे राजनेताओं द्वारा लगभग तीन दशक पूर्व जातिवाद के जिस जिन्न को पिटारे से खोला गया था, वह उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में फिर से अपने जहरीले फन फैलाने लगा है। निसंदेह उत्तर प्रदेश जातीय हिंसा का इतिहास रहा है। ठाकुर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं और दलित अपने अधिकारों के लिए सघर्ष करते हैं तो हिंसा बढ़ती है साथ ही जमींदार अधिकतर ठाकुर हैं जिनका भूमि पर स्वामित्व है और वे दलितों का दमन करते हैं।

हमारे राजनेता इतिहास से भी सबक लेना नहीं चाहते हैं। वर्चस्व स्थापित करने और वोट प्राप्त करने की लड़ाई दिखावा और धारणा की राजनीति में बदल गयी है। हमारा इतिहास बताता है कि भारत में सभी संघर्ष जाति पर आधारित रहे हैं। समय आ गया है कि हम कीमत पर सत्ता प्राप्त करने वाले हमारे तुच्छ राजनेता वोट बैंक की राजनीति से परे की सोचें और इसके दीर्घकालीन प्रभावों पर विचार करें। यदि इस प्रवृति पर अभी रोक नहीं लगायी गयी तो यह और बढेगी और इससे हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा हागा।

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