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राष्ट्रीय

शिक्षा केवल मात्र पैसा कमाने लायक बना बनाने के लिए नहीं है, बल्कि इसमें संस्कार और संस्कृति के समावेश से ही वास्तविक उन्नति और उत्थान संभव हैः विशाल

संवाददाताः संतोष कुमार दुबे

दिल्लीः नई शिक्षा नीति भारत के संस्कारों को केंद्र में रखकर बनाई गई है, लेकिन उसके अतिरिक्त भी कुछ और प्रयत्न किए जाने चाहिए, जिनका समावेश संस्कार ने किया है। संस्कार के संस्कृति और परंपरा से जुड़े विषयों को न केवल देश के सभी शिक्षण संस्थानों, विद्यालयों और अन्य संस्थानों में लेकर जाने की आवश्यकता है बल्कि विद्यार्थियों, अध्यापकों और अभिभावकों के बीच भी पहुंचाने की जरूरत है। ये बात प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता विशाल टेक्नीआ इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज में आयोजित संगोष्ठी में कही। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल मात्र पैसा कमाने लायक बना बनाने के लिए नहीं है, बल्कि इसमें संस्कार और संस्कृति के समावेश से ही वास्तविक उन्नति और उत्थान संभव है।

नव वर्ष (विक्रम संवत 2082) के अवसर पर आज, 31 मार्च (सोमवार) को रोहिणी के सेक्टर 14 स्थित टेक्नीआ इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के प्रांगण में ‘भारत का नवनिर्माण : शिक्षा में स्वत्व’ विषय पर एक भव्य और विचारोत्प्रेरक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। भारत की पवित्र और प्राचीनतम ज्ञान परंपरा की जड़ों से जुड़ने के प्रति छात्रों को जागरूक करने की दिशा में काम करनेवाली संस्था, संस्कार की उत्तरी दिल्ली शाखा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता  विशाल थे। कार्यक्रम में रेनू छिकारा (उप शिक्षा निदेशक, दिल्ली सरकार), डॉ. राकेश राही (उप शिक्षा निदेशक, दिल्ली सरकार), डॉ. अजय कुमार (निदेशक, टेक्नीआ इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज) और डॉ. राम कैलाश गुप्ता (अध्यक्ष, टेक्नीआ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स) भी उपस्थित रहे। इस आयोजन में काफी बड़ी संख्या में शिक्षकों, शिक्षाविदों और छात्रों की भी उपस्थिति रही।

कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय शिक्षा एवं ज्ञान की समृद्ध परंपरा को प्रस्तुत करते हुए वर्तमान कालखंड में इसकी नितांत आवश्यकता और प्रासंगिकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर विचार—विमर्श करना था। साथ ही युवाओं को यह समझाने का प्रयास करना था कि कैसे शिक्षा के माध्यम से हम अपने राष्ट्र की पुनर्निर्माण की दिशा में योगदान दे सकते हैं। इस महत्वपूर्ण अवसर पर प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमान विशाल जी मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे। उनके विचार और अनुभवों ने न केवल श्रोताओं को प्रभावित किया, बल्कि भारतीय शिक्षा की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाओं पर गहन विचार विमर्श भी उत्पन्न किया।

इस मौके पर विशाल ने कहा कि वास्तव में नई शिक्षा नीति भारत के संस्कारों को केंद्र में रखकर बनाई गई है, लेकिन उसके अतिरिक्त भी कुछ और प्रयत्न किए जाने चाहिए, जिनका समावेश संस्कार ने किया है। संस्कार के संस्कृति और परंपरा से जुड़े विषयों को न केवल देश के सभी शिक्षण संस्थानों, विद्यालयों और अन्य संस्थानों में लेकर जाने की आवश्यकता है, बल्कि विद्यार्थियों, अध्यापकों और अभिभावकों के बीच भी पहुंचाने की जरूरत है। विशाल ने कहा कि संस्कार का प्रारंभ परिवार से ही होता है और उन्नति और प्रगति के लिए शिक्षण और संस्कार का निर्माण लगातार जारी रहना चाहिए, क्योंकि यह रुकते ही अधोपतन और संकुचन आरंभ हो जाता है।

उन्होंने  कहा कि शिक्षा केवल अक्षर ज्ञान नहीं है,  बल्कि स्वामी विवेकानंद के अनुसार मनुष्य के अंदर जो दिव्यता है उसकी प्रकटीकरण ही शिक्षा है। अक्षर ज्ञान से बहुत आगे बढ़कर शिक्षा मनुष्य को अपने जीवन के उद्देश्यों के प्रति प्रेरित करने और इस जन्म मरण के बंधन से मुक्त करने वाली है। शिक्षा केवल मात्र पैसा कमाने लायक बना बनाने के लिए नहीं है बल्कि इसमें संस्कार और संस्कृति के समावेश से ही वास्तविक उन्नति और उत्थान संभव है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दिल्ली सरकार की उप शिक्षा निदेशक रेनू छिकारा ने संस्कार के निर्माण के लिए विद्यालय और परिवार को बराबर जिम्मेदारी लेने की अपील की। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली सरकार के उप शिक्षा निदेशक डॉ राकेश राही ने कहा कि हमारे संस्कार और संस्कृति का मूल मंत्र सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया और वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है। इसलिए आवश्यक है कि शिक्षा के साथ सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का समावेश हो ताकि वास्तविक रूप से समग्र विकास की ओर आगे बढ़ा जाए।

कार्यक्रम में वक्ताओं ने इस बात पर समग्रता में जोर दिया कि भारत को एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाने के साथ ही पूर्व की भांति शिक्षा और ज्ञान का अग्रणी वैश्विक केंद्र बनाने के लिए हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को परंपरागत स्वरूप में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने शिक्षा प्रणाली में आत्मविश्वास और स्वदेशी ज्ञान को प्राथमिकता दें।

इस उद्देश्य के लिए, उन्होंने युवाओं को भारत की संस्कृति, परंपराओं और इतिहास से जुड़ने के महत्व को समझाया। साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता और समावेशिता पर जोर देते हुए कार्यक्रम में यह बात भी समाने आई कि कैसे नई शिक्षा नीति छात्रों को अधिक स्वतंत्र और बहुआयामी तरीके से सोचने-समझने की क्षमता प्रदान करने की दिशा में काम कर रही है और इसका उद्देश्य न केवल विद्यार्थियों के ज्ञान में वृद्धि करना है, बल्कि उन्हें समाज के प्रति जिम्मेदार नागरिक बनाने का भी है।

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