दिल्लीः पूरा विश्व इस समय नये साल के जश्न में डूबा हुआ है। दुनिया के सबसे पूर्वी हिस्से में स्थित न्यूजीलैंड में सबसे पहले नए साल के जश्न की शुरूआत हुई। आपको बता दें कि न्यूजीलैंड में भारत से साढ़े 07 घंटे पहले, जबकि अमेरिका में साढ़े 9 घंटे बाद नया साल आता है। वहीं, पश्चिमी यूरोपी देश ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में नए साल का सेलिब्रेशन जारी है। ब्रिटेन के कई शहरों में बारिश के बाद भी लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ है। जंग से जूझते रूस और यूक्रेन ने भी नए साल का भव्य स्वागत किया गया। UAE यानी संयुक्त अरब अमीरात की फेमस बिल्डिंग बुर्ज खलीफा पर शानदार लेजर शो और आतिशबाजी का प्रदर्शन किया गया।

भारत में ठंड के बावजूद भी लोगों ने नए साल के सेलिब्रेशन में उत्साह से हिस्सा लिया। आपको बता दें कि भारत से पहले चीन, मलेशिया, सिंगापुर, न्यूजीलैंड जैसे देशों में नए साल का आगाज हुआ। जापान में परंपरा के मुताबिक नए साल पर बौद्ध मंदिरों में 108 बार घंटियां बजाई गईं। साउथ कोरिया में प्लेन क्रैश में 179 लोगों की मौत के कारण नए साल का जश्न काफी सीमित कर दिया गया।

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी हार्बर में पारंपरिक आतिशबाजी देखने के लिए करीब 10 लाख लोग पहुंचे। वहीं, मेलबर्न में नए साल पर यारा नदी के किनारे जमकर आतिशबाजी हुई। न्यूजीलैंड का ऑकलैंड पहला प्रमुख शहर बना, जहां साल 2025 ने दस्तक दी।

ब्रिटेन में 100 साल से भी ज्यादा वक्त से नए साल के स्वागत में टार बार्ल्स महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इसमें 45 पुरुष सिर पर आग लेकर चलते हैं।
ब्रिटेन में 100 साल से भी ज्यादा वक्त से नए साल के स्वागत में टार बार्ल्स महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इसमें 45 पुरुष सिर पर आग लेकर चलते हैं।
ब्रिटेन में बारिश के बाद लोग घरों से छतरियां लेकर न्यू ईयर सेलिब्रेट करने निकले हैं।
ब्रिटेन में बारिश के बाद लोग घरों से छतरियां लेकर न्यू ईयर सेलिब्रेट करने निकले हैं।
भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके साथी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर 16 बार सूरज को उगते और अस्त होते हुए देखेंगे। सुनीता विलियम्स और उनकी टीम लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की कक्षा में हैं। ISS हर 90 मिनट में एक बार पृथ्वी का चक्कर लगाता है। इसलिए, 31 दिसंबर की रात से 1 जनवरी तक वे 16 बार नया साल मनाएंगे।

चलिए अब आपको नए साल पर अलग-अलग देशों में अलग-अलग टाइम की साइंस और न्यू ईयर मनाने के अजीबो-गरीब रिवाज बताते हैं…

दुनिया के सबसे पूर्वी हिस्से में स्थित होने के कारण, न्यूजीलैंड में सबसे पहले नए साल का जश्न मनाया जाता है। न्यूजीलैंड में भारत से साढ़े 07 घंटे पहले, जबकि अमेरिका में साढ़े 9 घंटे बाद नया साल आता है। इस तरह पूरी दुनिया में नया साल आने की जर्नी 19 घंटों तक जारी रहती है।

आपको बता दें कि पृथ्वी के सूरज का एक चक्कर पूरा करने से साल बदलता है। वहीं, अपनी धुरी पर पूरा चक्कर लगाने पर दिन और रातें होती हैं। पृथ्वी के अपनी धुरी पर लगातार घूमते रहने की वजह से कहीं सुबह, कहीं दोपहर, तो कहीं पर रात होती है। यही वजह है कि दुनिया के लगभग हर देश को अलग-अलग टाइम जोन में बांट दिया गया है।

क्यों पड़ी टाइम जोन की जरूरतः घड़ी का आविष्कार 16वीं सदी में हुआ, लेकिन 18वीं सदी तक इसे सूरज की पोजिशन के मुताबिक सेट किया जाता था। जब सूरज सिर पर होता था, तभी घड़ी में 12 बजा दिए जाते थे।

शुरुआत में अलग-अलग देशों के अलग-अलग समय से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन बाद में रेल से लोग कुछ ही घंटे में एक देश से दूसरे देश पहुंचने लगे। इसके बाद देशों के अलग-अलग टाइम से लोगों को ट्रेन के समय का हिसाब रखने में दिक्कतें आईं। जैसे कोई शख्स अगर सुबह 8 बजे स्टेशन से निकलता, तो 5 घंटे बाद, जिस देश पहुंचता वहां कुछ और समय होता।

ऐसे में कनाडाई रेलवे के इंजीनियर सर सैनफोर्ड फ्लेमिंग ने इस समस्या का सबसे पहले हल निकाला। दरअसल 1876 में अलग टाइम की वजह से उनकी ट्रेन छूट गई थी। इस वजह से उन्हें दुनिया के अलग-अलग इलाके में अलग-अलग टाइम जोन बनाने का आइडिया आया।

उन्होंने दुनिया को 24 टाइम जोन में बांटने की बात कही। धरती हर 24 घंटे में 360 डिग्री घूमती है। यानी हर घंटे में 15 डिग्री, जिसे एक टाइमजोन की दूरी माना गया। इससे पूरी दुनिया में 24 समान दूरी वाले टाइम बने। एक डिग्री की वैल्यू 4 मिनट है। यानी आपका देश अगर GMT से 60 डिग्री की दूरी पर है तो 60X4= 240 मिनट, यानी टाइमजोन में 4 घंटे का अंतर होगा।

हालांकि, टाइमजोन बनाने के बाद भी यह दिक्कत थी कि 24 टाइमजोन को बांटते समय दुनिया का सेंटर किसे माना जाए। इसी को तय करने के लिए 1884 में इंटरनेशनल प्राइम मेरिडियन सम्मेलन बुलाया गया। इसमें इंग्लैंड के ग्रीनविच को प्राइम मेरिडियन चुना गया। इसे मैप में 0 डिग्री पर रखा गया।

मौजूदा समय में पूरी दुनिया का टाइमजोन GMT, यानी ग्रीनविच मीन टाइम से ही मैच किया जाता है। जो देश ग्रीनविच से पूर्व दिशा में हैं, वहां का टाइम ब्रिटेन से आगे और पश्चिम होने पर पीछे हो जाता है। जैसे भारत का टाइम ब्रिटेन के टाइम से साढ़े पांच घंटे आगे चलता है वहीं, अमेरिका, ब्रिटेन के पश्चिम में होने के कारण ब्रिटेन के टाइम से 5 घंटे पीछे है।

ब्रिटेन से सबसे ज्यादा पूर्व में ओशिनिया महाद्वीप के देश हैं। इसमें न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और किरिबाती शामिल हैं। इसलिए नया साल सबसे पहले इन्हीं देशों में मनाया जाएगा। शुरूआत न्यूजीलैंड से होगी, क्योंकि ये सबसे ज्यादा पूर्व में है।

आपको बता दें कि जहां सबसे पहले 12 बजेंगे और नए साल का स्वागत होगा। जब न्यूजीलैंड में नया साल शुरू होगा, तब भारत में 31 दिसंबर को शाम के 4.30 बजे होंगे। यानी भारत में न्यूजीलैंड से साढ़े 07 घंटे बाद नए साल की एंट्री होगी, जबकि अमेरिका तक नया साल आने में 19 घंटे लगेंगे। वहां भारतीय समयानुसार 01 जनवरी को सुबह साढ़े 10 बजे 31 दिसंबर के 12 बजेंगे।

क्यों हुआ GMT का ही चयनः ग्रीनविच में काफी लंबे समय से खगोलीय घटनाओं का अध्ययन किया जाता था। इसलिए ब्रिटेन ने इस जगह को ही टाइमजोन का केंद्र बनाया। तब ब्रिटेन दुनिया का सबसे ताकतवर देश हुआ करता था। व्यापार में भी काफी आगे था और दुनिया के ज्यादातर इलाके पर इसका कब्जा था। समुद्री व्यापार में शामिल ज्यादातर जहाज ब्रिटेन के समय का ही इस्तेमाल करते थे।

अब सवाल उठता है कि दुनिया के साथ नया साल क्यों नहीं मनाता चीनः आपको बता दें कि चीन दुनिया के उन देशों में से एक है, जहां 01 जनवरी को नए साल का जश्न नहीं मनाया जाता। दरअसल, चीन उन देशों में से है, जो सोलर कैलेंडर के बदले लूनीसोलर कैलेंडर के हिसाब से चलता है।

लूनीसोलर कैलैंडर में 12 महीने होते हैं और हर महीने में चांद द्वारा पृथ्वी का एक चक्कर होने पर महीना पूरा माना जाता है। चांद, पृथ्वी का एक चक्कर 29 दिन और कुछ घंटों में पूरा करता है।

चीन में 12वें महीने के 30वें दिन नए साल का जश्न मनाया जाता है। इसे चीन में दानियन संशी कहा जाता है। इस साल चीन में 29 जनवरी को नया साल मनाया जाएगा। इस दौरान लोग एक-दूसरे को लाल रंग के कार्ड देते हैं। इतना ही नहीं, इस दौरान पूर्वजों की पूजा और परिवार के साथ डिनर, ड्रैगन और लॉयन डांस का आयोजन भी किया जाता है।

इस फेस्टिवल को चीन ही नहीं, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया और मंगोलिया जैसे बड़े देश भी अलग-अलग परंपराओं के साथ सेलिब्रेट करते हैं।

31 दिसंबर को घड़ी में रात के 12 बजते ही, पूरी दुनिया नए साल का स्वागत करती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि 01 जनवरी को ही साल की शुरुआत क्यों होती है? इसकी वजह रोम साम्राज्य के तानाशाह जूलियस सीजर को माना जाता है।

सीजर ने भ्रष्टाचारी नेताओं को सबक सिखाने के लिए 2066 साल पहले कैलेंडर में बदलाव किए थे। इसके बाद से पूरी दुनिया ने 01 जनवरी को नया साल मनाना शुरू कर दिया।

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