दिल्ली: अर्थशास्त्र का योद्धा…एक ऐसा योद्धा जिसकी जुबान, नहीं बल्कि कलम चलती थी। जी हां हम बात कर रहे हैं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की, जिनका गुरुवार को दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। एक समय था जब पूरा विपक्ष तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह पर मौन रहने का आरोप लगा रहा था। यह वह समय था जब बीजेपी का सत्ता ‘सूर्य’ उदय होने वाला था और कांग्रेस का अस्त। तब शांत रहने वाले मनमोहन सिंह का मौन टूट गया और उन्होंने उन्होंने कुछ ऐसे शब्द कहे, सदैव के लिए अमर हो गए।
बात 2014 की है…डॉ. मनमोहन सिंह ने 2014 में अपने पद छोड़ने से कुछ महीने पहले मीडिया और विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब दिया था। उन्होंने अपने नेतृत्व को लेकर उठने वाले सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि उनका नेतृत्व कमजोर नहीं है। उन्होंने विश्वास जताया था कि इतिहास उनके साथ न्याय करेगा। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने राजनीतिक दबावों के बावजूद अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। इसके अलावा, उन्होंने गुजरात दंगों का जिक्र करते हुए उस समय बीजेपी की ओर से घोषित पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा था। इसके साथ ही उन्होंने खुद पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर भी चुप्पी तोड़ी थी।
डॉ. मनमोहन सिंह ने जनवरी 2014 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दृढ़ता से कहा कि वो ये नहीं मानते कि वो एक कमजोर पीएम रहे। उन्होंने कहा कि ‘मैं ईमानदारी से यह मानता हूं कि इतिहास मेरे प्रति समकालीन मीडिया या संसद में विपक्ष की तुलना में अधिक दयालु होगा।’ उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनका प्रयास राजनीतिक मजबूरियों के बीच सर्वषेखव यह भी स्पष्ट किया कि राजनीतिक बाधाओं के बावजूद, उन्होंने हमेशा देश के हित में काम किया। उन्होंने कहा, “राजनीतिक मजबूरियों के बीच मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है।’
इतिहास मेरे साथ इंसाफ करेगाः डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि ‘परिस्थितियों के अनुसार मैं जितना कर सकता था, उतना किया। अब ये इतिहास को तय करना है कि मैंने क्या किया है या क्या नहीं किया।’ उस समय भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी थे। बीजेपी मोदी को एक मजबूत नेता के रूप में प्रचारित कर रही थी। वहीं, मनमोहन सिंह पर कमजोर नेतृत्व का आरोप लगाया जा रहा था। इस पर उन्होंने मोदी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों का जिक्र किया। इससे राजनीतिक माहौल गरमा गया था।
कोयला घोटाले पर दिये जवाब ने बनाया ‘अमर’: भ्रष्टाचार के आरोपों पर डॉ. मनमोहन सिंह ज्यादातर चुप रहे। विपक्ष उन पर ताबड़तोड़ हमले कर रहा था। तब मनमोहन सिंह ने अपनी चुप्पी तोड़ दी। उन्होंने सिर्फ एक लाइन कही और पूरे विपक्ष को थोड़ी देर के लिए शांत कर दिया। मनमोहन सिंह ने कहा, “हजार जवाबों से अच्छी है खामोशी मेरी।” ये उस नेता का जवाब था जिसने अपने पूरे कार्यकाल या यूं कहें कि जीवन भर एक ही सिद्धांत को जिया, और वो ये कि कर्म ही प्रधान है बाकी वाणी मिथ्या।