मुंबईः एक बार गुस्से में प्रिंसिपल ने कहा कि तुम एक्टर हो? तुम्हारे पिता एक्टर हैं? मुझे तो लगता है तुम गधे हो। बाहर निकलो और दोबारा मत आना। आगे चलकर वही लड़का भारतीय सिनेमा सिनेमा का सबसे बड़ा शोमैन बना। जी हां हम बात कर रहे हैं राज कपूर की, जिनकी आज 100वीं जयंती है।
बात 1930, बॉम्बे का सेंट जेवियर स्कूल में नाटक चल रहा था और 6 साल के एक लड़के ने पादरी की तरह लंबा चोगा पहना हुआ था। चोगा लंबा था और लड़के की हाइट छोटी। मुश्किल से वो खुद को संभाल पा रहा था। मंच पर चढ़ा तो जोश में था, एक ही डायलॉग दो बार बोल गया। कुछ ही देर में उसकी स्टेज पर फिर से एंट्री थी, इस बार चोगा उसके पैरों में फंस गया। सबके सामने स्टेज पर गिर पड़ा, हॉल में बैठे लोग हंसने लगे। सीन खत्म होने पर जब लड़का बैक स्टेज गया तो प्रिंसिपल ने उसकी गर्दन पकड़ ली। दो-चार थप्पड़ जड़ दिए।
प्रिंसिपल ने गुस्से में कहा कि तुम एक्टर हो? तुम्हारे पिता एक्टर हैं? मुझे तो लगता है तुम गधे हो। बाहर निकलो और दोबारा मत आना। आगे चलकर वही लड़का इंडियन सिनेमा का सबसे बड़ा शोमैन बना। उसकी फिल्मों ने विदेशों में भी धूम मचाई। उसकी मूवी को रूस में राष्ट्रीय फिल्म का दर्जा मिला। उसे भारतीय सिनेमा का चार्ली चैपलिन तक कहा गया। राज कपूर, जिन्हें दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड समेत सैकड़ों अवॉर्ड्स से नवाजा गया।
राज कपूर का जन्म 14 दिसंबर 1924 को गुलाम भारत के पेशावर (अब ये हिस्सा पाकिस्तान में आता है) की आलीशान कपूर हवेली में राज कपूर का जन्म हुआ। हालांकि एक वक्त ऐसा भी था जब कपूर खानदान का फिल्म जगत से कोई ताल्लुक नहीं था। गुलाम भारत के ल्यालपुर (अब फैसलाबाद) के पास स्थित समुद्री में दीवान मुरली माल कपूर तहसीलदार थे। उनका बेटा दीवान बशेश्वरनाथ कपूर इंडियन इंपीरियल पुलिस में ऑफिसर था। उनकी पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार में बड़ी सी हवेली थी।
03 नवंबर 1906 को दीवान बशेश्वरनाथ के घर बेटे पृथ्वीराज कपूर का जन्म हुआ। उनके पिता और दादाजी का ल्यालपुर, समुद्री और पेशावर में बड़ा रुतबा था।
बशेश्वरनाथ ने बेटे पृथ्वीराज का दाखिला वकालत में करवाया था, लेकिन ये वो दौर था जब गुलाम भारत में विदेशी चलन के साथ-साथ सिनेमा की नींव पड़ चुकी थी। इसका मुख्य केंद्र बॉम्बे (अब मुंबई) था। पृथ्वीराज ने पिता के कहने पर वकालत शुरू की, लेकिन सालभर बाद उनका नाटकों की तरफ झुकाव होने लगा। उन्होंने एक साल में ही पिता को नाराज कर वकालत की पढ़ाई अधूरी छोड़कर एक्टिंग में हुनर आजमाने के लिए नाटकों में काम करना शुरू कर दिया।
पृथ्वीराज कपूर 17 साल के थे, जब 1923 में उनकी शादी 15 साल की राम सरणी मेहरा से हुई। पिता और दादाजी की बदौलत कपूर खानदान को रईसों में गिना जाता था। यही वजह रही कि कोई मामूली नौकरी करने के बजाय पृथ्वीराज कपूर ने अपना सारा ध्यान नाटकों में लगा रखा था।
शादी के चंद महीनों बाद ही राम सरणी गर्भवती हो गईं। पृथ्वीराज कपूर ने भविष्यवाणी की कि उनकी पहली संतान लड़का ही होगा। एक रोज बच्चे के जन्म से पहले उन्होंने कागज के एक टुकड़े पर लिखा, ‘रणबीर राज’ और अपनी पत्नी के तकिए के नीचे रख दिया। ये वो नाम था, जो वो अपने होने वाले बच्चे को देना चाहते थे।
14 नवंबर 1924 को राम सरणी मेहरा ने बेटे को जन्म दिया, हालांकि किसी कारण उसका नाम रणबीर राज की जगह सृष्टि नाथ कपूर रखा गया। इन्हीं सृष्टि नाथ कपूर को दुनिया आज शोमैन राज कपूर के नाम से जानती है।
राज कपूर उर्फ राजू के जन्म के एक साल बाद पृथ्वीराज कपूर और राम सरणी मेहरा के घर बेटे रविंदर और उसके एक साल बाद देवेंदर का जन्म हुआ। तीन बच्चे हो जाने के बाद पृथ्वीराज कपूर ने 1927 की एक रोज फिल्मी दुनिया में हाथ आजमाने के लिए बॉम्बे जाकर बसने का फैसला कर लिया।
जब उनके पिता ने आर्थिक मदद देने से इनकार कर दिया तो पृथ्वीराज कपूर ने अपनी आंटी से पैसे उधार लिए और पत्नी, तीन बच्चों को लेकर बॉम्बे आ गए।
बॉम्बे में राज कपूर का परिवार कालीघाट की हाजरा रोड के पास रहा करता था। पृथ्वीराज कपूर ने 1929 में फिल्म ‘बेधारी तलवार’ से हिंदी सिनेमा में कदम रखा और साल-दर-साल कामयाबी हासिल करते रहे और स्टार बने। बॉम्बे शहर में हर कोई उन्हें जानता था।
राज, देवेंदर और रविंदर तीनों बच्चों में राज सबसे हैंडसम थे। परदादा पर गईं गहरी नीली आंखें, सफेद चमकदार चेहरा, जिस पर पूरे समय लालिमा रहती थी। नजरबट्टू लगाने के साथ-साथ मां राज का चेहरा गीले कपड़े से पोंछकर ये लालिमा हटाने की कोशिश करती रहती थीं। राज जहां भी ठहरते थे, हर कोई उन्हें नजर भरकर देखता था। पिता के सेट पर लड़कियां उनके गालों को लिपस्टिक से भर देती थीं।
राज कपूर बचपन से ही बेहद शैतान थे, उन्हें खाने का बड़ा शौक था, जिसे पूरा करने के लिए वो अपनी मासूम शक्ल का इस्तेमाल किया करते थे। घर के आसपास की दुकानों में उनकी उधारी चलती थी, जब उधार बढ़ता तो वे नई दुकान से सामान लेने लगते। कई दुकानदार तो ऐसे भी थे जो उनके डांस करने और इक्का-दुक्का गाना सुनाने पर मुफ्त में सामान दे देते थे।
राज कपूर ने सेंट जेवियर स्कूल से पढ़ाई की थी। खाने-पीने का शौक होने के चलते वो वजनी थे। वजन बढ़ता देख मां परेशान रहती थीं इसलिए स्कूल के टिफिन बॉक्स में एक ऑमलेट और एक रोटी ही रखती थीं, लेकिन राज कपूर के लिए ये कम था। उन्हें रोज 2 आने मिलते थे, जिसमें कम सामान आता था, लिहाजा वो कभी दोस्तों की टिफिन खा लेते, या स्कूल की कैंटीन से उधार लेते।
ये सुनते ही राज कपूर झट से राजी हो गए। उन्हें प्रैक्टिस के दौरान बताया गया कि उन्हें यीशू बने शख्स के पीछे से गुजरते हुए एक ही बार में ‘होसन्ना, होसन्ना, होसन्ना’ बोलना है। इस प्ले के लिए उन्हें पादरी की तरह लंबा चोगा पहनाया गया, जो उनके कद के लिहाज से काफी बड़ा था। राज कपूर पहली बार स्टेज पर जाने के लिए इतने उत्साहित थे कि उन्होंने एक बार की जगह अपने डायलॉग दो बार बोल डाले।
जोश यहां भी खत्म नहीं हुआ तो वो दूसरी बार स्टेज पर आ गए, लेकिन इस बार उनका लंबा चोगा पैर में फंस गया और वो यीशू बने शख्स के आगे जोर से गिर पड़े। उन्हें देखते ही गंभीर मुद्रा में बैठे यीशू हंस पड़े, ये देखकर दर्शक भी हंसी से लोट-पोट हो गए।
उनकी गलती को दर्शकों ने तो हंसते हुए माफ कर दिया, लेकिन बैकस्टेज जाते ही प्रिंसिपल ने उनकी गर्दन पकड़ ली और पिटाई लगा दी। राज कपूर का दिल टूटा तो सही, लेकिन इससे भी बुरी बात ये रही कि उनके हाथों से तीनों खाने के कूपन भी छीन लिए गए।
साल 1931 में राज कपूर अचानक घर के नौकर के साथ पिता के स्टूडियो पहुंचे। फैमिली कार से उतरते ही राज भागते हुए पिता के पास आए और धीमी-दबी आवाज में कहा, बिंदु (उनका छोटा भाई रविंदर) बीमार है। बच्चों का बीमार होना वैसे तो आम बात है, लेकिन पृथ्वीराज कपूर भांप गए कि पत्नी ने सिर्फ इतनी सी बात के लिए राज को इतनी दूर नहीं भेजा है। घर आए, तो पता चला कि भाई बिंदू नहीं रहा। बिंदू, राज से 4 साल छोटे थे।
मां ने रोते-बिलखते बताया कि बिंदू पड़ोसियों के गार्डन में खेलने गया था। नहाने के लिए उसे घर बुलाया था, लेकिन आते ही उसका दम घुटने लगा। डॉक्टर्स ने कहा कि उसे सांप ने काटा होगा, लेकिन बाद में पता चला कि उसने चूहे मारने वाली गोलियों को चॉकलेट समझकर निगल लिया था।
भाई की मौत से राज और उनका परिवार उबर ही रहा था कि एक हफ्ते बाद उनके दूसरे भाई को तेज बुखार आ गया। इलाज के दौरान उसकी भी मौत हो गई। मौत की वजह निमोनिया थी।
इस तरह दो भाइयों को खोने के बाद राज कपूर इतना टूट चुके थे कि जब सालों बाद उनके छोटे भाई शम्मी और शशि का जन्म हुआ तो 7-14 साल का गैप होने के चलते वो उन्हें बेटों की तरह प्यार करते थे।
राज कपूर के लिए पहले गुरु उनके पिता पृथ्वीराज कपूर थे। पृथ्वीराज अपने बच्चों को जिंदगी से जुड़ी हर जरूरी चीज सिखाते थे, लेकिन एक खास अंदाज में। कलकत्ता में रहते हुए एक रोज पृथ्वीराज, राज को स्विमिंग के लिए ले गए। उम्र करीब 3-4 साल ही थी, जब वो ठीक तरह चल भी नहीं पाते थे। पिता उन्हें अपने साथ नदी में ले गए। छाती तक शरीर पानी में डुबोया और अचानक ही दूर फेंक दिया। पास खड़ी मां की चीखें निकल गईं, उन्होंने चिल्लाते हुए पृथ्वीराज कपूर से कहा, ‘तुम मेरे बच्चे को मार डालोगे।’
लेकिन उन्होंने तब भी बच्चे को सहारा नहीं दिया। चंद सेकेंड बाद राज कपूर खुद ही हाथ-पैर मारते हुए तैरने लगे। ये तरीका था उनका सिखाने का। जब राज जी स्कूल गए, तो घर में लग्जरी कार मौजूद थी, लेकिन पिता ने नौकरों को साफ तौर पर कह रखा था कि बच्चे ट्राम से ही स्कूल जाएंगे। कोई कार उन्हें छोड़ने-लेने नहीं जाएगी।
एक रोज तेज बारिश हो रही थी, पत्नी ने पृथ्वीराज से कहा- बारिश तेज है, उसे फैमिली कार से स्कूल भेजा जाए। जवाब में पृथ्वीराज कपूर ने पत्नी से कहा- क्या आपको पता है कि बारिश में लोगों की कई कीमती यादें होती हैं, सड़क में भीगना रोमांचक होता है।
आगे उन्होंने कहा, हां, लेकिन बारिश तेज है और राजू (राज कपूर) लेट हो रहा है, उसे कार से भेज दो। राज कपूर वहीं पास खड़े पिता की बातें सुन रहे थे। उन्होंने पास आकर पिता से कहा, नहीं सर, मैं ट्राम से ही जाऊंगा।
इसी तरह एक बार पृथ्वीराज कपूर कुछ डेलिगेट्स के साथ बाली गए थे। वो राज कपूर के लिए तोहफे में न्यूड पेंटिंग लेकर आए। पेंटिंग के साथ एक नोट था, जिसमें लिखा था, माफ करना मैं तुम्हारे लिए जिंदा न्यूड लड़की नहीं ला सका। वो पेंटिंग राज कपूर ने सालों-साल अपने कॉटेज की दीवार पर टांग रखी थी।
राज कपूर और उनके छोटे भाई शम्मी कपूर की उम्र में 7 साल का फासला था। कोलकाता में रहते हुए पृथ्वीराज कपूर हर रविवार को बच्चों को फिल्म देखने भेजा करते थे। राज कपूर चूंकि बड़े थे, तो मां पैसे उन्हीं की हाथों में थमाया करती थीं, साथ ही कौन सी फिल्म देखनी है, ये भी वही तय करते थे। उनके साथ घर का एक नौकर द्वारका भी जाता था।
मां ने राज कपूर को एक रुपया दिया था, जो उस दौर में आने-जाने, खाने-पीने और तीन लोगों के टिकट के पैसे के लिए भरपूर होते थे। उस रोज थिएटर में काफी भीड़ थी। राज ने भाई को नौकर द्वारका के साथ बाहर रुकने को कहा और खुद टिकट लेने पहुंच गए। करीब दो घंटे बाद राज बाहर आए और उन्होंने लटके हुए मुंह के साथ कहा कि भीड़ के चलते कोई टिकट नहीं मिला। निराश होकर वो घर लौट आए।
मां को ये बात कुछ अटपटी लगी। उन्होंने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि राज को ये जानने में 2 घंटे लगे कि टिकट नहीं हैं। मां के सवाल-जवाब के बीच आखिरकार राज ने कबूल कर लिया कि भीड़ होने के कारण 4 आने की सारी टिकटें बिक चुकी थीं। वहां सिर्फ 12 आने की टिकट मिल रही थी, ऐसे में बचे हुए रुपए से वो सिर्फ एक ही टिकट ले सकते थे। ऐसे में उन्होंने 12 आने की टिकट खरीदकर अकेले ही फिल्म गुलीवर्स ट्रेवल देख ली।
राज कपूर के जेहन में फिल्मी कीड़ा इस कदर सवार था कि उन्होंने पढ़ाई-लिखाई को तवज्जो देना लगभग बंद कर दिया। एक दिन स्कूल से खबर आई कि उन्हें मैट्रिक के एग्जाम में बैठने नहीं दिया जाएगा। मां ने पिता से कहा कि आप जाकर स्कूल में बात करिए, लेकिन उन्होंने ये कहते हुए इनकार कर दिया कि वो तब तक स्कूल नहीं जाएंगे, जब तक राज खुद आकर उनसे नहीं कहता।
राज जी भी बेहद अल्हड़ मिजाज थे, उन्हें पिता से विनती करना नागवार लगा, लेकिन एक रोज उन्होंने हिम्मत कर पिता से मैन-टु-मैन बात करने की हिम्मत जुटा ली, जिसकी ट्रेनिंग पिता ने बचपन से उन्हें दी थी।
राज कपूर ने पिता से नजरें मिलाकर कहा- मैं पढ़ाई करना जारी रख सकता हूं, लेकिन मैंने अब तक बस यही सीखा है कि बाल कैसे बनाने हैं और स्टाइल से कपड़े कैसे पहन सकते हैं। मैं आपके कहने पर डिग्री ले लूंगा, लेकिन कुछ सालों बाद मैं आपके सामने आकर कहूंगा कि मेरी कहीं नौकरी लगवा दीजिए। इसकी बजाय मैं अभी से फिल्मों में काम करना चाहता हूं।
बेटे राज कपूर की ये बात सुनकर पृथ्वीराज कपूर रो पड़े। उन्हें वो दिन याद आ गए, जब वो इसी तरह अपने पिता के सामने फिल्मों में जाने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे। उन्होंने झट से जेब में हाथ डालकर 300 रुपए निकाले और राज जी को थमाते हुए कहा, ‘जाओ साहोल, शेखपुर, समुद्री, देहरादून जाकर सभी रिश्तेदारों से मिलो। अगर वापस लौटकर भी तुमने फैसला नहीं बदला, तो मैं तुम्हारी मदद करूंगा।’
राज जी अगले दिन ही रवाना हुए। गांववालों की मेहमाननवाजी का असर ये हुआ कि राज कपूर का पेट खराब हो गया। इसके बावजूद उन्होंने लौटकर पिता से बस इतना कहा, मैं अब भी फिल्मों में आना चाहता हूं। ये सुनते ही पृथ्वीराज कपूर ने रंजीत स्टूडियो के मालिक चंदूलाल शाह को कॉल किया और बेटे को काम पर रखने को कह दिया, लेकिन इसके लिए उनकी दो शर्तें थीं।
पहली शर्त- बेटे राज कपूर को स्टूडियो की तरफ से कोई तनख्वाह न दी जाए।
दूसरी शर्त- उसे स्टूडियो में दूसरे वर्कर्स की तरह रखा जाए, न कि पृथ्वीराज कपूर के बेटे के तौर पर।
पिता ने कहा- जाओ अपनी मां से कहो, वो जितना ज्यादा हो सके उतने सफेद पैंट और शर्ट सिल दें। सुबह सफेद कपड़े पहनकर निकलना और शाम को लौटो तो कपड़े लाल धूल से मटमैले होने चाहिए। तुम्हारी पॉकेट मनी 15 रुपए महीना से बढ़ाकर 30 रुपया की जा रही है। दोपहर को तुम्हारे लिए खाना नहीं आएगा। चाहो तो सुबह टिफिन लेकर निकलो, या स्टूडियो के पास किसी होटल से अपने खर्च पर खाना खाना।
राज पर फिल्मों का ऐसा जुनून सवार था कि वो पिता की कही हर शर्त के लिए राजी हो गए। शुरुआत में वो रंजीत स्टूडियो में फर्श साफ करने और सामान इधर-उधर रखने का काम करते थे, बाद में वो डायरेक्टर केदार शर्मा के असिस्टेंट बन गए। कुछ समय बाद उन्होंने पृथ्वी थिएटर में बतौर प्रोडक्शन इंचार्ज काम करना शुरू किया। इसी समय उन्हें हमारी बात (1943), गौरी (1943) और वाल्मिकी (1946) जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल भी दिए गए।
पृथ्वी थिएटर में काम करते हुए राज कपूर को एक रोज एक लड़के की जरूरत थी, जिसके लिए वो मार्च 1946 में रीवा गए थे। वहां उनके अंकल प्रेमनाथ रहा करते थे, जिन्हें फिल्म में लेने के लिए उनके पिता करतार नाथ से इजाजत चाहिए थी। वो बात कर ही रहे थे कि अचानक उन्हें दूर एक कमरे से सितार की आवाज सुनाई दी। आवाज सुनते ही वो बात छोड़कर उस कमरे में पहुंच गए। वहां देखा तो पता चला कि रिश्ते में उनकी बुआ लगने वालीं प्रेमनाथ की बहन कृष्णा सितार बजा रही थीं।
दरअसल, कृष्णा संगीत की पढ़ाई कर रही थीं और आने वाले इम्तिहान की तैयारी के लिए अपने टीचर के साथ बैठी थीं। राज कपूर ने झट से इजाजत मांग ली कि क्या वो उनके साथ प्रैक्टिस में बैठ सकते हैं। इजाजत मिलने ही वो पास रखे तबले को लेकर बजाने लगे। क्लास खत्म होते ही राज कपूर ने बड़े ही स्टाइल से कृष्णा को अपना विजिटिंग कार्ड दिया, जिसमें लिखा था, राज कपूर-प्रोडक्शन इंजार्च, पृथ्वी थिएटर।
कुछ घंटे बाद ही राज कपूर को प्रेम नाथ के पिता से उन्हें साथ बॉम्बे ले जाने की परमिशन मिली और वो बॉम्बे लौट आए। तीन दिन ही बीते थे कि कृष्णा कपूर के घर राज कपूर का रिश्ता भेजा गया। जाहिर है उनके परिवार ने झट से रिश्ता कबूल कर लिया। इसके 2 महीने बाद ही 12 मई 1946 को दोनों शादी के बंधन में बंध गए।
साल 1946 में केदार शर्मा ने फिल्म नील कमल शुरू की। उन्होंने लीड रोल पत्नी कमला चटर्जी को दिया और हीरो बने जयराज। शूटिंग शुरू हुई ही थी कि कमला चटर्जी का आकस्मिक निधन हो गया। केदार शर्मा बुरी तरह टूट गए और उन्होंने फिल्म बंद कर दी। कुछ महीनों बाद उन्होंने पत्नी की याद में फिल्म दोबारा शुरू की, जिसमें उन्होंने चाइल्ड आर्टिस्ट बेबी मीना (मधुबाला) को पहला लीडिंग रोल दिया। ये सुनते ही जयराज ने फिल्म छोड़ दी।
जब जयराज ने फिल्म छोड़ी तो केदार शर्मा ने रंजीत स्टूडियो में बतौर क्लैप बॉय काम कर रहे राज कपूर को फिल्म में लीड रोल दे दिया।
कहा जाता है कि क्लैप बॉय होते हुए एक रोज राज कपूर बार-बार कैमरे के सामने आकर बाल संवार रहे थे। इससे चिढ़कर डायरेक्टर केदार शर्मा ने उन्हें थप्पड़ जड़ दिया था। इस थप्पड़ की भरपाई करने के लिए उन्होंने राज कपूर को हीरो बनाया था।
राज कपूर की बतौर लीड पहली फिल्म नील कमल का पोस्टर, जिसमें उनका चेहरा भी नहीं था।
राज कपूर की बतौर लीड पहली फिल्म नील कमल का पोस्टर, जिसमें उनका चेहरा भी नहीं था।
राज कपूर और मधुबाला के साथ जैसे ही फिल्म ‘नील कमल’ अनाउंस हुई, फाइनेंसर्स अपने पैसे वापस मांगने लगे। उनका कहना था कि भला ये भी कोई कास्टिंग हुई, न हीरो को कोई जानता है न हीरोइन को। फिल्म कैसे चलेगी।गुस्से में आकर केदार शर्मा ने अपना प्लॉट बेच दिया और फाइनेंसर्स के पैसे लौटाकर खुद फिल्म रोड्यूस की।
24 मार्च 1947 को रिलीज हुई फिल्म ‘नील कमल’ सेमी हिट रही, जिससे राज कपूर को कोई खास पहचान नहीं मिली। इसके बाद रिलीज हुईं उनकी फिल्में ‘जेल यात्रा’, ‘दिल की रानी’ और ‘चित्तौड़ विजय’ भी बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो गईं।
यही वो समय था जब राज कपूर ने अपने करियर को नए सिरे से शुरू किया। 1948 में उन्होंने महज 24 साल की उम्र में RK स्टूडियो की नींव रखी और पहली फिल्म आग डायरेक्ट और प्रोड्यूस की और नरगिस के साथ फिल्म में लीड रोल निभाया।
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