संवाददाताः संतोष कुमार दुबे
गुरुग्रामः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि आज कर शोध करने वाले बहुत है, लेकिन लालफीताशाही की वजह से कुछ नहीं कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि आज कर सारा उदेश्य पेट भरने का है। 4% जनसंख्या वालों को 80% संसाधन चाहिएत।
हरियाणा में गुरुग्राम के फर्रूखनगर स्थित एसजीटी यूनिवर्सिटी में विविभा 2024 कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. भागवत ने शुक्रवार को कहा, “विकास करें या पर्यावरण की रक्षा करें. दोनों में से एक चुनना है, लेकिन हमें दोनों को साथ लेकर चलना पड़ेगा।”
उन्होंने कहा कि जब तकनीकी प्रगति के मापदंडों की बात आती है, तो मात्र चार प्रतिशत जनसंख्या को 80 प्रतिशत संसाधन मिलते हैं और ऐसे विकास के लिए लोगों को पूरी मेहनत से काम करना पड़ता है. नतीजे न मिलने पर निराशा होती है और ऐसी स्थिति में कभी-कभी कठोर कदम उठाने पड़ते हैं और अपने ही लोगों पर डंडा चलाना पड़ता है, जो आज की स्थिति में साफ तौर से देखा जा रहा है।
उन्होंने कहाकि दुनिया भी यह मानती है कि 16वीं सदी तक भारत हर क्षेत्र में अग्रणी था। उन्होंने कहा, “हमने कई महत्वपूर्ण खोजें की थीं, लेकिन उसके बाद हम रुक गए और हमारे पतन की शुरुआत हो गई।”
इस कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ, नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी मौजूद रहे। तीन दिवसीय कार्यक्रम में अलग-अलग विषयों पर चर्चा की जाएगी। वहीं, कार्यक्रम में 1200 से अधिक शोधार्थियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम की थीम विजन फॉर विकसित भारत रखी गई और सभी शोधार्थियों ने इसी थीम पर अपना रिसर्च पेपर तैयार किया है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘आज तक हमारे देश में सभी प्रकार के विचारों को लेकर प्रयोग हुए और पूरे विश्व पर हावी हो गए, लेकिन जहां से ये प्रयोग हुए वहीं अब इनकी विफलता चिंतकों के ध्यान में आती हैं। देश में विकास हुआ था पर्यावरण की समस्याएं भी खड़ी हुई। अभी शास्त्रार्थ चलता है कि विकास करें या पर्यावरण की रक्षा करें। मनुष्य को दोनों को साथ लेकर चलना पड़ेगा, जीवन तभी चलेगा।’
डॉ. भागवत ने यह भी कहा कि अध्यात्म और विज्ञान के बीच कोई टकराव नहीं है. दोनों का मकसद मानवता की भलाई है. उनके मुताबिक, यदि किसी को मोक्ष हासिल करना है, तो उसे अपने सांसारिक कर्मों को छोड़ना पड़ता है. उन्होंने कहा, “अर्थ (पैसा) कमाना है तो भागते रहो, बच्चों को अच्छे से रखना है, सुबह जाकर शाम को लौटना है, लेकिन इसके लिए कुछ न कुछ त्याग भी करना पड़ता है.”
वहीं, इसरो के अध्यक्ष डॉ एस सोमनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने का यही सही समय है। उन्होंने मिशन चंद्रयान की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा लक्ष्य 2040 तक चंद्रमा पर मानव भेजना, और अपना स्पेस स्टेशन तैयार करना है। उन्होंने कहा की भारत की विश्वगुरु की संकल्पना को साकार करते हुए हमें ऐसा भारत बनाना है ताकि लोग यहां पर प्रसन्नता पूर्वक रहें।
भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने विविभा: 2024 का उद्देश्य बताते हुए कहा कि युवा शोधार्थी, शोध और नवाचार के माध्यम से भारत को विश्वगुरु बनाने में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दें। सामूहिक विकास में क्या व्यवधान हैं, उसपर शोध होना चाहिए। विज्ञान और तकनीक इसमें बहुत बड़ा योगदान दे सकती है। दुनिया समस्याओं को जानती है और उनके नेता समाधानों को जानते हैं। वो नई समस्या पैदा करते हैं और उनका समाधान ढूंढते हैं ये समस्या है इसमें शोध की आवश्यकता है। इसलिए हमें समस्याओं के ईंधन से समाधान की अग्नि प्रज्ज्वलित करना है और पूरे विश्व को प्रकाशित करना है।
भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय महामंत्री भरत शरण शिंह ने समस्त आगंतुकों, शोधार्थियों व SGT विश्वविद्यालय के परिवार के प्रति आभार व्यक्त किया। विविभा: 2024 के अंतर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा व आर्टिफीशियल इंटेलीजेन्स पर आधारित भव्य प्रदर्शनी में सहभागिता करने के लिए ISRO, DRDO, BRAHMOS, भारतीय सेना और वायु सेना, IISER, IIT और केंद्रीय विश्वविद्यालयों व शैक्षिक संस्थानों के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया।
VIVIBHA: 2024 में कणाद से कलाम तक की भारत की यात्रा का प्रदर्शन किया गया। इस दौरान 10000 शैक्षणिक संस्थानों, शोध संगठनों और सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों ने “भारतीय शिक्षा”, “विकसित भारत के लिए दृष्टि” और “भविष्य की तकनीक” जैसे विषयों पर अपने शोध और नवाचारों का प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शनी के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया कि सनातनी शिक्षा से लेकर आधुनिक शिक्षा तक के सफर में भारत कहां है।
प्रदर्शनी में प्राचीन गुरुकुलों से लेकर AI, वर्तमान तकनीकी अनुकूलन समेत भारतीय शिक्षा के विकास और छत्रपति शिवाजी के समय के अस्त्र-शस्त्रों से लेकर भारतीय वायु सेना की ब्रह्मोस मिसाइल तक को विभिन्न स्टालों पर प्रदर्शित किया गया। यह प्रदर्शनी देशभर से आए शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रही। खास तौर पर IIIT मणिपुर के स्टॉल पर ‘काबुक कोइदुम’ विशेष रूप से चर्चा में रहा। गुड, चावल, तिल और मेवों से बनी ये पारंपरिक मिठाई, मणिपुर की सांस्कृतिक विरासत को देश भर से परिचित करने का महत्वपूर्ण प्रयास रहा।
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