101 और 160 के बीच एक्यूआई स्तर नारंगी श्रेणी में आता है। इस स्तर पर, बुजुर्ग नागरिकों, बच्चों और अस्थमा जैसी श्वसन समस्याओं वाले लोगों को लंबे समय तक बाहरी गतिविधियों से बचने की सलाह दी जाती है। जैसा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान देखा गया है, कोलकाता में हवा की गुणवत्ता अक्टूबर के दूसरे और तीसरे सप्ताह से खराब होने लगती है। शहर की सर्दियों से पहले हवा में प्रदूषकों के संचय में वृद्धि हुई।
क्या होता है एक्यूआईः इसे वायु गुणवत्ता सूचकांक कहा जाता है। एयर क्वालिटी इंडेक्ट में 08 प्रदूषक तत्व को देखा जाता है कि उनकी मात्रा कितनी है। अगर उनकी तय लिमिट से ज्यादा मात्रा होती है, तो समझ जाता है कि वहां की हवा प्रदूषित है। इसमें सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड आदि शामिल हैं। इन सभी की जांच के बाद एक्यूआई निकाला जाता है.
कितना एक्यूआई नॉर्मल माना जाता हैः एक्यूआई का फॉर्मूला ये है कि ये जितना कम होता है, उतना ही सेहत के हिसाब से ठीक है। एक्यूआई का कम होना बताता है कि हवा साफ है और जितना इसका स्तर ज्यादा होता है, ये बताता है कि प्रदूषण काफी ज्यादा है। जैसे अगर एक्यूआई 0 से 50 के बीच रहे तो इसे अच्छा माना जाएगा और आशा की जाती है कि भारत के हर शहर में ये ही एक्यूआई हो। इसके बाद जैसे जैसे यह बढ़ता जाता है, तो टेंशन ज्यादा हो जाती है. जैसे अगर ये 51 से 100 हो जाए तो भी इसे संतोषजनक माना जाता है। फिर 101 से 200 तक मीडियम, 201 से 300 तक खराब और 301 और 400 के बीच बेहद खराब और 401 से 500 के बीच गंभीर स्थिति मानी जाती है।
कैसे चेक कर सकते हैं एक्यूआईः अब आप अपने शहर का एक्यूआई चेक करके भी समझ सकते हैं कि आखिर आपके शहर के क्या हालात हैं और आप दिल्ली से कितनी बेहतर स्थिति में रह रहे हैं। अपने शहर का एक्यूआई चेक करने के कई तरीके हैं और ऑनलाइन माध्यम से इसे चेक कर सकते हैं. दरअसल, कई ऐसी वेबसाइट हैं, जिस पर एएक्यूआई की जानकारी दी जाती है, जिनमें आप अपनी लोकेशन के आधार पर या फिर शहर, एरिया सेलेक्ट करके इसकी जानकारी ले सकते हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने क्रोनिक बीमारियों जैसे सांस के मरीज, हृदय रोगी, निमोनिया या अन्य श्वसन संक्रमण के शिकार लोगों को इन दिनों विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी है।
हो सकता है अस्थमा अटैक का खतराः स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार वायु प्रदूषण आपके फेफड़ों पर सबसे ज्यादा असर डाल सकता है। जब प्रदूषित हवा में मौजूद सूक्ष्म कण सांस के साथ अंदर जाते हैं तो इससे फेफड़ों के लिए दिक्कतें बढ़ सकती हैं। यह स्थिति पहले से ही सांस की बीमारियों जैसे अस्थमा और ब्रोंकाइटिस वाले मरीजों के लिए खतरनाक और जानलेवा भी हो सकती है। प्रदूषित हवा में कुछ समय भी रहना अस्थमा अटैक का खतरा बढ़ाने वाली हो सकती है।
उपाय- सांस के मरीजों को घर से बाहर जाने से बचना चाहिए। बाहर जाना हो तो मास्क जरूर लगाएं। अपने पास इनहेलर और दवाएं हमेशा रखें।
बढ़ सकती है हृदय रोगियों के लिए दिक्कतेंः वायु प्रदूषण फेफड़ों के साथ-साथ हृदय रोग के शिकार लोगों के लिए भी बहुत नुकसानदायक है। प्रदूषित वातावरण में रहने से ब्लड प्रेशर बढ़ने, हृदय गति रुकने, स्ट्रोक जैसी समस्याओं का जोखिम बढ़ सकता है। प्रदूषण के कारण रक्त वाहिकाओं को भी नुकसान पहुंचता है। वायु प्रदूषण के कारण रक्त वाहिकाएं संकरी और सख्त हो सकती है, जिससे रक्त का प्रवाह कठिन हो जाता है। इस तरह की स्थिति रक्तचाप और हृदय की मांसपेशियों पर दबाव बढ़ाने वाली हो सकती है।
उपाय- हृदय रोग के शिकार लोगों को ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखने, खूब पानी पीते रहने और प्रदूषण से बचाव के लिए मास्क लगाने की सलाह दी जाती है।
क्या है सलाहः स्वास्थ्य विशेषज्ञ के मुताबिक आप पहले से बीमार हों या स्वस्थ, प्रदूषण सभी के लिए खतरनाक है। प्रदूषण के पीक वाले समय जैसे सुबह-शाम घर से बाहर जाने से बचें। पटाखों के धुंआ से खुद को बचाएं, अस्थमा रोगियों के लिए इन बातों का ध्यान रखना और भी जरूरी हो जाता है। घर के भीतर की हवा को साफ-स्वच्छ करने के लिए एयर प्यूरीफयर का इस्तेमाल करें। दिवाली के उत्सव के दौरान मास्क पहनकर रखें जिससे प्रदूषक आपके शरीर में न प्रवेश कर पाएं।
किसी भी समय आपको सांस की दिक्कत, छाती में दर्द या जकड़न महसूस होती है तो बिना देर किए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।