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जापानी संगठन निहोन हिदांक्यो को मिला नोबेल पीस प्राइज, इसमें हिरोशिमा-नागासाकी हमले के पीड़ित शामिल, परमाणु हथियार मुक्त दुनिया बनाने की मुहिम चलाता है संगठन - Prakhar Prahari
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जापानी संगठन निहोन हिदांक्यो को मिला नोबेल पीस प्राइज, इसमें हिरोशिमा-नागासाकी हमले के पीड़ित शामिल, परमाणु हथियार मुक्त दुनिया बनाने की मुहिम चलाता है संगठन

स्कॉटहोमः इस साल जापान के संगठन निहोन हिदांक्यो को शांति के लिए नोबेल प्राइज से नवाजा गया है। उन्हें यह सम्मान दुनिया में परमाणु हथियारों के खिलाफ मुहिम चलाने के लिए दिया गया है।

आपको बता दें कि इस संगठन में वे लोग शामिल हैं,  जो दूसरे विश्व युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले में जीवित बचे थे। इन्हें हिबाकुशा कहा जाता है। ये हिबाकुशा दुनिया भर में अपनी पीड़ा और दर्दनाक यादों को निहोन हिदांक्यो संगठन के जरिए साझा करते हैं।

नोबेल कमेटी ने पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा कि एक दिन परमाणु हमले को झेलने वाले ये लोग हमारे पास नहीं रहेंगे, लेकिन जापान की नई पीढ़ी उनकी याद और अनुभवों को दुनिया के साथ साझा करती रहेगी और उन्हें याद दिलाती रहेगी कि परमाणु हथियार दुनिया के लिए कितने खतरनाक हैं।

निहोन हिदांक्यो संगठन की स्थापना 1956 में परमाणु और हाइड्रोजन बमों के खिलाफ हो रही दूसरी वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस के दौरान हुई थी। अमेरिका ने 1954 में हाइड्रोजन बम का टेस्ट किया था इसके विरोध में 1955 में वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस की शुरुआत हुई थी।

1945 में हुए परमाणु हमलों के लगभग 10 साल बाद भी पीड़ितों को अमेरिका की तरफ से कोई मदद नहीं मिली थी। अमेरिकी सेना ने पीड़ित लोगों पर परमाणु हमलों के बारे में कुछ भी बोलने और लिखने को लेकर रोक लगा रखी थी।

संगठन ने अपनी स्थापना के बाद से हिबाकुशा (पीड़ित लोगों) के समूहों को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भेजा, जिससे दुनिया के लोगों को परमाणु हथियारों से होने वाले भयानक नुकसान और मानव पीड़ा के बारे में बताया जा सके। संगठन ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि दुनिया में कहीं भी और हिबाकुशा न बनाए जाएं, और दुनिया ‘परमाणु हथियार-मुक्त’ बन सके।

गौरतलब है कि 06 अगस्त 1945 को गिराए गए परमाणु बम के केंद्र के सबसे करीब हिरोशिमा की चैंबर ऑफ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स इमारत थी। हमले के बाद इसे घटना की याद के रूप में बिना मरम्मत के छोड़ दिया गया था।

अमेरिका ने 06 अगस्त 1945 को 8 बजकर 15 मिनट पर जापान के हिरोशिमा शहर पर एलोना गे विमान से परमाणु बम गिराया था। 43 सेकेंड हवा में रहने के बाद ये फट गया था। इसके तुरंत बाद एक बड़ा आग का गोला उठा था और आसपास का तापमान 3000 से 4000 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था।

विस्फोट से इतनी तेज हवा चली कि 10 सेकेंड में ही ये ब्लास्ट पूरे हिरोशिमा में फैल गया था। धमाके के चंद मिनट के अंदर ही 70 हजार लोगों की मौत हो गई थी। इस हमले के 3 दिन बाद अमेरिका ने नागासाकी पर भी परमाणु बम गिराया था। इस बम को फैट मैन नाम दिया गया था। वहीं हिरोशिमा पर गिरे बम का नाम लिटिल बॉय था।

4500 किलो वजनी फैट मैन 6.5 किलो प्लूटोनियम से भरा हुआ था। नागासाकी में बम करीब 11:02 बजे फटा था। इस हमले में 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। न्यूक्लियर हमले के बाद जापान ने समर्पण कर दिया था और दूसरा विश्व युद्ध खत्म हो गया था।

2023 में ईरान की महिला पत्रकार और एक्टिविस्ट नरगिस मोहम्मदी को नोबेल पीस प्राइज से सम्मानित किया गया था। उन्हें यह प्राइज महिलाओं की आजादी और उनके हक के लिए लड़ने पर मिला था। नोबेल कमेटी ने पीस प्राइज की घोषणा ईरान की महिलाओं के नारे जन-जिंदगी-आजादी के साथ की थी।

51 साल की नरगिस ईरान की एवान जेल में कैद हैं। उन्हें अब तक 13 बार गिरफ्तार किया जा चुका है। आखिरी गिरफ्तारी के बाद नरगिस को 31 साल की जेल और 154 कोड़ों की सजा सुनाई गई थी।

जून 2023 में न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में नरगिस ने कहा था कि उन्होंने 8 साल से अपने बच्चों को नहीं देखा है। उन्होंने आखिरी बार अपनी जुड़वा बेटियों अली और कियाना की आवाज 2022 में सुनी थी।

आपको बता दें कि नोबेल पीस प्राइज की शुरुआत 1901 में हुई थी। अब तक यह सम्मान 111 लोग और 31 संस्थाओं को मिला है। महात्मा गांधी को 5 बार नॉमिनेट किए जाने के बाद भी नोबेल पीस प्राइज नहीं दिया गया। इस पर कई बार सवाल उठ चुके हैं।

1937 में नोबेल प्राइज कमेटी के एडवाइजर रहे जेकब वॉर्म-मुलर ने कहा था- गांधी एक स्वतंत्रता सेनानी, आदर्शवादी, राष्ट्रवादी और तानाशाह हैं। वो कभी एक मसीहा लगते हैं, लेकिन फिर अचानक एक आम नेता बन जाते हैं। वो हमेशा शांति के पक्ष लेने वालों में नहीं रहे। उन्हें पता होना चाहिए था कि अंग्रेजों के खिलाफ उनके कुछ अहिंसक अभियान हिंसा और आतंक में बदल जाएंगे।

जेकब की इस रिपोर्ट के बाद कमेटी ने महात्मा गांधी को शांति के लिए नोबेल प्राइज नहीं देने का फैसला किया। ये इकलौता मौका नहीं था, इसके बाद भी 4 बार 1938, 1939, 1947 और 1948 में गांधी को नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया था। हालांकि, हर बार उनका नाम हटा दिया गया।

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