संवाददाताः संतोष कुमार दुबे
दिल्लीः देश के प्रसिद्ध उद्योगपति एवं टाटा संस के आजीवन चेयरमैन एमिरेट्स रतन एन. टाटा अब हमारे बीच नहीं रहे। 86 साल की उम्र में बुधवार रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हो गया। आपको बता दें कि टाटा समूह 2023-24 में 13 लाख 85 हजार करोड़ रुपये के राजस्व के साथ दुनिया के सबसे बड़े उद्योग समूहों में से एक है। भारत के रतन कहे जाने वाले दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा अपनी सादगी से हर किसी का दिल जीत लेते थे। वह उन शख्सियतों में शुमार थे, जिनका हर कोई सम्मान करता था।
सादगी से भरे जीवन के प्रेरणास्रोतः रतन एन टाटा की शख्सियत को देखें, तो वह सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं, बल्कि सादगी से भरे नेक और दरियादिल इन्सान, लोगों के लिए आदर्श और प्रेरणास्रोत भी थे। अपने समूह से जुड़े छोटे से छोटे कर्मचारी को भी अपने परिवार की तरह मानते थे और उनका ख्याल रखने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते थे। उनके व्यक्तित्व का एक और पहलू उम्र के सात दशक पूरे करने के बावजूद सक्रिय रहना रहा। 2011 की बंगलूरू एयर शो की उनकी तस्वीरें आज भी चाहने वालों के दिलो-दिमाग में जीवंत है, जब 73 साल की आयु में रतन टाटा ने एप-17 लड़ाकू विमान के कॉकपिट में उड़ान भरी थी।
जन्म, आयु, परिवार और शिक्षाः ब्रिटिश राज के दौरान बॉम्बे (अब मुंबई) में 28 दिसंबर 1937 को एक पारसी परिवार में जन्मे रतन एन टाटा को टाटा परिवार ने गोद लिया था। वर्ष 1948 में जब टाटा 10 वर्ष के थे, उनके माता-पिता अलग हो गए थे और बाद में उनका पालन-पोषण उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने किया था।रतन टाटा ने कैंपियन स्कूल, मुंबई, कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल, मुंबई, बिशप कॉटन स्कूल, शिमला और रिवरडेल कंट्री स्कूल, न्यूयॉर्क शहर में शिक्षा प्राप्त की। वह कॉर्नेल विश्वविद्यालय और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के पूर्व छात्र रहे।
बखूबी निभाई टाटा समूह की जिम्मेदारीः रतन टाटा ने 25 साल की उम्र में टाटा ग्रुप जॉइन किया। यहां से उन्होंने कंपनी के अलग-अलग स्तरों पर काम करके अनुभव प्राप्त किया। उनका करियर उधोग के विभिन्न विभागों में कठिनाइयों से शुरू हुआ, लेकिन उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व ने उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 1991 में, जेआरडी टाटा के इस्तीफे के बाद उन्होंने ग्रुप की बागडोर संभाली और टाटा समूह को ग्लोबल लेवल पर कॉम्पिटीटर बनाया।
रतन टाटा के नेतृत्व में, टाटा समूह ने कई बड़े अधिग्रहण किए, जिनमें साल 2000 में टेटली का अधिग्रहण, जिससे टाटा ग्लोबल बेवरेजेज का निर्माण हुआ। 2007 में कोरस ग्रुप का अधिग्रहण, जिससे जिससे टाटा स्टील दुनिया की सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कंपनियों में शामिल हुई। वहीं सबसे खास 2008 में जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण किया, जिससे टाटा मोटर्स को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली।
टाटा ने 1996 में समूह की दूरसंचार शाखा, टाटा टेलीसर्विसेज की स्थापना की, और 2004 में, उन्होंने समूह की आईटी कंपनी, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज का प्रारंभिक सार्वजनिक निर्याचन का नेतृत्व किया। 2012 में अध्यक्ष पद से हटने के बाद, टाटा ने टाटा संस, टाटा इंडस्ट्रीज, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील और टाटा केमिकल्स सहित कई टाटा कंपनियों के लिए मानद अध्यक्ष का पद बरकरार रखा। टाटा समूह के विकास और वैश्वीकरण अभियान ने उनके नेतृत्व में गति पकड़ी और नई सहस्राब्दी में उच्च-प्रोफाइल टाटा अधिग्रहणों का एक सिलसिला देखने को मिला। उनमें से टेटली 431.3 मिलियन डॉलर में, कोरस 11.3 बिलियन डॉलर में, जैगुआर लैंड रोवर 2.3 बिलियन डॉलर में, ब्रूनर मोंड, जनरल केमिकल इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट्स और दैवू 102 मिलियन डॉलर में थे।
रतन टाटा के नेतृत्व में समूह ने भारतीय सीमाओं से आगे अपना दायरा बढ़ाया, 2000 में ब्रिटिश चाय फर्म टेटली को 432 मिलियन डॉलर में और 2007 में एंग्लो-डच स्टीलमेकर कोरस को 13 बिलियन डॉलर में अधिग्रहित किया, जो उस समय एक भारतीय कंपनी द्वारा विदेशी फर्म का सबसे बड़ा अधिग्रहण था। टाटा मोटर्स ने 2008 में फोर्ड मोटर कंपनी से ब्रिटिश लक्ज़री ऑटो ब्रांड्स जैगुआर और लैंड रोवर भी 2.3 बिलियन डॉलर में अधिग्रहित कर लिए।
नैनो और इंडिका कार ने भी गाड़ा झंडाः टाटा मोटर्स में रतन टाटा के पसंदीदा प्रोजेक्ट्स में इंडिका, “भारत में डिजाइन और निर्मित पहला कार मॉडल” और नैनो, “दुनिया की सबसे सस्ती कार के रूप में प्रचारित” शामिल थे। उन्होंने दोनों मॉडलों के लिए शुरुआती रेखाचित्र तैयार किए। जहां इंडिका एक व्यावसायिक सफलता थी, नैनो को प्रारंभिक सुरक्षा मुद्दों और मार्केटिंग की गलतियों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा। टाटा ने भारत में कमर्शियल एविएशन का बीड़ा उठाया। उन्होंने 1932 में एक एयरलाइन लॉन्च की थी जिसे बाद में एयर इंडिया का नाम दिया गया। सरकार ने बाद में इसे अपने अधीन कर लिया था।
भारत में सड़क पार करते समय शायद ही कोई टाटा ट्रक, बस या एसयूवी ना देखा हो, जिसका निर्माण टाटा समूह ने न किया हो। रतन टाटा ने भारतीय बाजार की नब्ज़ को समझने के लिए लोगों की जरूरतों और दैनिक जीवन को समझा। उन्होंने टाटा नैनो जैसी पहल का नेतृत्व किया, जो कि किफ़ायत और सामूहिक गतिशीलता के लिए डिजाइन की गई दुनिया की सबसे सस्ती कार साबित हुई और टाटा इंडिका को न भूलें, जो एक वास्तविक भारतीय कार बनाने का एक अग्रणी प्रयास थे।
चार मौकों पर शादी के करीब आने के बावजूद नहीं की शादीः रतन टाटा दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे। इसके बावजूद वे कभी अरबपतियों की किसी सूची में नजर नहीं आए। उनके पास 30 से ज्यादा कंपनियां थीं। यह कंपनियां छह महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में फैली थीं। इसके बावजूद वह एक सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। चार मौकों पर शादी के करीब आने के बावजूद रतन टाटा ने कभी शादी नहीं की। उन्होंने एक बार स्वीकार किया था कि लॉस एंजिल्स में काम करने के दौरान उन्हें प्यार हो गया था, लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण लड़की के माता-पिता ने उसे भारत आने देने से मना कर दिया।
ऐसा था रतन टाटा का सफरः सरल व्यक्तितत्व के धनी टाटा एक कॉरपोरेट दिग्गज थे, जिन्होंने अपनी शालीनता और ईमानदारी के बूते एक अलग तरह की छवि बनाई थी। रतन टाटा 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से वास्तुकला में बीएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद पारिवारिक कंपनी में शामिल हो गए। उन्होंने शुरुआत में एक कंपनी में काम किया और टाटा समूह के कई व्यवसायों में अनुभव प्राप्त किया। इसके बाद 1971 में उन्हें समूह की एक फर्म ‘नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी’ का प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया। एक दशक बाद वह टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बने।
1868 में कपड़ा और व्यापारिक छोटी फर्म के रूप में शुरुआत करने वाले टाटा समूह ने शीघ्र ही खुद को एक वैश्विक महाशक्ति में बदल दिया। देखते ही देखते समूह नमक से लेकर इस्पात, कार से लेकर सॉफ्टवेयर, बिजली संयंत्र और एयरलाइन तक फैला गया। 1991 में अपने चाचा जेआरडी टाटा से टाटा समूह के चेयरमैन का पदभार संभाला। जेआरडी टाटा पांच दशक से भी अधिक समय से इस पद पर थे।
रतन टाटा दो दशक से अधिक समय तक समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी ‘टाटा संस’ के चेयरमैन रहे।
इस दौरान समूह ने तेजी से विस्तार करते हुए वर्ष 2000 में लंदन स्थित टेटली टी को 43.13 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा। टाटा ने 2004 में दक्षिण कोरिया की देवू मोटर्स के ट्रक-निर्माण परिचालन को 10.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा। टाटा ने एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस समूह को 11 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा। टाटा ने फोर्ड मोटर कंपनी से मशहूर ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा। 2009 में रतन ने दुनिया की सबसे सस्ती कार को मध्यम वर्ग तक पहुंचाने का अपना वादा पूरा किया।
दरियादिली के मामले में कोई सानी नहींः भारत के सबसे सफल व्यवसायियों में से एक होने के साथ-साथ वह अपनी परोपकारी गतिविधियों के लिए भी जाने जाते थे। परोपकार में उनकी व्यक्तिगत भागीदारी बहुत पहले ही शुरू हो गई थी। वर्ष 1970 के दशक में उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की, जिसने भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में से एक की नींव रखी। दरियादिली के मामले में भी रतन टाटा का कोई सानी नहीं रहा। कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने पीएम केयर्स फंड में 500 करोड़ की बड़ी राशि दान की थी।
जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण: रतन टाटा के नेतृत्व में ही टाटा समूह ने लग्जरी कार निर्माता कंपनी जगुआर लैंड रोवर के अधिग्रहण का ऐतिहासिक फैसला किया था। टाटा ने जेएलआर को 2.3 अरब डॉलर में अधिग्रहित किया था। वित्तीय वर्ष 2024 में जगुआर लैंड रोवर ने 29 अरब पाउंड का सर्वोच्च राजस्व हासिल किया है, इसमें कंपनी का कुल लाभांश 2.6 अरब पाउंड है।
टाटा डोकोमो से टेलीकॉम सेक्टर में एंट्री: टाटा ग्रुप ने साल 2008 में टाटा डोकोमो के साथ भारत के टेलीकॉम सेक्टर में एंट्री ली थी। टाटा समूह की कंपनी टाटा टेलीसर्विस ने जापान की प्रमुख टेलीकॉम कंपनी एनटीटी डोकोमो के साथ साझेदारी कर टाटा डोकोमो की शुरुआत की थी। टाटा डोकोमो के जरिए ही टाटा ने कम टैरिफ वाले प्लान भारतीय उपभोक्ताओं के लिए पेश किए थे। जिससे मोबाइल फोन पर बात करना आम आदमी की पहुंच में आया। साल 2010 में टाटा डोकोमो ने ही पहली निजी कंपनी का तमगा हासिल किया, जिसने 3जी सर्विस सेवाएं शुरू की। हालांकि घाटे के चलते समूह को अपनी इस कंपनी को बंद करना पड़ा और साल 2017 में टाटा डोकोमो ने अपना व्यापार भारती एयरटेल को बेच दिया।
रक्षा उद्योग में टाटा समूह की एंट्री: रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने रक्षा क्षेत्र में एंट्री ली और टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड की शुरुआत की। साल 2007 में लॉन्च की गई यह कंपनी अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में है और अभी भी जमी हुई है। हाल ही में कंपनी ने लॉकहीड मार्टिन के साथ साझेदारी का एलान किया है।
एयर इंडिया का अधिग्रहणः रतन टाटा के नेतृत्व में ही टाटा समूह ने साल 2021 में एयर इंडिया का अधिग्रहण किया। हालांकि उस वक्त रतन टाटा समूह के चेयरमैन नहीं थे, लेकिन मानद चेयरमैन थे। टाटा समूह ने 18 हजार करोड़ रुपये में एयर इंडिया का अधिग्रहण किया। एयर इंडिया की शुरुआत टाटा समूह ने ही देश की आजादी के बाद की थी। ऐसे में साल 2021 में एयर इंडिया एयरलाइंस की घरवापसी हुई। वित्तीय वर्ष 2024 तक एयर इंडिया अपने 60 फीसदी घाटे को कम कर चुकी है।
कुत्तों के प्रति था खास लगावः रतन टाटा को जानवरों और खासकर कुत्तों के प्रति गहरे लगाव के लिए काफी जाना जाता था। उन्होंने गोवा नाम के एक बेसहारा कुत्ते को भी गोद लिया था। वह अक्सर बचाए गए कुत्तों के लिए इंस्टाग्राम पर परिवार ढूंढा करते थे। उनके जीवन में एक ऐसा वाकया भी आया, जब वह अपने बीमार कुत्ते की देखभाल के कारण ब्रिटेन के तत्कालीन प्रिंस चार्ल्स से नहीं मिल पाए थे।
साल 2018 का किस्साः बात है छह फरवरी 2018 की। ब्रिटेन के शाही राजमहल बकिंघम पैलेस में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में ब्रिटेन के शाही राजकुमार प्रिंस चार्ल्स (अब किंग चार्ल्स III) भारतीय उद्योगपति रतन टाटा को उनके परोपकारी कार्यों के लिए एक लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड देना चाहते थे। हालांकि, रतन टाटा कार्यक्रम में नहीं जा सके थे और लोगों को यह सुनकर हैरानी हो सकती है इसके पीछे वजह उनका कुत्ता था।
भारतीय उद्योगपति सुहेल सेठ ने कुछ समय पहले दिल छू लेने वाला किस्सा बताया था। उन्होंने रतन टाटा की उनके वसूलों के लिए काफी तारीफ और सराहना की थी। सुहेल ने बताया था कि आखिर क्यों रतन टाटा इतने बड़े कार्यक्रम में नहीं गए थे। उन्होंने बताया था कि सब कुछ तय था। पुरस्कार समारोह ब्रिटिश एशियन ट्रस्ट के साथ मिलकर आयोजित किया गया था।
11 मिसकॉल और… सुहेल ने बताया कि कार्यक्रम में शामिल होने के लिए वह दो या तीन फरवरी को लंदन पहुंचे थे। वह जब लंदन एयरपोर्ट पर उतरे, तो यह देखकर हैरान थे कि उनके फोन पर रतन टाटा की 11 मिसकॉल पड़ी थी। वह इतने मिसकॉल देखकर थोड़े हैरान हुए और उन्होंने एयरपोर्ट पर अपना बैग पिक करने के बाद तुरंत उन्हें वापस फोन मिलाया।
उन्होंने रतन टाटा की बात को याद करते हुए बताया, ‘उनके कुत्तों- टैंगों और टिटो में से एक काफी बीमार पड़ गया था। मुझे सही से तो नहीं याद है कि उन्होंने दोनों में से किसका नाम लिया था, लेकिन कोई एक गंभीर बीमार था। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं इसे बीमार हालत में छोड़ कर वहां नहीं आ सकता हूं। मुझे यह बात सुनकर बहुत हैरानी हुई। मैंने प्रिंस चार्ल्स के नाम का हवाला देते हुए उन्हें काफी मनाने की कोशिश की, लेकिन वह आने के लिए नहीं माने। टाटा अपना अवॉर्ड लेने उस कार्यक्रम में नहीं आए।’
क्या बोले थे चार्ल्सः सुहेल सेठ ने प्रिंस चार्ल्स के बारे में बताया कि उन्होंने जब रतन टाटा के कार्यक्रम में नहीं आने के पीछे का कारण सुना तो उन्होंने क्या कहा। प्रिंस चार्ल्स ने उनसे कहा, ‘इंसान ऐसा होना चाहिए। रतन टाटा कमाल के इंसान है। यही कारण है कि टाटा हाउस आज इस स्थिति में है।’
टाटा का पंसदीदा कुत्ता ‘गोवाः ‘गोवा’ रतन टाटा का पसंदीदा कुत्ता था जो अक्सर उनके साथ बैठकों में जाता था। रतन टाटा ने एक बार कुत्ते के नाम के पीछे दिलचस्प कहानी साझा की थी। उन्होंने बताया था, ‘वह एक बेसहारा पिल्ला था जब वह गोवा में मेरे सहयोगी की कार में चढ़ा और बॉम्बे हाउस तक आया। मैंने इसलिए ही उसका नाम गोवा रखा।’
विमान उड़ाने का बहुत शौकः जेआरडी टाटा की तरह रतन टाटा को भी विमान उड़ाने का बहुत शौक था। वह 2007 में एफ-16 फाल्कन उड़ाने वाले पहले भारतीय बने। उन्हें कारों का भी बहुत शौक था। उनके संग्रह में मासेराती क्वाट्रोपोर्टे, मर्सिडीज बेंज एस-क्लास, मर्सिडीज बेंज 500 एसएल और जगुआर एफ-टाइप जैसी कारें शामिल हैं।
पियानो बजाने का शौकः भारतीय उद्योगजगत के शिखर पुरुष रतन टाटा के शानदार सफर का आगाज बेहद साधारण दायित्व से हुआ था। टाटा समूह का उत्तराधिकारी होने के बावजूद रतन ने अपने कॅरिअर की शुरुआत टाटा स्टील के संयंत्र में भट्ठी में चूना डालने वाले कामगार के तौर पर की। वह भी तब जब वह बहुराष्ट्रीय आईटी दिग्गज आईबीएम की मोटे पैकेज वाली नौकरी ठुकराकर समूह से जुड़े थे। बचपन में माता-पिता के अलग हो जाने से रतन का पालन-पोषण 10 वर्ष की आयु तक उनकी दादी लेडी नवाजबाई ने किया। आईबीएम से नौकरी की पेशकश के बावजूद टाटा ने भारत लौटने का फैसला किया।
रतन एन टाटा से जुड़ी कुछ अहम जानकारियांः
जन्म | 28 दिसंबर 1937 |
मृत्यु | 9 अक्टूबर, 2024 |
आयु | 86 वर्ष |
शिक्षा | कॉर्नेल विश्वविद्यालय हार्वर्ड बिजनेस स्कूल |
परिवार | नवल टाटा (पिता) सूनी कमिसारीट (मां) |
पेशा | टाटा संस और टाटा समूह की पूर्व अध्यक्ष परोपकारी इन्वेस्टर |
शीर्षक | टाटा संस और टाटा समूह के मानद अध्यक्ष |
पूर्ववर्ती | जेआरडी टाटा |
उत्तराधिकारी | साइरस मिस्त्री (2012) नटराजन चंद्रशेखरन (2017-वर्तमान) |
पुरस्कार | पद्म विभूषण (2008) पद्म भूषण (2000) |
मूल्य | रु. 3800 करोड़ |
प्रसिद्ध उद्धरण | “मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं रखता। मैं निर्णय लेता हूं और फिर उन्हें सही बनाता हूं।” “शक्ति और धन मेरे दो मुख्य हित नहीं हैं।” |
वर्ष | नाम | पुरस्कार देने वाला संगठन |
2000 | पद्म भूषण | भारत सरकार |
2008 | पद्म विभूषण | भारत सरकार |
2001 | मानद डॉक्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन | ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी |
2004 | ओरिएंटल रिपब्लिक ऑफ उरुग्वे का पदक | उरुग्वे सरकार |
2004 | मानद डॉक्टर ऑफ टेक्नोलॉजी | एशियाई प्रौद्योगिकी संस्थान |
2005 | अंतर्राष्ट्रीय विशिष्ट उपलब्धि पुरस्कार | बी’नाई बी’रिथ इंटरनेशनल |
2005 | मानद डॉक्टर ऑफ साइंस | वारविक विश्वविद्यालय. |
2006 | मानद डॉक्टर ऑफ साइंस | भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास |
2006 | जिम्मेदार पूंजीवाद पुरस्कार | विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रेरणा और मान्यता के लिए (FIRST) |
2007 | मानद फैलोशिप | लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस |
2007 | कार्नेगी परोपकार पदक | कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस |
2008 | मानद डॉक्टर ऑफ लॉ | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय |
2008 | मानद डॉक्टर ऑफ साइंस | भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे |
2008 | मानद डॉक्टर ऑफ साइंस | भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर |
2008 | मानद नागरिक पुरस्कार | सिंगापुर सरकार |
2008 | मानद फैलोशिप | इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी |
2008 | प्रेरित नेतृत्व पुरस्कार | प्रदर्शन थियेटर |
2009 | मानद नाइट कमांडर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर (KBE) | महारानी एलिजाबेथ द्वितीय |
2009 | 2008 के लिए इंजीनियरिंग में आजीवन योगदान पुरस्कार | भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी |
2009 | इतालवी गणराज्य के ऑर्डर ऑफ मेरिट के ग्रैंड ऑफिसर | इटली सरकार |
2010 | मानद डॉक्टर ऑफ लॉ | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय |
2010 | हैड्रियन पुरस्कार | विश्व स्मारक कोष |
2010 | ओस्लो बिजनेस फॉर पीस पुरस्कार | बिजनेस फॉर पीस फाउंडेशन |
2010 | लीजेंड इन लीडरशिप अवार्ड | येल विश्वविद्यालय |
2010 | मानद डॉक्टर ऑफ लॉज | पेप्परडाइन विश्वविद्यालय |
2010 | शांति के लिए व्यापार पुरस्कार | बिजनेस फॉर पीस फाउंडेशन |
2010 | वर्ष का बिजनेस लीडर | एशियाई पुरस्कार |
2012 | मानद फेलो | रॉयल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग |
2012 | डॉक्टर ऑफ बिज़नेस की मानद उपाधि | न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी |
2012 | ग्रैंड कॉर्डन ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द राइजिंग सन | जापान सरकार |
2013 | विदेशी सहयोगी | राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी |
2013 | दशक के परिवर्तनकारी नेता | भारतीय मामले भारत नेतृत्व सम्मेलन 2013 |
2013 | अर्न्स्ट एंड यंग एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर – लाइफटाइम अचीवमेंट | अर्न्स्ट एंड यंग |
2013 | बिजनेस प्रैक्टिस के मानद डॉक्टर | कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय |
2014 | मानद डॉक्टर ऑफ बिजनेस | सिंगापुर प्रबंधन विश्वविद्यालय |
2014 | सयाजी रत्न पुरस्कार | बड़ौदा मैनेजमेंट एसोसिएशन |
2014 | मानद नाइट ग्रैंड क्रॉस ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर (GBE) | महारानी एलिजाबेथ द्वितीय |
2014 | मानद डॉक्टर ऑफ लॉज | यॉर्क विश्वविद्यालय, कनाडा |
2015 | ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग के मानद डॉक्टर | क्लेम्सन विश्वविद्यालय |
2015 | सयाजी रत्न पुरस्कार | बड़ौदा मैनेजमेंट एसोसिएशन, ऑनोरिस कॉसा, एचईसी पेरिस |
2016 | लीजन ऑफ ऑनर के कमांडर | फ़्रांस सरकार |
2018 | मानद डॉक्टरेट | स्वानसी विश्वविद्यालय |
2021 | असम बैभव | असम सरकार |
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