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अंतरराष्ट्रीय

अमेरिका के दो वैज्ञानिकों को मिला मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार, माइक्रो RNA की खोज के लिए मिला सम्मान, कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियों की पहचान में मददगार

स्टॉकहोमः  आज यानी सात अक्टूबर से नोबेल प्राइज 2024 के लिए विजेताओं की घोषणा शुरू हो गई। आज मेडिसिन या फिजियोलॉजी के क्षेत्र में नोबेल प्राइज की घोषणा की गई है। इस साल मेडिसिन का नोबेल प्राइज अमेरिकी वैज्ञानिकों विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन को मिला है। उन्हें ये प्राइज माइक्रो RNA (राइबोन्यूक्लिक एसिड) की खोज के लिए दिया गया है।

आपको बता दें कि माइक्रो RNA से पता चलता है कि शरीर में कोशिकाएं कैसे बनती और काम करती हैं। दोनों जीन वैज्ञानिकों ने 1993 में माइक्रो RNA की खोज की थी। इंसान का जीन DNA और RNA से बना होता है। माइक्रो RNA मूल RNA का हिस्सा होता है।

ये पिछले 50 करोड़ सालों से बहुकोशिकीय जीवों के जीनोम में विकसित हुआ है। अब तक इंसानों में अलग-अलग तरह के माइक्रो RNA के एक हजार से ज्यादा जीन की खोज हो चुकी है।

माइक्रो RNA से जुड़ी अहम बातेंः

  • इंसान के शरीर में माइक्रो RNA के बिना सेल और टिश्यू डेवलप नहीं हो सकते।
    माइक्रो RNA में असाधारण बदलाव होने की वजह से कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियां हो सकती हैं।
    माइक्रो RNA की जीन कोडिंग में म्यूटेशन होने की वजह से इंसान के शरीर में सुनने की क्षमता, आंखों और शारीरिक बनावट में समस्या आती है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार गैरी रुवकुन को नोबेल प्राइज के बारे में बताने के लिए जब फोन किया गया तो वो गहरी नींद में थे। नोबेल कमेटी ने उन्हें नींद से जगाकर प्राइज मिलने की जानकारी दी। 7 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक विज्ञान, अर्थशास्त्र, साहित्य और शांति जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्ट काम करने वाले लोगों को नोबेल प्राइज दिया जाएगा।

आपको बता दें कि ये प्राइज स्वीडन के स्टॉकहोम में दिए जा रहे हैं। नोबेल प्राइज में 11 मिलियन स्वीडिश क्रोनर यानी लगभग 8.90 करोड़ रुपए का कैश प्राइज दिया जाएगा। 1901 में जब नोबेल प्राइज की शुरुआत हुई थी, तब से 2024 तक मेडिसिन की फील्ड में 229 लोगों को इससे सम्मानित किया जा चुका है।

पिछली बार मेडिसिन का नोबेल प्राइज कैटलिन कारिको और ड्रू वीसमैन को मिला था। नोबेल प्राइज देने वाली कमेटी ने कहा था कि इनकी दी गई mRNA टेक्नोलॉजी से बनी कोरोना वैक्सीन के जरिए दुनिया कोरोना महामारी से निकल पाई। दरअसल, कोरोना के वक्त पहली बार ऐसा हुआ था जब mRNA टेक्नोलॉजी पर बेस्ड वैक्सीन बनी थी। इसे फाइजर, बायो एन टेक और मॉडर्ना ने बनाया था

 

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