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वेब सीरीज'पंचायत देखने के बाद लोग रघुबीर यादव को पुकारने लगे हैं प्रधान जी, लेकिन एक्टर को सता रही है कौन सी चिंता - Prakhar Prahari
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Categories: मनोरंजन

वेब सीरीज’पंचायत देखने के बाद लोग रघुबीर यादव को पुकारने लगे हैं प्रधान जी, लेकिन एक्टर को सता रही है कौन सी चिंता

मुंबईः वेब सीरीज’पंचायत’ ने  टीवी एवं फिल्म एक्टर रघुबीर यादव को स्टार बना दिया है और इस सीरीज को देखने के बाद लोग उन्हें प्रधान जी कहकर पुकारने लगे हैं। रघुबीर यादव ने कहा है कि करीब चार दशक तक बड़े पर्दे से लेकर टीवी तक कई भूमिकाएं निभाने के बाद वेब सीरीज’पंचायत’ ने उनकी लोकप्रियता को अलग मुकाम पर पहुंचा दिया है और अब जहां भी वह जाते हैं, तो लोग उन्हें ‘प्रधानजी’ कहकर पुकारा करते हैं।

उन्होंने कहा, ‘मैं प्रधान जी हो गया हूं, जहां भी जाता हूं लोग इसी नाम से पुकारते हैं। जैसे पिछला सब भूल गए हैं। अभी मैं बनारस में शूट कर रहा हूं तो लोगों को लगता है कि यह प्रधान जी हमारे बीच में कहां टहल रहे हैं।’ ‘पंचायत’ सीरीज उत्तर प्रदेश के एक गांव में लोगों के रोजमर्रा के संघर्षों के इर्द-गिर्द घूमती है और हाल में इसका तीसरा सीजन रिलीज हुआ है। इसमें उन्हें एक्टिंग को लेकर मिल रही तारीफें उन्हें चिंतित भी करती है।

आपको बता दें कि इस सीरीज में यादव को दर्शकों के सामने एक बार फिर से एक प्रिय और थोड़े भ्रमित प्रधान जी के रूप में पेश किया गया है, जो हमेशा अपने गांव के लोगों के लिए तैयार तो दिखते हैं लेकिन कई बार थोड़े भटक भी जाते हैं। उन्होंने अपने लेटेस्ट इंटरव्यू में कहा, ‘जब सारे सीजन निकल जाएंगे, तब उसके बाद खुश होने की कोशिश करूंगा, अभी तो मुझे चिंता होती है। लगता है कि जिम्मेदारी है, मैं इसे खराब न कर दूं। मैं बहुत ज्यादा खुश न हो जाऊं।’

रधुबीर यादव मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के एक ऐसे ही गांव में पले-बढ़े हैं। उन्होंने कहा, ‘गांव में जो सहजता और सरलता है, वो अभी भी है और हम उसे ही इस सीरीज में ला पाए हैं। ऐसा लगता है कि यह किरदार वास्तविक ज़िदंगी से आते हैं। अलग से गढ़े हुए नहीं लगते हैं।’ उन्होंने कहा,’मेरे पास ऐसे बहुत किरदार थे, मैंने यह सब बचपन में देखा है, थिएटर के जमाने में देखा है, जब मैं पारसी थिएटर करता था तब मैं देखता था।’

उन्होंने रंगमंच के दिनों को याद करते हुए कहा, ‘देखिए चाह को राह होती है। मैंने घर छोड़ने के बाद पारसी थिएटर कंपनी जो अनु कपूर के पिता चलाते हैं, उसमें शामिल हो गया। वहां मैंने छह साल तक काम किया था। वहां मुझे ढाई रुपये प्रतिदिन मिलते थे। यह मेरी जिंदगी के सबसे बेहतर दिन थे। हम भूखे जरूर रहते थे, लेकिन उस भूख ने सिखाया बहुत और मुझे सीखने में बहुत मजा आता है। अभी भी जबतक थोड़ी तकलीफ नहीं हो तो मज़ा नहीं आता।’

मध्य प्रदेश के पारसी थिएटर के बाद यादव ने दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में अध्ययन किया, जहां वह ‘रेपर्टोरी (रंगशाला)’ कंपनी के सदस्य के रूप में 13 वर्षों तक रहे और एक एक्टर और गायक के रूप में अपनी कला को निखारा। उन्होंने कहा, ‘बचपन से ही मेरी एक आदत है कि मैं चीज़ों को लेकर बहुत खुश या दुखी नहीं होता हूं। लोग इसे कई नाम देते हैं, कुछ लोग इसे संघर्ष बोलते हैं, लेकिन मेरे लिए तो यह मेहनत है। इससे मुझे प्ररेणा मिलती है। यह जिदंगी एक पाठशाला ही है, जहां पर मुझे जो जज्बात चाहिए वो मिलते रहते हैं और तजुर्बे से मिली धन दौलत की कोई कीमत नहीं होती है।’

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