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खेल

गोल्फ के प्रति नजरिया बदलने वाले जुनूनी हैं सचित सोनी

संवाददाता-नरेन्द्र कुमार वर्मा

प्रखर प्रहरी

दिल्लीः भारत में गोल्फ का इतिहास बहुत पुराना है। अंग्रेज अपने साथ गोल्फ के खेल को भारत लाए थे। 1929 में कोलकाता में पहला रॉयल कोलकाता गोल्फ क्लब स्थापित किया गया था। गोल्फ के खेल को आमतौर पर बहुत धनवान लोगों का खेल माना जाता है। भारत में उच्च पदों से सेवानिवत्त होने वाले प्रशासनिक अधिकारियों और उद्योगपतियों ने इस खेल को आगे बढ़ाने का काम किया। आज देश के महानगरों में बड़े-बड़े गोल्फ के मैदान है जिन्हें गोल्फ कोर्स कहा जाता है। दुनिया में कई अमीर व्यक्ति तो ऐसे भी है जिनके अपने निजी गोल्फ कोर्स है। देश दुनिया की चमक-धमक के बाद भारत में भी गोल्फ के प्रति लोगों का रुझान बढ़ने लगा मगर यह रुझान सिर्फ अमीर लोगों में ही है। क्योंकि गोल्फ जैसा महंगा खेल मध्यमवर्ग या गरीब वर्ग के बस की बात नहीं हैं। मगर दो जुनूनी लोगों ने भारत में ऐसी शुरूआत की है जिससे गोल्फ बड़े-बड़े विशाल मैदान से निकल कर स्कूल-कॉलेजों के मैदान तक पहुंच रहा है।

सचित सोनी और जसपाल खरबंदा ने भारत में “द गोल्फ रेजोल्यूशन” नाम से कंपनी बना कर गोल्फ के खेल को मध्यमवर्ग और गरीब बच्चों तक पहुंचाने का संकल्प लिया है। सचित सोनी दुनिया की जानी-मानी व्यावसायिक पेशेवर कंपनी जेनपैक्ट में वॉइस प्रेसीडेंट के पद पर थे। जिन्होंने अपनी नौकरी का अधिकांश समय दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और कनाडा में गुजारा हैं। इस दौरान उनका गोल्फ के साथ रिश्ता जुड़ गया। अक्सर उनकी मीटिंग किसी गोल्फ कोर्स में होती थी जिसके बाद उनका भी रुझान गोल्फ की तरफ बढ़ने लगा। हालांकि भारत में पढ़ाई के दौरान वह टेबिल टेनिस के राज्य स्तरीय खिलाड़ी रहे जिन्होंने अपने राज्य का राष्ट्रीय स्तर तक प्रतिनिधित्व भी किया। खेलों की पृष्टभूमि से वह अच्छी तरह परिचत थे। मगर जब उन्होंने गोल्फ खेलना शुरू किया तो उनकी रुचि इस खेल में लगातार बढ़ती रही। एक दिन अचानक उन्होंने अपनी कंपनी के प्रबंधकों से कहा कि वह भारत जाकर स्कूली बच्चों को गोल्फ सिखाना चाहते है लिहाजा कंपनी की सेवा से हट रहे हैं।

साल 2018 में उन्होंने भारत आकर अपने बचपन के मित्र जसपाल खरबंदा के साथ मिलकर स्कूलों में गोल्फ सिखाने का बीड़ा उठाया। सचित सोनी ने अपने इस जुनून में कई अहम लक्ष्यों को निर्धारित किया। जिसमें गरीब बच्चों को कैडी से कोच बनाना, बेकार पड़े मैदानों को हराभरा बना कर गोल्फ के मैदान के तौर पर विकसित करना, स्पेशल श्रेणी के बच्चों को गोल्फ का खेल सिखा कर उनके अंदर आत्मविश्वास का संचार करना, बच्चों को शारीरिक तौर पर स्वस्थ्य बनाना, खेल के प्रति बच्चों की सोच को विकसित करना, स्कूलों में गोल्फ के बिजनेस मॉडल को डेवलप करना, बच्चों के अंदर एक सामाजिक शिष्टाचार का विकास करना और इस धारणा को बदलना कि गोल्फ केवल अमीरों का खेल है।

सचित सोनी जो संकल्प लेकर चल रहे हैं उसकी मंजिल में कई अवरोध है। मगर उन्हें शुरूआत में अच्छे संकेत मिल रहे है। अब तक वह दिल्ली के 25 बड़े स्कूलों के बच्चों को गोल्फ की बारीकियां सिखा रहे है। दिलचस्प बात यह हैं कि जब वह पहली बार दिल्ली के एक नामचीन स्कूल की प्रिंसिपल से मिले तो उन्होंने कहा इतने मंहगे खेल के लिए न तो हमारे बच्चों के पास पैसा है और न ही हमारे पास गोल्फ का मैदान। इस सवाल पर सचित सोनी ने उन्हें जवाब दिया कि वह महज 50 गज की जगह पर ही बच्चों को गोल्फ की बारीकियां सिखा देंगे। प्रिंसिपल ने जब उनका डेमोंस्ट्रेशन देखा तो दंग रह गई। देखते ही देखते उनके साथ बच्चे जुड़ते चले गए। जल्दी ही उन्होंने बच्चों को बर्डी, ईगल, डबल ईगल, अल्बाट्रास, होल इन वन, पार, बोगी, डबल बोगी, ट्रिपल बोगी, जैसे गोल्फ के खेल में प्रयोग होने वाले शब्दों का अर्थ सिखा दिया। वह कहते हैं कि हमने 18 एकड़ में फैले गोल्फ कोर्स को स्कूल के बेसमेंट, छत, मैदान, बेकार पड़ी जगह, स्कूल के मैदान और छोटी सी जगह तक सीमित कर दिया। बच्चों को हम केवल 50 गज में बने मैदान में गोल्फ की सभी बारीकियां सिखाने के बाद गोल्फ कोर्स लेकर जाते है जहां उनका प्रदर्शन देखकर लोग दंग रह जाते है।

सचित कहते है उन्होंने क्लबों, रिसोर्ट और सीनियर सिटीजन क्लब में भी लोगों को गोल्फ सिखाना शुरू कर दिया है। सभी जगह उन्हें बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। सचित कहते हैं कि “मेरा लक्ष्य धनवानों के इस खेल को भारत के आम आदमी तक पहुंचाना है और आने वाले पांच वर्षों में देशभर में 30 हजार से अधिक गोल्फ कोच और कैडी तैयार कर उन्हें रोजगार देने का काम करना है।” जसपाल खरबंदा कहते हैं हमारे लिए रास्ता कठिन है मगर जिस तरह ग्रासरुट पर हमें लोगों का समर्थन मिल रहा है उसे देखते हुए लगता हैं कि आने वाले दिनों में गोल्फ कोर्स के मैदानों में गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चे बड़ी संख्या में गोल्फ खेलते दिखाई देंगे। “द गोल्फ रेजोल्यूशन” के प्रस्ताव के बाद बहुत सारे स्कूलों ने अपने यहां स्कूल की पढ़ाई के बाद गोल्फ के खेल की सुविधा के लिए सहमति जताई है। इससे स्कूलों को मासिक तौर पर अतिरिक्त आमदनी का रास्ता खुल रहा है।

बच्चों के गोल्फ के प्रति रुझान के बारे में बताते हुए सचित सोनी दिल को छूने वाला एक किस्सा सुनाते है। उनकी कंपनी गोल्फ सिखाने का प्रस्ताव लेकर एक स्पेशल चाइल्ड स्कूल में गई। स्कूल की प्रिंसिपल ने उनसे कहा कि हमें तो बच्चों को पढ़ाना मुश्किल है ऐसे में आप इन्हें गोल्फ कैसे सिखा पाएंगे। मगर सचित को अपने काम पर भरोसा था इसलिए उन्होंने प्रिंसिपल से तीन स्पेशल चाइल्ड बच्चों को प्रशिक्षण देने का आग्रह किया। बहुत जल्दी ही तीनों बच्चों ने आत्म विश्वास के साथ गोल्फ के खेल की बारीकियों को न केवल सिखा बल्कि हर रोज खेलने में रुचि भी दिखाई। स्पेशल चाइल्ड में इतना परिवर्तन देखकर प्रिंसिपल आर्श्चय चकित थीं। उन्होंने कहा कि गोल्फ खेल को सिखते समय बच्चों की रुचि खेल के साथ पढ़ाई-लिखाई के प्रति भी बढ़ने लगी। वह कहते हैं कि आज गोल्फ के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहा है। हमने गोल्फ को रोजगार के साथ जोड़ने का काम किया है। कैडी का काम करने वालों को गोल्फ कोच का कोर्स करवा कर वह उनकी तरक्की का रास्ता तय करने का काम कर रहे हैं। उनके गोल्फ खेल मॉडल को लेकर बहुत सारे क्लबों रिसोर्ट का भी अतिरिक्त आय पैदा करने में रुचि दिखा रहे हैं। दिल्ली के एक रिसोर्ट में कचरा डालने वाली जगह को साफ करवा कर जब उन्होंने गोल्फ के गुर सिखाना शुरू किया तो रिसोर्ट के प्रबंधक चकित रह गए। जिस जगह को वह कचरा डालने के लिए उपयोग करते थे वह जगह उन्हें मासिक तौर पर अच्छा पैसा देने लगी।

“द गोल्फ रेजोल्यूशन” का अगला लक्ष्य गोल्फ की एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आयोजन करना है। इस प्रतियोगिता में गरीब बच्चों से लेकर सीनियर सिटीजन और धनवान लोगों से लेकर छोटे स्कूली बच्चों तक के लिए अगल-अलग श्रेणियों के मैच होंगे। वास्तव में “द गोल्फ रेजोल्यूशन” ने एक शॉट से गेंद को होल में डाल कर गोल्फ आम लोगों को भी गोल्फ को खेल के तौर पर अपनाने का विकल्प दे दिया है।

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