पटना: बिहार की राजधानी पटना के करीब-करीब बीचोबीच एक अंडाकार मैदान स्थित है। इस ‘गांधी मैदान’ के नाम से जाना जाता है। इस गांधी मैदान को पहले ‘बांकीपुर मैदान’ या ‘पटना लॉन’ कहा जाता था। देश की आजादी से पहले अंग्रेजी हुकुमत के बड़े अफसरों के मॉर्निंग और इवनिंग वॉक के लिए यह सबसे सुरक्षित स्थान हुआ करता था। शहर के बीच में होने की वजह से आजादी के आंदोलन के दौरान ये मैदान सेंटर पॉइंट बन गया। चंपारण सत्याग्रह में मिले समर्थन से उत्साहित महात्मा गांधी ने इसी मैदान में जनसभा को संबोधित किया था। इसके बाद के वर्षों में पंडित जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, सुभाष चंद्र बोस, राम मनोहर लोहिया, अटल विहारी वाजपेयी, लालू यादव, नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने गांधी मैदान में भाषण दिया। 1948 महात्मा गांधी की हत्या के बाद में इसका नाम बदलकर गांधी मैदान कर दिया गया। पटना के गांधी मैदान से निकली आवाज से दिल्ली की सत्ता हिलती रही। आपको बता दें कि जयप्रकाश नारायण ने भी 5 जून 1974 को इसी गांधी मैदान से संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। जिसके बाद 25 जून 1975 इमरजेंसी लगा दी गई। करीब पांच साल पहले इस मैदान में बड़ा राजनीतिक जलसा हुआ था।
आज से करीब छह साल पहले पटना के गांधी मैदान में एक बड़ी राजनीतिक रैली हुई थी। 2017 में आरजेडी ने नीतीश के महागठबंधन से अलग होने के बाद जनसभा की थी, जिसमें लालू यादव, ममता बनर्जी और शरद यादव ने भाग लिया था। हालांकि इस कार्यक्रम का राष्ट्रीय स्तर पर कोई राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं आई थी। बिना किसी स्पष्ट एजेंडे के आरजेडी का शक्ति प्रदर्शन था।
मोदी की ‘हुंकार‘ रैली: वहीं इससे पहले 27 अक्टूबर 2013 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने गांधी मैदान में विशाल सभा को संबोधित किया था। अपने भाषण के दौरान उन्होंने सीएम नीतीश की तीखी आलोचना की थी। तब नीतीश कुमार एनडीए से बाहर आ गए थे। 2010 में डिनर पार्टी कैंसिल करने का भी मोदी ने जिक्र किया था। इस दौरान गांधी मैदान में सीरियल ब्लास्ट भी हुए थे। जिसमें छह लोग मारे गए थे।
लालू दिखाते रहे दम: 2003 में लालू यादव ने गांधी मैदान में एक बड़ी रैली आयोजित की थी। जिसे आरजेडी सुप्रीमो ने रैली के बजाय ‘रैला’ कहा था। लालू ने अपनी जाति से यादवों को बड़ी संख्या में आने का आह्वान किया था। इसे ‘लाठी में तेल पिलावन रैली’ नाम दिया था। 1990-1997 तक लालू यादव ने कई जातीय रैलियों का आयोजन गांधी मैदान में किया। हालांकि, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी जैसे बीजेपी के दिग्गजों ने 1996-2004 के दौरान गांधी मैदान में कुछ बड़ी रैलियां जरूर कीं। मगर ये दौर मुख्य रूप से लालू यादव के नाम रहा।
वीपी को मिला ‘ऑक्सीजन‘: 1988-89 के दौरान जनमोर्चा के तत्कालीन नेता वीपी सिंह को भी पटना से पॉलिटिकल ऑक्सीजन मिला। तब वो बोफोर्स घोटाले के मामले को उठाकर तत्कालीन पीएम राजीव गांधी के नाक में दम किए हुए थे। 1988-1989 के बीच तीन बार उन्होंने पटना का दौरा किया। हालांकि, उन्होंने किसी बड़ी भीड़ को संबोधित करने के लिए गांधी मैदान का चयन नहीं किया। मगर, पटना के हड़ताली मोड़ पर मिले समर्थन से गदगद जरूर दिखे। वीपी सिंह ने भी 1974 के जेपी आंदोलन की तरह उठ खड़ा होने का आह्वान किया। आगे चलकर प्रधानमंत्री के ओहदे तक पहुंचे। इस दौरान चंद्रशेखर ने भी पटना का दौरा किया। बाद के दिनों में चंद्रशेखर भी प्रधानमंत्री बने।
‘इंदिरा हटाओ‘ अभियान का आगाज: 5 जून 1974 को जेपी ने इसी गांधी मैदान में ऐतिहासिक ‘इंदिरा हटाओ’ अभियान का आगाज किया था। बुजुर्ग जेपी जनता को संबोधित करने के लिए कुर्सी पर बैठे थे। कुछ लोगों का कहना था कि इससे पहले 1942 के आंदोलन के दौरान गांधी मैदान में भीड़ जुटी थी। उस वक्त हजारीबाग जेल ब्रेक के बाद जेपी एक नेशनल हीरो बन गए थे। पटना के गांधी मैदान में दो सबसे अच्छे राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित करने श्रेय जेपी को दिया जाता है। ‘संपूर्ण क्रांति के आह्वान से तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार तिलमिला गई। 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी गई। 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र में पहली कांग्रेस विरोधी सरकार बनी।
लोहिया का कांग्रेस विरोधी अभियान: तीन प्रसिद्ध समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया 1934 से पटना से जुड़े हुए थे। पटना के अंजुमन इस्लामिया हॉल में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया गया। जबकि जेपी ने 1942 और 1974-1977 दौरान सत्ता के खिलाफ बिगुल फूंका। जब लोहिया ने सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में विलय कर दिया, तब 1965 में पटना से अपने कांग्रेस विरोधी अभियान का आगाज किया। 1965 में कांग्रेस शासन के दौरान महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ पटना में कई विरोध प्रदर्शन हुए थे। उस दौरान जमींदारी प्रथा खत्म करने को लेकर बिहार के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री केबी सहाय आलोचनाओं के शिकार थे।
1967 में नौ राज्यों की विधानसभा चुनाव को कांग्रेस हार गई। बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज भी 1967 की शुरुआत में गांधी मैदान में लोहिया के भाषण को याद करते हैं। तब वो एक छात्र के रूप में गांधी मैदान के किनारे से लोहिया को सुना था। तब नीतीश कुमार को क्या पता था कि बिहार की राजनीति में अपनी जगह बनाने के बाद वे भी एक दिन इसी तरह की सभाओं को भी संबोधित करेंगे।
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