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वाशिंगटन: युद्धग्रस्त यूक्रेन को नाटो की सदस्यता पर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बड़ा बयान दिया है। बाइडेन शनिवार को कहा कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता दिलाने के लिए हम कोई स्पेशल इंतजाम नहीं करेंगे। यूक्रेन को हमारे भरोसे नहीं रहना चाहिए।

अमेरिकी न्यूज वेबसाइट पॉलिटिको की रिपोर्ट के मुताबिक बाइडेन ने ये भी कहा कि नाटो की सदस्यता के लिए यूक्रेन को भी उन सभी शर्तों को मानना होगा, जिन्हें दूसरे देश मानते हैं। अमेरिका यूक्रेन के लिए लिए सदस्यता से जुड़ा कोई स्टैंडर्ड को कम नहीं करवाएगा।

आपको बता दें कि कुछ ही दिनों पहले उन्होंने कहा था अमेरिका यूक्रेन के नाटो सदस्य बनने में आने वाले सारे बड़ी चुनौतियों को हटा देगा। बाइडेन मेंबरशिप एक्शन प्लान की बात कर रहे थे, जिसे नाटो में शामिल होने वाले हर देश को स्वीकार करना पड़ता है। अब उन्होंने कहा कि अमेरिका यूक्रेन के लिए कोई स्पेशल इंतजाम नहीं करेगा।

इस प्लान के तहत नाटो में शामिल होने वाले देश को अपनी सैन्य और लोकतांत्रिक प्रणाली में बदलाव लाने पड़ते हैं। इसकी प्रक्रिया काफी लंबी होती है। उदाहरण के तौर पर मैसेडोनिया ने 1999 में MAP की प्रक्रिया शुरू की थी। इसके बाद मैसेडोनिया 2020 में नाटो का सदस्य बन पाया।

आपको बता दें कि जुलाई में लिथुआनिया में नाटो समिट यानी सम्मेलन होने जा रहा है, जिसमें स्टॉल्टेनबर्ग के कार्यकाल, यूक्रेन युद्ध और नाटो की एकजुटता को लेकर अहम फैसले हो सकते हैं। एक अमेरिकी अधिकारी के मुताबिक इस समिट के दौरान यूक्रेन को नाटो सदस्य बनाने के प्रस्ताव पर सभी देशों को साथ लाने की कोशिश की जाएगी। हाल ही में नाटो चीफ स्टॉलटेनबर्ग ने कहा था कि नाटो देशों से मिल रही मदद से यूक्रेन को जंग में काफी फायदा पहुंचा है। समिट के जरिए हम यूक्रेन से राजनीतिक संबंध और मजबूत करेंगे।
साल 2008 में बुखारेस्ट में नाटो का शिखर सम्मेलन हुआ था। इस दौरान 1991 के अंत तक सोवियत संघ का हिस्सा रहे यूक्रेन को नाटो में शामिल करने पर सहमति जताई गई थी।नाटो के सभी सदस्य देशों ने कहा था कि यूक्रेन को नाटो गठबंधन में शामिल कर लिया जाएगा। हालांकि, नाटो नेताओं ने इस दिशा में अभी तक किसी भी तरह के कदम उठाने से परहेज किया है। यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं करने के पीछे सबसे बड़ा कारण NATO चार्टर का आर्टिकल-5 है। इसके मुताबिक, सहयोगी देशों पर किसी भी तरह के हमले को सभी नाटो देशों के खिलाफ हमला माना जाता है, जिससे सभी नाटो देश एक साथ मिल कर उस बाहरी देश का मुकाबला करना पड़ता है। ऐसे में अगर यूक्रेन नाटो सदस्य बनता है तो सभी सदस्य देशों को रूस के साथ युद्ध लड़ना होगा। अब आपको बताते हैं कि NATO ही रूस-यूक्रेन विवाद की वजह

  • 1991 में सोवियत संघ के 15 हिस्सों में टूटने के बाद NATO ने खासतौर पर यूरोप और सोवियत संघ का हिस्सा रहे देशों के बीच तेजी से प्रसार किया।
  • 2004 में NATO से सोवियत संघ का हिस्सा रहे तीन देश- लातविया, एस्तोनिया और लिथुआनिया जुड़े, ये तीनों ही देश रूस के सीमावर्ती देश हैं।
  • पोलैंड (1999), रोमानिया (2004) और बुल्गारिया (2004) जैसे यूरोपीय देश भी NATO के सदस्य बन चुके हैं। ये सभी देश रूस के आसपास हैं। इनके और रूस के बीच सिर्फ यूक्रेन पड़ता है।
  • यूक्रेन कई साल से NATO से जुड़ने की कोशिश करता रहा है। उसकी हालिया कोशिश की वजह से ही रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है।
  • यूक्रेन की रूस के साथ 2200 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है। रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन NATO से जुड़ता है तो NATO सेनाएं यूक्रेन के बहाने रूसी सीमा तक पहुंच जाएंगी।
  • यूक्रेन के NATO से जुड़ने पर रूस की राजधानी मॉस्को की पश्चिमी देशों से दूरी केवल 640 किलोमीटर रह जाएगी। अभी ये दूरी करीब 1600 किलोमीटर है। रूस चाहता है कि यूक्रेन ये गांरटी दे कि वह कभी भी NATO से नहीं जुड़ेगा।

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