दिल्लीः 12 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पैर रखने की जगह नहीं थी। आलम ऐसा था कि कोर्ट रूम नंबर 24 में जाने के लिए तो बाकायदा पास जारी किए गए थे। सुबह करीब 10 बजे जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा अपने चैंबर से कोर्ट रूम में आए। रूम में मौजूद सभी लोग अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो गए और जस्टिस सिन्हा अपनी कुर्सी पर जाकर बैठे और फैसला सुनाने लगे।
इसके बाद जस्टिस सिन्हा ने फैसला सुनाना शुरू किया और उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी मानते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया। साथ ही ये भी कहा कि आने वाले 6 साल तक वे चुनाव नहीं लड़ सकेंगी। जस्टिस सिन्हा के इस फैसले से देश की राजनीति में भूचाल आ गया।
इंदिरा गांधी उस वक्त देश की प्रधानमंत्री थीं और किसी भी हालत में सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं थीं। इस फैसले के खिलाफ वे सुप्रीम कोर्ट भी गईं, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली। आखिरकार इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी।
आपको बता दें कि इस पूरे मामले की शुरुआत 1971 से होती है। देश में लोकसभा चुनाव हुए और कांग्रेस को जबरदस्त जीत मिली। कुल 518 में से कांग्रेस ने 352 सीटें जीतीं और प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी। उन्होंने अपनी पारंपरिक सीट उत्तर प्रदेश के रायबरेली से जीत दर्ज की।
इंदिरा ने एक लाख से भी ज्यादा वोट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण को हराया। राजनारायण अपनी जीत को लेकर इतना आश्वस्त थे कि उन्होंने चुनावी नतीजों से पहले ही विजय जुलूस निकाल दिया था। इधर इंदिरा चुनाव जीतकर संसद चली गईं, उधर राजनारायण चुनाव हारकर कोर्ट चले गए।
उन्होंने कोर्ट को एक सूची सौंपी जिसमें इंदिरा गांधी पर भ्रष्टाचार, चुनावों में धांधली और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने जैसे अलग-अलग आरोप थे। इन आरोपों के आधार पर उन्होंने कोर्ट से मांग की कि इंदिरा का चुनाव रद्द किया जाए।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस सिन्हा कर रहे थे। उन्होंने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और अब बारी प्रधानमंत्री के बयान की थी। मार्च में जस्टिस सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कोर्ट में पेश होने का आदेश सुनाया। यह इतिहास में पहला मौका था जब देश का प्रधानमंत्री कोर्ट में पेश होने जा रहा था। 18 मार्च 1975 को इंदिरा गांधी बयान देने कोर्ट पहुंचीं। करीब 5 घंटे तक उनसे जिरह चली।
सुनवाई और बयान पूरे होने के बाद आज ही के दिन यानी 12 जून 1975 को कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इंदिरा के चुनाव को रद्द कर दिया और 6 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी। कांग्रेस को जरा सा भी अंदेशा नहीं था कि कोर्ट इस तरह का फैसला सुना सकता है।
बैठकों और मंत्रणाओं के बाद तय किया गया कि हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। 11 दिन बाद 23 जून 1975 को इंदिरा ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए फैसले पर रोक लगाने की मांग की।
अगले ही दिन जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने इंदिरा की याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि वे हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह रोक नहीं लगाएंगे, लेकिन इंदिरा प्रधानमंत्री बनीं रह सकती हैं। साथ ही ये भी कहा कि इस दौरान वे संसद की कार्यवाही में भाग तो ले सकती हैं, लेकिन वोट नहीं कर सकेंगी।
एक तरफ कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली, दूसरी तरफ विपक्ष लगातार इंदिरा से इस्तीफे की मांग कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के अगले ही दिन विपक्षी नेताओं ने 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली का आयोजन किया। रैली में भारी भीड़ जुटी जिसे संबोधित करते हुए जयप्रकाश नारायण ने रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता का हिस्सा पढ़ा और नारा दिया – ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’।
इधर जेपी की रैली खत्म हुई और उधर इंदिरा राष्ट्रपति भवन पहुंचीं। रात होते-होते इमरजेंसी का प्रस्ताव तैयार किया जा चुका था। जेपी समेत तमाम बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए। सुबह 8 बजे इंदिरा ने रेडियो पर इमरजेंसी का ऐलान कर दिया। इसी के साथ देश 21 महीने के अपने सबसे बुरे दौर में चला गया।
नेल्सन मंडेला को हुई थी आजीवन कारावास की सजाः आज ही के दिन 1964 में दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उन्हें अगस्त 1962 में गिरफ्तार किया गया था। उन पर आरोप था कि वे गैरकानूनी तरीके से देश से बाहर जाकर देश में तख्तापलट की साजिश रच रहे हैं। अगले 27 साल तक मंडेला जेल में रहे।
जेल में रहने के दौरान ही मंडेला दुनियाभर में लोकप्रिय हो गए और पूरे अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ लड़ने वाले सबसे बड़े नेता बन गए। 1990 में उनकी रिहाई हुई और 1994 में वह दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने। लोग उन्हें प्यार से मदीबा बुलाते थे। उन्हें लोग अफ्रीका का गांधी भी कहते हैं। 5 दिसंबर 2013 को उनका निधन हो गया। आइए एक नजर डालते हैं देश और दुनिया में 12 जून को घटित हुईं महत्वपूर्ण घटनाओं पर-
1665: न्यू एम्स्टर्डम कानूनी तौर पर ब्रिटेन का हिस्सा बना और यॉर्क के ड्यूक के नाम पर इसका नाम न्यूयॉर्क रखा गया।
1691: पोप अलेक्जेंडर (आठवें) की जगह इन्नोसेंट (बारहवें) पोप बने।
1787: अमेरिका में सीनेटर के लिए 30 वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा संबंधी कानून पारित हुआ।
1849: गैस मास्क के लिए लुई हैस्लेटो को पेटेंट मिला।
1889: उत्तरी आयरलैंड के आर्माग में ट्रेन दुर्घटना में 88 लोगों की मौत हुई।
1897: असम में भूकंप से करीब 1500 लोगों की मौत हुई।
1924: अमेरिका के 41वें राष्ट्रपति जॉर्ज हर्बर्ट वॉकर बुश का जन्म हुआ।
1926: ब्राजील ने लीग ऑफ नेशन से बाहर आने का फैसला किया।
1952: तत्कालीन सोवियत रूस ने जापान के साथ शांति संधि को अवैध घोषित किया।
1964: दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उन्हें अगस्त 1962 में गिरफ्तार किया गया था। उन पर आरोप था कि वे गैरकानूनी तरीके से देश से बाहर जाकर देश में तख्तापलट की साजिश रच रहे हैं। अगले 27 साल तक मंडेला जेल में रहे।
1972: महात्मा गांधी की जीवनी के लेखक डी.जी तेंदुलकर का निधन।
1975: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार में दोषी करार दिया।
1990: इंडियन नेशनल सैटेलाइट (INSAT-1D) को लॉन्च किया गया।
1990: रूस ने खुद को संप्रभु राष्ट्र घोषित किया। 1992 से हर साल 12 जून को रूस दिवस मनाया जाता है।
1991: बोरिस येल्तसिन तत्कालीन रूसी गणराज्य के राष्ट्रपति बने।
1994: बोइंग-777 ने अपनी पहली उड़ान भरी। उस समय इस विमान में दुनिया का सबसे बड़ा ट्विन जेट इंजन लगाया गया था।
2002: विश्व बालश्रम निषेध दिवस की शुरुआत।
2013: भारत में 163 साल से चली आ रही टेलीग्राम सेवा को बंद करने की घोषणा की गई। 15 जुलाई 2013 के दिन देश में आखिरी टेलीग्राम भेजा गया।
2015: चंडीगढ़ के प्रसिद्ध रॉक गार्डन के शिल्पकार पद्मश्री नेक चन्द सैनी का निधन।
2016: सायना नेहवाल ने दूसरी बार ऑस्ट्रेलियाई ओपन ख़िताब जीता।
2017: ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित तेलुगू भाषा के प्रख्यात कवि सी. नारायण रेड्डी का निधन ।
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