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क्या 2024 में चुनाव लड़ पाएंगे आनंद मोहन सिंह, क्या कहता है कानून

दिल्ली : आईएएस जी कृष्णैया की हत्या के मामले में 15 साल तक जेल में बिताने के बाद पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह गुरुवार को बिहार की  सहरसा जेल से रिहा हो गए। आपको बता दें कि आनंद मोहन को 1994 में गोपालगंज  के तत्कालीन जिलाधिकारी (डीएम) जी. कृष्णैया की हत्या में उन्हें  आजीवन कारावास की सजा हुई थी। जेल मैनुअल में हुए एक संशोधन के बाद उनकी रिहाई  का मार्ग प्रशस्त हुआ। पूर्व सांसद की रिहाई की अधिसूचना उनके पेरोल की अवधि के दौरान  ही जारी हुई। जेल अधीक्षक अमित कुमार ने बताया कि गुरुवार की सुबह आनंद मोहन को रिहा कर दिया गया। आनंद मोहन 15 दिनों की पेरोल पर बाहर निकलने के बाद बुधवार की शाम को वापस जेल चले गए थे।

बाहुबली नेता आनंद मोहन जेल से रिहाई के बाद बिहार की सियासी पारी बढ़ गया है। अब ऐसी अटकलें लग रही हैं कि आनंद मोहन अब राजनीति में सक्रिय होंगे।  बिहार में ऐसी चर्चाएं तेज हो गई हैं कि आनंद मोहन अब फिर राजनीति में कदम रखेंगे। कोसी क्षेत्र में उनका प्रभाव माना जाता है। क्षेत्र में सवर्णों खासकर राजपूत बिरादरी पर उनकी पकड़ मानी जाती है। उनकी पत्नी लवली आनंद भी सांसद रह चुकी हैं। चर्चा ये भी है कि वह अब अपने बेटे चेतन को सियासत में लॉन्च कर सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में बमुश्किल एक साल बचे हैं, तो क्या आनंद मोहन चुनाव भी लड़ सकते हैं? कुछ न्यूज रिपोर्ट्स में भी इस तरह की अटकलें लग भी रही हैं। तो चलिए जानते हैं कि इसे लेकर कानून क्या कहता है…

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को लिली थॉमस केस में दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में साफ किया है कि 2 साल या उससे ज्यादा की सजा पाया शख्स सजा पूरी होने के बाद भी अगले 06 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता। उसी फैसले में शीर्ष अदालत ने तय किया कि अगर किसी जनप्रतिनिधि (सांसद, विधायक या एमएलसी) को किसी आपराधिक मामले में 02 साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से खत्म हो जाएगी। आपको बता दें कि मोदी सरनेम से जुड़े आपराधिक मानहानि मामले में सजा के बाद राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता भी इसी आधार पर खत्म हुई थी। लिली थॉमस केस के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) को रद्द कर दिया था। उससे पहले तक सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों की सदस्यता तत्काल खत्म नहीं होती थी, बल्कि उन्हें सजा को चुनौती देने के लिए 3 महीने का समय मिलता था। उनकी अपील जबतक लंबित रहती थी, तबतक उनकी सदस्यता नहीं जाती थी।

आपको बता दें कि नीतीश सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव किया है जिससे आनंद मोहन जेल की चारदीवारी से आजाद हुए हैं। गुरुवार को तड़के करीब 4 बजे वह जेल से रिहा हुए। इसके खिलाफ पटना हाई कोर्ट में एक पीआईएल भी दाखिल हुई है। हो सकता है कि मामला सुप्रीम कोर्ट भी जाए। रिहाई के दिन यानी 27 अप्रैल 2023 को अगर आनंद मोहन की सजा की अवधि पूरी भी मान ली जाए, तब भी वह अगले 6 साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। यानी 27 अप्रैल 2029 तक वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य है। हां, ये हो सकता है कि वह अपने परिजनों या करीबियों के जरिए सियासत करें लेकिन वह खुद चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

 

General Desk

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