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रिहा हुए आनंद, बिहार में शुरू हुई दलित बनाम राजपूत की राजनीति

पटनाः आईएएस (IAS) यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आईएएस जी कृष्णैया की हत्या के मामले में सजा काट कर पूर्व आनंद मोहन सिंह जेल से रिहा हो चुके हैं। उनकी रिहाई नीतीश कुमार सरकार की मेहरबानी पर हुई है, जिसके के बाद बिहार में राजपूत बनाम दलित की सियासत शुरू हो गई है। सत्तारूढ़ जेडीयू और आरजेडी पर आनंद मोहन को रिहा कर राजपूत वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया जा रहा है।

विपक्षी पार्टियों का तर्क है कि गैंगस्टर से राजनेता बने आनंद मोहन की रिहाई राजपूत समुदाय को खुश करने का प्रयास है, जो वर्षों से उनकी रिहाई की मांग कर रहा है।  विपक्षी दलों विशेष रूप से दलित हितों का प्रतिनिधित्व करने वालों ने इस फैसले की कड़ी निंदा की है। उनका दावा है कि यह न्याय को कमजोर करता है और जाति आधारित हिंसा के अपराधियों को एक खतरनाक संदेश भेजता है।

बाहुल बली नेता आनंद मोहन की रिहाई ने बिहार में भी जनमत को विभाजित कर दिया है। जहां समाज के कुछ वर्ग इसे सुलह और माफी की दिशा में एक कदम मानते हुए उनकी रिहाई का समर्थन कर रहे हैं, वहीं अन्य इसे न्याय के साथ विश्वासघात और दलित समुदाय के अधिकारों की अवहेलना के रूप में देखते हैं। यह मुद्दा अत्यधिक ध्रुवीकृत हो गया है, जिसमें दोनों पक्ष शब्दों के युद्ध और राजनीतिक तेवर में उलझे हुए हैं।

बिहार सरकार के फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में एक और जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें सरकार की अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई है। याचिका में सरकार की ओर से जारी उस अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की गई है जिसके तहत बिहार कारागार नियमावली, 2012 के नियम में संशोधन कर ‘ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या’ वाक्य को हटाया दिया गया। याचिका सामाजिक कार्यकर्ता अमर ज्योति ने अपने वकील अलका वर्मा के जरिये दायर किया है। याचिका में राज्य सरकार की ओर से बिहार कारागार नियमावली, 2012 के नियम 481(i)(क) में किए गए संशोधन को गैरकानूनी बताया गया है।

वहीं, दिवंगत आईएएस जी कृष्णैयाकी बेटी पद्मा ने कहा कि आनंद मोहन सिंह का जेल से छूटना हमारे लिए बहुत दुख की बात है। सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। इस फैसले से नीतीश सरकार ने एक गलत मिसाल कायम की है। यह सिर्फ एक परिवार के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के लिए अन्याय है। इस फैसले के लिए हम नीतीश कुमार को जिम्मेदार मानते हैं। हम इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे। उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह करती हूं कि वह एक ऐसा कानून लेकर आएं कि देश में गैंगस्टर और माफिया राज बिलकुल खत्म हो। मुझे केवल पीएम मोदी से ही उम्मीद है।

उधर, मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कहा कि पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की जेल से रिहाई नियम के अनुसार है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जो लंबे समय से चली आ रही है। बिहार में नया जेल मैनुअल वर्ष 2012 में बना। इसके नियम 474 से 487 में विस्तार से प्रक्रिया दी हुई है। इस प्रक्रिया के तहत जेल में कम से कम 14 वर्ष बिताने के बाद ही रिहाई पर विचार होगा। आनंद मोहन 15 वर्ष 9 माह 25 दिन जेल में रहे। परिहार सहित कुल अवधि 22 वर्ष 13 दिन की हो चुकी है। साथ ही जेल में अच्छे आचरण को भी देखा जाता है।

 

General Desk

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