दिल्लीः देश में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी में कम हुई है और यह 6.44 प्रतिशत रही। आपको बता दें कि इससे एक महीना पहले यानी जनवरी में खुदरा मुद्रास्फीति 6.52 प्रतिशत और पिछले साल फरवरी में 6.07 प्रतिशत थी।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी आंकड़ों के अनुसार मुद्रास्फीति में माह-दर-माह आधार पर कमी के बावजूद अनाज, दूध और फलों की महंगाई दर उच्च बनी हुई है।
खुदरा मुद्रास्फीति के अभी भारतीय रिजर्व बैंक की लक्षित ऊपरी सीमा, छह प्रतिशत से भी ऊपर चल रही है इसलिए केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति अगली समीक्षा बैठक में नीतिगत ब्याज दर रेपो में और बढ़ोतरी करने पर विचार कर सकती है।
आंकड़ों के अनुसार मुख्य खुदरा मुद्रास्फीति (खाद्य एवं मूल्य नियंत्रण में आने वाली वस्तुओं के वर्ग को छोड़कर अन्य वस्तुओं के खुदरा मूल्य से संबंधित) फरवरी में 6.2 प्रतिशत के स्तर पर स्थिर बनी रही।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज लि के मुख्य अर्थशास्त्री निखिल गुप्ता ने कहा कि खुदरा मुद्रास्फीति के फरवरी के आंकड़े अनुमान के अनुरूप ही हैं और मुद्रास्फीति का बुरा दौर अब गुजर चुका है और मार्च में मुद्रास्फीति छह प्रतिशत से नीचे आ सकती है।
उन्होंने कहा, “हमें लगता है कि अप्रैल की बैठक में रिजर्व बैंक द्वारा रेपो में 0.25 की वृद्धि तय है। ” उन्होंने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति 5.9 प्रतिशत और ईंधन और बिजली वर्ग की मुद्रास्फीति 7.8 प्रतिशत पर चार माह के न्यूनमत स्तर पर रही।
गुप्ता ने कहा कि देश के अंदर के कारण पैदा होने वाली खुदरा मुद्रास्फीति पिछले माह 6.3 प्रतिशत रही, जो इसका चार माह का उच्चतम स्तर है। उन्होंने कहा कि सीपीआई के 58.4 प्रतिशत वस्तुओं के वर्ग में मुद्रास्फीति पांच प्रतिशत से ऊपर रही । यह सितंबर 2022 के बाद सात माह का न्यूनतम स्तर है जबकि 64 प्रतिशत वस्तुओं के वर्ग में मुद्रास्फीति पांच प्रतिशत से ऊपर थी।
रियल एस्टेट कंसल्टेंसी कंपनी नाइट फ्रैंक इंडिया के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (अनुसंधान) यश्विन बंगेरा ने कहा कि आज की स्थिति में खुदरा मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर पर बने रहने को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक में नीतिगत ब्याज दर को और बढ़ाए जाने की संभावना दिखती है, पर उनकी राय है कि इस समय मुख्य रूप से खाद्य कीमतों का महंगाई में बड़ा हाथ है। यह मौसमी समस्या है, इसलिए नीतिगत दर बढ़ाने का महंगाई दर पर कोई खास असर नहीं होगा।